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Supreme Court: खनिजों पर वसूली जाने वाली रायल्टी कर है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने खनिजों पर वसूली जाने वाली रायल्टी को खान और खनिज (विकास और विनियमन) एक्ट 1957 के तहत टैक्स मानने और इसकी वसूली का अधिकार केंद्र के साथ राज्यों को भी होने के विवादास्पद मुद्दे पर अपना फैसला गुरुवार को सुरक्षित रख लिया। शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति न केवल संसद को बल्कि राज्यों को भी देता है।

By Agency Edited By: Anurag GuptaUpdated: Thu, 14 Mar 2024 11:45 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित (फाइल फोटो)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने खनिजों पर वसूली जाने वाली रायल्टी को खान और खनिज (विकास और विनियमन) एक्ट, 1957 के तहत टैक्स मानने और इसकी वसूली का अधिकार केंद्र के साथ राज्यों को भी होने के विवादास्पद मुद्दे पर अपना फैसला गुरुवार को सुरक्षित रख लिया।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने विभिन्न राज्य सरकारों, खनन कंपनियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा दायर 86 याचिकाओं पर आठ दिन तक सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।

कोर्ट ने क्या कुछ कहा?

सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति न केवल संसद को बल्कि राज्यों को भी देता है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के अधिकारों को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने तर्क दिया था कि केंद्र के पास खान और खनिजों पर कर लगाने की ज्यादा शक्तियां हैं।

सालिसिटर जनरल ने क्या दी दलील?

केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि एमएमआरडीए की पूरी संरचना खनिजों पर कर लगाने की राज्यों की विधायी शक्ति पर सीमा लगाती है और रायल्टी तय करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है।

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हालांकि, याचिकाकर्ताओं में से एक झारखंड की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा था कि रायल्टी कोई कर नहीं है और राज्यों को राज्य सूची के विषय 49 और 50 के आधार पर खान और खनिज पर कर लगाने का अधिकार है। राज्य सूची के विषय 49 के तहत राज्यों को भूमि और भवनों पर कर लगाने का अधिकार है, जबकि विषय 50 के तहत राज्यों को खनिज विकास से संबंधित संसद द्वारा लगाई गई किसी भी सीमा के अधीन खनिज अधिकारों पर कर लगाने की अनुमति देती है। दरअसल, नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ उस जटिल प्रश्न पर विचार कर रही है कि क्या खनन पट्टे पर केंद्र द्वारा एकत्र की गई रायल्टी को कर के रूप में माना जा सकता है, जैसा कि 1989 में सात-न्यायाधीशों की पीठ ने माना था।

छह मार्च को शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान संसद को खनिज विकास के संबंधों को आधार बनाकर सभी तरह के नियम बनाने का अधिकार नहीं देता है और राज्यों के पास खान और खनिजों को रेगुलेट करने और उन्हें विकसित करने की शक्ति है।

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27 फरवरी को शीर्ष अदालत ने इस विवादास्पद मुद्दे पर सुनवाई शुरू की थी कि क्या एमएमआरडीए अधिनियम, 1957 के तहत निकाले गए खनिजों पर देय रायल्टी कर की प्रकृति में आती है या नहीं। यह मुद्दा 1989 में इंडिया सीमेंट्स लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में आए फैसले के बाद उठा, जिसमें शीर्ष अदालत की सात न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि रायल्टी एक कर है। हालांकि, शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 2004 में पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि 1989 के फैसले में एक टाइपोग्राफिक त्रुटि थी और रायल्टी एक कर नहीं है। इसके बाद विवाद को नौ न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया।