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National Unity Day 2022: एकीकृत और आधुनिक भारत के वास्तुकार, संकल्प एवं लक्ष्य के प्रति एकनिष्ठ

National Unity Day 2022 भारत की सांस्कृतिक एवं भौगोलिक अखंडता को अक्षुण्ण रखने हेतु जनमानस को जाति वर्ग समुदाय राज्य और क्षेत्र जैसे भ्रमों को तिलांजलि देकर ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना जैसे वृहत्तर सच को नया आयाम देना पड़ेगा।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Mon, 31 Oct 2022 02:12 PM (IST)
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National Unity Day 2022: सरदार पटेल की भूमिका का सही आकलन कर सकेंगे। प्रतीकात्मक

गिरीश चंद्र पांडेय। सरदार पटेल जिस पृष्ठभूमि से आते हैं, वह उन्हें अन्य तमाम राजनेताओं से अलग और विशिष्ट बनाती है। वर्ष 1910 में 35 वर्ष की आयु में वह लंदन गए। वल्लभभाई के संकल्प एवं लक्ष्य के प्रति एकनिष्ठता का अंदाजा केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि तीन वर्ष के पाठ्यक्रम को उन्होंने केवल दो वर्ष में पूरा कर लिया। उन्होंने प्रथम स्थान के साथ प्रथम श्रेणी में बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। लंदन से लौटने के बाद वल्लभभाई सूट-बूट व हैट धारण करते थे। परंतु नवंबर 1917 के बाद जब एक बार उन्होंने गांधी के साथ काम करना तय कर लिया तो जीवनपर्यंत गांधी के साथ ही रहे और उनके सर्वाधिक निष्ठावान सहयोगी बने रहे। कांग्रेस के भीतर वल्लभभाई की हैसियत बढ़ती गई। यह सम्मान उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प एवं कर्तव्य के प्रति एकनिष्ठ समर्पण से स्वयं ही अर्जित किया।

पटेल ने गांधी के पीछे जिस प्रकार समूची कांग्रेस पार्टी को एकबद्ध कर दिया और पार्टी के लिए कोष एकत्र किया, इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को है। देश की स्थानीय शक्तियों से जिस प्रकार वल्लभभाई निपटते थे, वैसी सामर्थ्य किसी भी अन्य नेता में नहीं थी। वर्ष 1917 से 1939 तक वल्लभभाई पटेल, गांधी की छत्रछाया में काम करते रहे। अब वह पूर्णरूपेण गांधीवादी बन गए थे और खादी वस्त्र धारण करने लगे थे। वर्ष 1922 से 1928 के बीच पटेल ने कांग्रेस के लिए बड़े पैमाने पर चंदा जुटाया और सर्वाधिक विश्वस्त व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाई। गांधी स्वयं को बहुत बड़ा चंदा जुटाने वाला समझते थे, परंतु पटेल की अप्रतिम क्षमता से वह भी आश्चर्यचकित रह गए। वर्ष 1934 से 1939 तक सरदार पटेल कांग्रेस के भीतर गांधी और गांधीवादियों के पक्ष में संघर्ष करते, पार्टी के लिए फंड जुटाते, पार्टी को अनुशासित एवं संगठित करते हुए दिखाई पड़ते हैं। सांगठनिक ढांचे की विसंगतियों से जिस प्रकार पटेल दो-चार हो रहे थे, उसके बारे में कम लोग जानते हैं। वर्ष 1934 के बाद गांधी के नेतृत्व को न केवल पार्टी के भीतर से चुनौती दी जा रही थी, बल्कि कांग्रेस के बाहर कम्युनिस्ट और हिंदू राष्ट्रवादी शक्तियां भी गांधी के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रही थीं।

वर्ष 1946 के बाद मुस्लिम लीग, अंग्रेजों के सहयोग से बहुत ही जोरदार तरीके से ‘पाकिस्तान’ के लिए दबाव डाल रही थी। इस विषम परिस्थिति में भी कांग्रेस नेतृत्व एकमत नहीं था। मौलाना आजाद अभी भी कांग्रेस-लीग गठबंधन की संभावना तलाश रहे थे। गांधी अभी भी इस उम्मीद में थे कि हिंदू-मुस्लिम ऐक्य के माध्यम से राजनीतिक समस्या का हल निकल जाए। लेकिन इन असमंजसपूर्ण स्थिति में एकमात्र सरदार पटेल ही ऐसे व्यक्ति थे जो स्पष्ट दृष्टिकोण से चीजों को देख और समझ रहे थे। वह यह ही समझ रहे थे कि देश की एकता के लिए एक सशक्त सेना और सशक्त केंद्रीय सरकार की जरूरत पड़ेगी, अन्यथा देश टुकड़े- टुकड़े हो जाएगा।

उस दौर में देश को ऐसे ही सशक्त राष्ट्रीय नेतृत्व की आवश्यकता महसूस हो रही थी जो मुस्लिम मांग के विरुद्ध मजबूती से खड़ा हो सके। ऐसी परिस्थिति में ही कांग्रेस नेता के चुनाव की बात उठी जो भारत के प्रधानमंत्री पद पर आसीन हो सके। भारत के अधिकांश प्रांतों ने पटेल का समर्थन किया। उनका कांग्रेस अध्यक्ष बनना लगभग तय माना जा रहा था। परंतु गांधी के हस्तक्षेप के कारण कांग्रेस अध्यक्ष का पद नेहरू को सौंप दिया गया। इस प्रकार यदि हम यह जानना चाहते हैं कि कैसे एक संगठित एवं सशक्त भारत उभर कर सामने आया है तो हमें 1947 के पहले के ऐतिहासिक संदर्भों को सम्यक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा। तभी हम सरदार पटेल की भूमिका का सही आकलन कर सकेंगे।

[प्रोफेसर, मुंगेर विश्वविद्यालय]