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SC-ST Quota: एससी-एसटी कोटे में कोटे पर सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुआ मंथन, सात न्यायाधीशों की पीठ ने शुरू की सुनवाई

आरक्षण का मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के सामने है। इस बार अदालत कोटे में कोटा पर विचार कर रही है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एससी एसटी वर्ग को मिलने वाले आरक्षण में अति दलित व पिछड़े यानी एससी एसटी वर्ग के ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण देने और प्राथमिकता देने के मुद्दे पर मंथन शुरू किया है।

By Jagran News Edited By: Abhinav AtreyUpdated: Tue, 06 Feb 2024 08:43 PM (IST)
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एससी एसटी के आरक्षण में जातियों के उपवर्गीकरण का है मामला। (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आरक्षण का मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के सामने है। इस बार अदालत कोटे में कोटा पर विचार कर रही है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एससी एसटी वर्ग को मिलने वाले आरक्षण में अति दलित व पिछड़े यानी एससी एसटी वर्ग के ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण देने और प्राथमिकता देने के मुद्दे पर मंथन शुरू किया है।

सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा है कि क्या राज्य सरकार को आरक्षण के लिहाज से एससी-एसटी वर्ग में जातियों के उप वर्गीकरण का अधिकार है। क्या राज्य सरकार एससी-एसटी वर्ग में ज्यादा पिछड़ी ज्यादा जरूरतमंद जातियों को आरक्षण का लाभ देने के लिए उप वर्गीकरण कर सकती है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी में यह कहा भी क्या यहां भी वही मानदंड नहीं लागू होना चाहिए जैसा कि पिछड़े बनाम फॉरवर्ड के बीच अपनाया जाता है।

बुधवार को भी जारी रहेगी सुनवाई

मामले में बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट के सामने पंजाब का मामला है। जिसमें पंजाब सरकार 2006 में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) कानून 2006 लायी थी। इस कानून में पंजाब में एसीसी वर्ग को मिलने वाले कुल आरक्षण में से पचास फीसद सीटें और पहली प्राथमिकता वाल्मीकि और मजहबियों (मजहबी सिख) के लिए तय कर दी गईं थीं।

हाई कोर्ट ने कानून को असंवैधानिक ठहरा था

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने 2010 में पंजाब के इस कानून को असंवैधानिक ठहरा दिया था जिसके खिलाफ पंजाब सरकार की सुप्रीम कोर्ट में अपील है जिस पर सात न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई कर रही है। सात न्यायाधीश इस मामले को इसलिए सुन रहे हैं क्योंकि 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने ईवी चैन्नया बनाम आंध्र प्रदेश मामले में दिए फैसले में कहा था कि राज्य सरकार को अनुसूचित जातियों के वर्गीकरण का अधिकार नहीं है।

पीठ ईवी चैन्नया फैसले में दी गई व्यवस्था पर पुनर्विचार

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की एक अन्य पीठ ने माना था कि ईवी चैन्नया के मामले में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है इसलिए आरक्षण के लिहाज से एससी-एसटी वर्ग में उप वर्गीकरण के इस मामले पर सात न्यायाधीशों की पीठ विचार कर रही है। मुख्य मामला पंजाब का है लेकिन पंजाब के साथ ही कुल करीब दो दर्जन याचिकाएं लंबित हैं जिनमें कोटे में कोटे का मामला उठाया गया है। सात न्यायाधीशों की पीठ ईवी चैन्नया फैसले में दी गई व्यवस्था पर भी पुनर्विचार करेगी।

सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता पीठ बैठी

मंगलवार को मामले पर सुनवाई के लिए प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति बीआर गवई, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा, और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की सात सदस्यीय पीठ बैठी। बहस की शरुआत पंजाब सरकार के एडवोकेट जनरल ने की।

वंचितों को अंदर लाने का प्रयास

पंजाब के एडवोकेट जनरल ने आरक्षण की अवधारणा और एससी के आरक्षण से वाल्मीकि और मजहबी सिखों को पचास फीसद आरक्षण और प्राथमिकता के कानून को सही ठहराते हुए कहा कि यह वर्गीकरण किसी वर्ग को बाहर करने के उद्देश्य से नहीं किया गया है बल्कि जो वंचित रह गए हैं उन्हें अंदर लाने का प्रयास है। इसमें संतुलन कायम किया गया है।

आरक्षण में से 50 फीसद सीट वाल्मीकि के लिए

उन्होंने कहा, एक तो एससी के कुल आरक्षण में से सिर्फ 50 फीसद सीटों को वाल्मीकि और मजहबियों के लिए प्राथमिकता के आधार पर आरक्षित किया गया है दूसरे यह व्यवस्था बहिष्करण की नहीं है बल्कि प्रिफरेंसियल बेसिस पर है। संघीय व्यवस्था में राज्य सरकार को ऐसा करने का अधिकार है। उन्होंने अपनी दलीलों के समर्थन में नौ न्यायाधीशों की इंद्रा साहनी (मंडल जजमेंट) फैसले में दी गई व्यवस्था का हवाला दिया, जो वर्गीकरण की इजाजत देता है।

इंद्रा साहनी का फैसला ओबीसी के बारे में था

हालांकि, हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार की इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इंद्रा साहनी का फैसला सिर्फ ओबीसी के बारे में था वह फैसला एसीसी-एसटी आरक्षण पर लागू नहीं होगा। मंगलवार को चीफ जस्टिस ने आरक्षण में लागू होने वाले बहिष्करण पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जब पाठ्यक्रम पिछड़े समुदाय के लिए आरक्षित होता है तो उन पाठ्क्रम की प्रतिस्पर्धा से फॉरवर्ड क्लास बाहर हो जाता है। फिर भी हमारा संवैधानिक न्याय शास्त्र इसकी इजाजत देता है क्योंकि हम समानता को औपचारिक नहीं बल्कि एक वास्तविक समानता के रूप में मानते हैं। पिछड़े समुदाय के बारे में भी यही बात लागू होती है।

बैकवर्ड बनाम फॉरवर्ड

चीफ जस्टिस ने कहा कि क्या यह बैकवर्ड बनाम फॉरवर्ड का मानक यहां पिछड़ों के बीच भी लागू होगा। जैसा कि पंजाब के कानून में किया गया है। उन्होंने कहा कि अब सिर्फ विचार का यह प्रश्न है कि क्या जिस मानदंड और आधार पर बैकवर्ड बनाम फॉरवर्ड में बहिष्करण लागू होता है वही मानदंड यहां लागू होगा।

ज्ञात हो कि ईवी चैन्नया के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्य सरकारें एससी को दिए गए आरक्षण में कुछ दखल नहीं दे सकतीं। केवल संसद ही एसीसी की जातियों को राष्ट्रपति की सूची से बाहर कर सकती है।

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