पाखंड का विरोध और जीवन की सच्चाई बताने वाले थे संत कबीरदास, जयंती आज
आज संत कबीरदास की जयंती है उनको समाज सुधारक माना जाता रहा। उनके कहे गए दोहों का आज भी कई बार आम जीवन में इस्तेमाल देखने को मिल जाता है।
By Vinay TiwariEdited By: Updated: Mon, 17 Jun 2019 02:24 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत की धरती के अलग-अलग हिस्से पर महापुरूषों ने जन्म लिया है। इनमें से कई समाज सुधारक रहे तो कई ने यहां व्याप्त पाखंड़ों का विरोध किया। पाखंड का विरोध करते हुए समाज के लोगों को सही दिशा दिखाई। इन्हीं महान संतों में एक नाम संत कबीरदास का भी है। समाज में व्याप्त तमाम तरह के पाखंड का विरोध करने वाले ऐसे महान संत कबीरदास का आज जन्मदिवस है। उन्होंने समाज में व्याप्त पाखंड का विरोध करने के लिए तमाम दोहे लिखे, उनके दोहे आज भी प्रासंगिक है। स्कूलों, कालेजों और आम बोलचाल की भाषा में गाहे बगाहे उनके दोहों का इस्तेमाल कर लिया जाता है। उनके दोहे इतने सरल और सबकी समझ वाले थे कि लोगों ने उनको याद कर लिया है और वो मौका पड़ने पर उसका उदाहरण देना नहीं भूलते हैं। उनकी वाणी को अमृत के समान माना जाता है जो लोगों को नया जीवन देने का काम करती है। कबीर ने अपने छोटे-छोटे दोहों के माध्यम से गागर में सागर भरने जैसा संदेश दिया। वो दोहे हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में ले जाने का काम करते हैं।
विचारक और सुधारक
संत कबीर सिर्फ एक संत ही नहीं विचारक और समाज सुधारक भी थे। ये बात उनके जीवन के साथ-साथ दोहों में भी साफ झलकती है। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से आम लोगों को कई सीख दी हैं। उनकी बातें जीवन में सकारात्मकता लाती हैं।
कबीर की वाणी
आज की भागमभाग दौड़ भरी जिंदगी में हर इंसान अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दौड़ भाग कर रहा है। लेकिन किसी भी क्षेत्र में सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ना इतना आसान भी नहीं होता है। अक्सर लक्ष्य की राह में तमाम मुश्किलें आती हैं। संत कबीर ने एक आम आदमी को अपने जीवन में जिस तरह की समस्याएं झेलनी पड़ती है उसको ध्यान में रखते हुुए ही ये दोहे लिखे थे। साथ ही उसके व्यवहारिक समाधान भी बताए थे। संत कबीर की दिव्य वाणी का प्रकाश आज भी हमें समस्याओं के अंधेरे से निकाल कर समाधान की ओर ले जाता है।
संत कबीर के कुछ प्रमुख दोहे- गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।- बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।- पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।- साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।- तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय,कबहुं उड़ी आंखि न पड़े, तो पीर घनेरी होय।- चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह,जिसको कुछ नहीं चाहिए वो शहनशाह।- साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।- जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।- माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर। कबीर के ये सभी दोहे आज भी कई बार सुनने को मिल जाते है। कुछ लोग इन दोहों के माध्यम से दूसरों को प्रेरणा देने का काम करते हैं तो कुछ लोग इन दोहों के माध्यम से उनका उत्साहवर्धन कर रहे हैं। बाकी कम ही संतों की ऐसे दोहों और बातों का आज इस्तेमाल देखने को मिलता हो।
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