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चार्जशीट तक सार्वजनिक पहुंच की मांग करने वाली जनहित याचिका पर SC ने फैसला सुरक्षित रखा

किसी भी चार्जशीट तक सार्वजनिक पहुंच के मामले में सभी दलीलों के सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि चार्जशीट की प्रकटीकरण नागरिकों का कानूनी और संवैधानिक अधिकार है।

By Jagran NewsEdited By: Shalini KumariUpdated: Mon, 09 Jan 2023 03:02 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने चार्जशीट को सार्वजनिक करने की याचिका पर फैसला सुरक्षित।
नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने 9 जनवरी को एक जनहित याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। दरअसल, इस याचिका में पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट को मुफ्त में एक वेबसाइट पर पोस्ट करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सौरव दास द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की है जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के अनुसार पुलिस द्वारा चार्जशीट तक सार्वजनिक पहुंच की मांग की गई थी।

"एफआईआर का दुरुपयोग हो सकता है "

जस्टिस एमआर शाह और सीटी रविकुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण की दलीलें सुनीं और कहा कि वह आदेश जारी करेगी। सर्वोच्च अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि यदि मामले से असंबद्ध लोगों जैसे व्यस्त निकायों और गैर-सरकारी संगठनों को एफआईआर दी जाती है तो वो इसका दुरुपयोग कर सकते हैं।

अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण का कर्तव्य है कि वह सूचना को स्वत: ही बाहर कर दें। जनता के प्रत्येक सदस्य को यह सूचित करने का अधिकार है कि कौन आरोपी है और किसने एक विशेष अपराध किया है।

नागिरकों का संवैधानिक अधिकार है 'चार्जशीट की प्रकटीकरण'

प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि 'चार्जशीट की प्रकटीकरण' नागरिकों का कानूनी और संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि कोई नागरिक चार्जशीट तक पहुंचने में असमर्थ होता है तो वो इसके प्रेस के अधिकारों में हस्तक्षेप माना जाएगा। क्योंकि जानने के अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) और 21 में इसे मौलिक अधिकार माना गया है।

याचिकाकर्ता ने यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया (2016) 9 एससीसी 473 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस को केस रजिस्टर करने के 24 घंटों के अंतराल में ही एफआईआर की प्रतियां प्रकाशित करनी होती है। हालांकि, किसी भी गंभीर या संवेदनशील मामले में ऐसा करना अनिवार्य नहीं है।

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