आपात काल हो या नसबंदी कार्यक्रम, इंदिरा के हर फैसले में थी संजय की अहम भूमिका
संजय गांधी को भारत में मारुति की कार लाने का श्रेय दिया जाता है वहीं इमरजेंसी और नसबंदी कार्यक्रम में भी उनकी भूमिका कम नहीं रही है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 23 Jun 2020 04:31 PM (IST)
नई दिल्ली। संजय गांधी 80 के दशक में कांग्रेस का वो बड़ा चेहरा थे जिसका कहा राजनीतिक गलियारों में कोई नहीं टाल सकता था। इसकी एक वजह बेशक ये भी थी कि वो इंदिरा गांधी के बेटे थे, लेकिन इसकी दूसरी बड़ी वजह ये भी थी कि वे बेहद तेर-तर्रार नेता थे। 23 जून 1980 के दिन ये तेज तर्रार नेता हमेशा के लिए शांत हो गया। दिल्ली में सफदरजंग एयरपोर्ट के पास बेहद नीचे उड़ते समय उनका दो सीट वाला विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इस हादसे में उनकी तुरंत मौत हो गई। उनके साथ इस विमान में सवार केप्टन सुभाष सक्सेना की भी मौत हो गई थी।
वर्ष 2015 में उनके ऊपर लिखी गई एक किताब द संजय स्टोरी के मुताबिक जिस वक्त वो इस विमान को उड़ा रहे थे उन्होंने कुर्ता पायजामा और पांव में कोल्हापुरी चप्पल पहन रखी थी। राजीव गांधी ने उन्हें कई बार विमान उड़ाते समय इसके सभी नियमों का पालन करने के लिए कई बार चेतावनी दी थी लेकिन वो उनकी बातों को हर बार नजरअंदाज करते चले गए। जिस वक्त वे विमान से लगातार नीचे आ रहे थे उसी वक्त विमान का संतुलन बिगड़ गया और वो जमीन से टकरा गया। करीब आठ डॉक्टरों ने मिलकर उनके शरीर के क्षत-विक्षत शरीर पर टांके लगाए थे। संजय गांधी एक कमर्शियल पायलट लाइसेंस होल्डर थे।
जिस पिट्स एस2ए विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने की वजह से उनकी मौत हुई थी उसको इंदिरा गांधी के बेहद नजदीकी धीरेंद्र ब्रह्मचारी आयात करवाना चाहते थे। मई 1980 में कस्टम विभाग ने इसकी मंजूरी दी थी। जब ये विमान सफदरजंग हवाई अड्डे स्थित दिल्ली फ्लाइंग क्लब पहुंचा तो संजय का मन इसको उड़ाने के लिए छटपटाने लगा। संजय ने पहली बार 21 जून 1980 को नए पिट्स पर अपना हाथ आजमाया। इसके बाद 22 जून को भी उन्होंने इस विमान में उड़ान भरी थी। 23 जून को माधवराव सिंधिया उनके साथ पिट्स की उड़ान भरने वाले थे, लेकिन संजय गांधी सिंधिया के बजाए दिल्ली फ्लाइंग क्लब के पूर्व इंस्ट्रक्टर केप्टन सुभाष सक्सेना के घर जा पहुंचे और उनसे चलने को कहा। सुबह के 7:58 मिनट पर उन्होंने टेक ऑफ संजय ने सुरक्षा नियमों को दरकिनार करते हुए रिहायशी इलाके के ऊपर ही तीन लूप लगाए। जब वो चौथा चक्कर लगाने वाले थे तभी विमान का इंजन बंद हो गया। केप्टन सक्सेना ने संजय को इसकी जानकारी दी लेकिन विमान इस दौरान बेहद तेजी से मुड़ा और सीधा जमीन से टकराकर आग के गोले में बदल गया।
संजय गांधी की मौत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी को हिला कर रख दिया था। संजय गांधी को इमरजेंसी और अनिवार्य तौर पर की जाने वाले नसबंदी प्रोग्राम में अहम भूमिका के लिए भी याद किया जाता है। विपक्ष इन दोनों ही मुद्दों पर कांग्रेस पर हमलावर रहा था। इंदिरा गांधी की बनाई कई नीतियों में उनकी स्पष्ट भूमिका होती थी। वो संजय का कहा नहीं टालती थीं। इसके अलावा संजय गांधी को भारत में मारुति की शुरुआत करने के लिए भी जाना जाता है। उन्हें महज 25 साल की उम्र में ही मारुति मोटर्स लिमिटेड का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया था। 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति के लिए चलाए गए युद्ध के दौरान कंपनी का उत्पादन ठप हो गया था। इसको लेकर उनकी खूब आलोचना भी हुई थी। उस वक्त संजय ने पश्चिमी जर्मनी के Volkswagen AG से नया करार किया था।
उनका जन्म 14 दिसम्बर 1946 को हुआ था। संजय गांधी की शुरुआती पढ़ाई देहरादून के स्कूल से हुई थी। इसके बाद उन्होंने ऑटोमोटिव इंजिनियरिंग की पढ़ाई की और इंग्लैंड स्थित रॉल्स रॉयस (तत्कालीन ब्रिटिश तग्जरी कार कंपनी) में 3 साल के लिए इंटर्नशिप भी किया था। संजय गांधी को बचपन से ही स्पोर्ट्स कार का बहुत शौक था।
इमरजेंसी के दौरान लिया गया नसबंदी का फैसला इंदिरा गांधी का जरूर था लेकिन इसे लागू कराने का जिम्मा संजय गांधी को दिया गया था। संजय के लिए यह मौका एक लॉन्च पैड की तरह था क्योंकि उन्हें खुद को कम वक्त में साबित करना था। इस दौरान नसबंदी किए जाने वालों में 16-70 वर्ष के लोग शामिल किए गए। इतना ही नहीं इस दौरान बरती गई लापरवाही की बदौलत करीब दो हजार लोगों को जान भी गंवानी पड़ी थी। संजय का आदेश था कि विभाग नसंबदी के लिए तय लक्ष्य को वह वक्त पर पूरा करें। इतना ही नहीं इसमें विफल रहने वालों की तनख्वाह रोकने और उनके ऊपर कार्रवाई करने तक के निर्देश दिए गए थे। इस प्रोग्राम की सभी डिटेल संजय को ही भेजी जाती थी।
21 महीने बाद जब देश से आपातकाल खत्म हुआ तो सरकार के इकलौते इसी फैसले की आलोचना सबसे ज्यादा हुई। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने तो नसबंदी की आलोचना में एक कविता तक लिखी थी। आपात काल को लेकर साल 1975 में अमृत नाहटा के निर्देशन में एक फिल्म बनी 'किस्सा कुर्सी का'। इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके अलावा उन्होंने ही पार्श्व गायक किशोर कुमार के गानों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था।