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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जाति आधारित जनगणना नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने जाति आधारित जनगणना कराने का मद्रास हाईकोर्ट का आदेश यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि यह सरकार का नीतिगत मामला है। कोर्ट नीतिगत मामलो में तभी दखल दे सकता है जब सरकार की नीति को चुनौती दी गई हो और वह नीति संविधान या कानून विरोधी

By Rajesh NiranjanEdited By: Updated: Sat, 08 Nov 2014 07:33 AM (IST)
नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। सुप्रीम कोर्ट ने जाति आधारित जनगणना कराने का मद्रास हाईकोर्ट का आदेश यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि यह सरकार का नीतिगत मामला है। कोर्ट नीतिगत मामलो में तभी दखल दे सकता है जब सरकार की नीति को चुनौती दी गई हो और वह नीति संविधान या कानून विरोधी हो। न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने जनगणना आयुक्त की याचिका स्वीकारते हुए शुक्रवार को यह फैसला दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट का 24 अक्टूबर 2008 और 12 मई 2010 के दिए आदेश निरस्त कर दिए जिनमें जनगणना विभाग को जाति आधारित जनगणना का आदेश दिया गया था। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र की दलील स्वीकार करते हुए कहा, जनगणना कैसे कराई जाए यह सरकार का नीतिगत मामला है। कानून में केंद्र्र सरकार को अधिकार दिया गया है कि वह अधिसूचना जारी कर जनगणना के तौर तरीके तय करे। सरकार ने अधिसूचना जारी कर नियम तय कर रखे हैं, जिसके मुताबिक जनगणना करते समय कई सूचनाएं एकत्र की जाती हैं इसमें अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूचना भी शामिल है, लेकिन किसी जाति की सूचना एकत्र करना शामिल नहीं है। ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट सरकार को जाति आधारित जनगणना का आदेश देने का हक नहीं है। हाईकोर्ट ने आदेश पारित करके न्यायिक समीक्षा के क्षोत्राधिकार का अतिक्रमण किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट कानून की व्याख्या कर सकता है। जरूरत हो वह कानून को असंवैधानिक घोषित करने का भी हक रखता है, लेकिन कोर्ट को नीतिगत मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। न ही आदेश जारी कर सरकारी नीति में कुछ जोडऩा चाहिए। कोर्ट को कार्यपालिका द्वारा तय की गई नीतियों को समझना चाहिए। अगर नीति मनमानी है और संविधान सम्मत नहीं है तो ही उसमें दखल देना चाहिए अन्यथा नहीं।

क्या कहा था हाईकोर्ट ने

सामाजिक न्याय के उद्देश्य को प्राप्त करने को सरकार जल्द से जल्द समयबद्ध ढंग से जाति आधारित जनगणना कराए। 1931 के बाद कभी जाति आधारित जनगणना नहीं हुई है, जबकि एससी-एसटी और ओबीसी की जनसंख्या कई गुना बढ़ी है। ऐसे में सरकार कमजोर वर्ग के हितों के मद्देनजर जाति आधारित जनगणना करा कर 1931 की जनगणना के आधार पर तय किया गया आरक्षण का फीसद उसी हिसाब से बढ़ाना चाहिए।

क्या था 1931 की जनगणना में

1931 में देश की आबादी 35 करोड़ 30 लाख थी, जिसमें ओबीसी की आबादी करीब 52 फीसद थी। 1941 में भी जाति आधारित जनगणना हुई थी लेकिन पैसे बचाने के लिए उनके आंकड़े दर्ज नहीं किए गए।

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