आपातकाल, नसबंदी और मारुति 800... संजय गांधी ने कुछ ऐसे बदल दी थी भारतीय राजनीति की तस्वीर
Sanjay Gandhi Life Story बड़े सपने देखने और उसे मुकम्मल करने की कोशिश करने वाले इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी का जीवन काफी दिलचस्प रहा। भले वो प्रधानमंत्री न बन सके लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि वो हमेशा इस पद की लालसा रखते थे। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े से कुछ अनसुने किस्से।
By Piyush KumarEdited By: Piyush KumarUpdated: Thu, 22 Jun 2023 08:07 PM (IST)
नई दिल्ली, पीयूष कुमार। भारत की आजादी के बाद कांग्रेस परिवार हमेशा भारतीय राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती रही। जवाहर लाल नेहरू के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बड़े बेटे राजीव गांधी ने देश के राष्ट्रप्रमुख बनने की जिम्मेदारी संभाली।
हालांकि, इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी (Sanjay Gandhi) भले ही प्रधानमंत्री न बन सके, लेकिन भारतीय राजनीति के विश्लेश्कों का मानना है कि उन्होंने साल 1973 से लेकर साल 1977 के बीच अप्रत्यक्ष तौर पर देश का कार्यभार संभाला।
दरअसल, राजनीतिक पंडितों यह भी मानते हैं कि इस दौर में राजीव गांधी ने भारत सरकार को कई महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए विवश कर दिया था ।
साल 1970 के दशक में वो भारतीय युवा कांग्रेस के नेता बने और इसके बाद साल 1980 तक उन्होंने देश की राजनीति में अमिट छाप छोड़ दिया।
पुरुष नसबंदी फैसले के लिए माने जाते जिम्मेदार
संजय गांधी को इंदिरा गांधी के उत्ताराधिकारी के तौर पर भी देखा जाता था। माना जाता है कि जब 25 जून को आपातकाल की घोषणा हुई तो उसके बाद लगभग ढाई साल तक संजय गांधी ने ही देश की बागडोर अपने हाथों में संभाले रखा। साल 1976 के सितंबर महीने में उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया, जिसे आज भी देश के बुजुर्गों को याद है।
दरअसल, उन्होंने देशभर में पुरुष नसबंदी का करवाने का आदेश दिया। इस निर्णय के पीछे सरकार की मंशा थी कि देश की आबादी को नियंत्रित किया जा सके। लेकिन, देशभर में कई लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करवाई गई। एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि एक साल में 60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी करवाई गई। बताया जाता है कि 16 साल के किशोर से लेकर 70 साल के बुजुर्गों की नसबंदी करा दी गई।
मारुति 800 को देश में लाने का दिया जाता श्रेय
अगर देश में नसबंदी जैसी दमनकारी फैसले के लिए संजय गांधी को जिम्मेदार माना जाता है तो भारत में मारुति 800 को भारत में लाने का श्रेय भी उन्हीं को दी जाती है। संजय गांधी का सपना था कि भारत में People’s car यानी आम लोगों के पास कार हो। इसके लिए उन्होंने दिल्ली के गुलाबी बाग में एक वर्कशॉप भी तैयार करवाया। 4 जून 1971 को मारुति मोटर्स लिमिटेड नामक एक कंपनी का गठन किया गया और इस कंपनी के पहले एमडी संजय गांधी खुद थे।लंदन में जाकर रॉल्स-रॉयस कंपनी के साथ किया इंटर्नशिप
14 दिसंबर 1946 को दिल्ली में जन्मे इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे ने अपनी 33 साल की छोटी जिंदगी जी भर के जी। बचपन में देहरादून के दून स्कूल (Doon School) में उनका दाखिला कराया गया। इसके बाद उन्होंने स्विट्जरलैंड के इंटरनेशनल बोर्डिंग स्कूल 'इकोल डी ह्यूमेनाइट' में पढ़ाई की। उन्होंने क्रेवे में रॉल्स-रॉयस के साथ इंटर्नशिप किया और इंग्लैंड से वो भारत लौट गए। हालांकि, लंदन में रहते हुए संजय की जिंदगी में दो लड़कियां आ चुकीं थी।ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए प्रेमिका से हुए दूर
सबसे पहले उनकी जिंदगी में एक मुस्लिम लड़की ने दस्तक दी, लेकिन दोनों के बीच के रिश्तों में जल्द ही दरार आ गई। इसके बाद उन्हें एक जर्मन लड़की सैबीन वॉन स्टीग्लिट्स के साथ मोहब्बत हो गई। सैबीन वॉन स्टीग्लिट्स, वही लड़की थी, जिसने राजीव गांधी की मुलाकात सोनिया गांधी से करवाई थी। दोनों एक दूसरे को कोफी पसंद भी करते थे, लेकिन किसी अनबन की वजह से दोनों के बीच दूरियां बढ़ गई। सैबीन के साथ दूरियां बढ़ने के पीछे सबसे बड़ी वजह थी कि वो अपनी प्रमिका से ज्यादा समय अपने ड्रीम प्रोजेक्ट यानी भारत में मारूति कंपनी ( Maruti Motors Limited ) को स्थापित करने के कामों पर ज्यादा दे रहे थे।शादी समारोह में संजय से मिली मेनका
दो लड़कियों की जिंदगी से जाने के बाद उनके जीवन में मेनका गांधी का आगमन हुआ था। इन दोनों की प्रेम कहानी की शुरुआत 14 सितंबर 1973 को होती है। संजय गांधी अपने दोस्त की शादी की पार्टी में गए थे। इसी दिन संजय गांधी का जन्मदिन भी था। इस पार्टी में संजय गांधी की मुलाकात मेनका आनंद से हुई।मेनका गांधी की बात करें तो उनके पिता तरलोचन सिंह लेफ्टनेंट कर्नल थे। वहीं, जब उनकी संजय से मुलाकात हुई थी वो महज 17 साल की थीं, वहीं संजय उनसे 10 साल बढ़े थे। पहली मुलाकात के बाद दोनों एक दूसरे के साथ वक्त बिताने लगे। दोनों ने आखिरकार 23 दिसंबर 1974 को शादी रचाई। यह शादी संजय गांधी के पुराने दोस्त मुहम्मद यूनुस के घर में हुआ। इंदिरा गांधी ने मेनका गांधी को 21 बेहतरीन साड़ियां दी। इनमें से एक वो भी साड़ी थी जो जवाहर लाल नेहरू ने जेल में बुनी थी।हार के साथ हुई राजनीतिक करियर की शुरुआत
आपातकाल समाप्त होने के बाद संजय गांधी मार्च 1977 में अपने पहले चुनाव में खड़े हुए, लेकिन उन्हें अपने ही निर्वाचन क्षेत्र अमेठी में करारी हार का सामना करना पड़ा। हार की सबसे वजह आपातकाल थी, जिससे लोग कांग्रेस से खफा थे। हालांकि, संजय गांधी ने जनवरी 1980 में हुए आम चुनावों में अमेठी से जीत हासिल की।