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40 साल तक ट्रायल, 75 वर्षीय बुजुर्ग को जमानत... सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म और हत्या मामले में दिया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 1983 के दुष्कर्म और हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए 75 वर्षीय बुजुर्ग को जमानत दे दी। इस मामले में सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि ट्रायल में 40 साल का समय लगा और सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर करते हुए अपना फैसला सुनाया। बता दें कि यह घटना 1983 में घटित हुई थी।

By AgencyEdited By: Anurag GuptaUpdated: Thu, 28 Sep 2023 04:06 PM (IST)
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1983 के दुष्कर्म और हत्या का मामला (फाइल फोटो)
नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने 1983 के दुष्कर्म और हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए 75 वर्षीय बुजुर्ग को जमानत दे दी। इस मामले में सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि ट्रायल में 40 साल का समय लगा और सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर करते हुए अपना फैसला सुनाया।

मामले की अनोखी विशेषता का जिक्र करते हुए शीर्ष अदालत ने कलकत्ता हाई कोर्ट से कहा कि वह दोष सिद्धि के विरुद्ध उस व्यक्ति की अपील को निपटाने में बिना बारी के प्राथमिकता प्रदान करे। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की।

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पीठ ने कहा कि आम तौर पर शीर्ष अदालत को किसी संवैधानिक अदालत या किसी अन्य अदालत को किसी मामले का फैसला करने के लिए कार्यक्रम तय करने का निर्देश जारी नहीं करना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने इस मामले के ट्रायल में 40 साल का समय लगने की वजह से हाई कोर्ट से इस मामले को प्राथमिकता देने की अपील की।

हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका

हाई कोर्ट ने जमानत देने की अपील को खारिज कर दिया था। दरअसल, हाई कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और अपराध की गंभीरता को देखते हुए कहा था कि हम अपीलकर्ता की सजा को रद्द करना ठीक नहीं समझते हैं।

क्या है पूरा मामला?

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि यह मामला एक लड़की के साथ दुष्कर्म और हत्या से जुड़ा हुआ है। जिसकी एक कमरे में गला घोंटकर हत्या कर दी गई थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा कि घटना 1983 में हुई थी और इसके कुछ कारण है कि मुकदमा क्यों विलंबित हुआ। पीठ ने कहा,

मुकदमा 21 अप्रैल, 2023 को अपीलकर्ता को दोषी ठहराए जाने के आदेश के साथ खत्म हुआ। अपीलकर्ता पूरे समय जमानत पर रहा। अपीलकर्ता की वर्तमान उम्र लगभग 75 वर्ष है। अंतिम सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में अपील स्वीकार कर ली गई है।

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अदालत ने कहा कि मुकदमा खत्म होने में देरी, घटना के 1983 में होने और अपीलकर्ता की वर्तमान उम्र के मद्देनजर वह हाई कोर्ट में अपील के निस्तारण तक कड़े नियम शर्तों पर जमानत पाने का अधिकारी है। जब पीठ को सूचित किया गया कि अपीलकर्ता बार का सदस्य है तो पीठ ने कहा कि उनसे अपेक्षा की जाती है कि शीर्ष अदालत का आदेश ईमानदारी से लागू किया जाए और अपील का तेजी से निपटारा हो।

साथ ही कोर्ट ने कहा कि यदि अपीलकर्ता की ओर से किसी प्रकार की चूक की वजह से अपील की सुनवाई में देरी होती है तो राज्य के पास हाई कोर्ट में आवेदन दाखिल कर जमानत रद्द करने की मांग करने का विकल्प खुला होगा।