धोनी पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगाने वाले रिटायर्ड IPS अधिकारी को सुप्रीम कोर्ट से राहत, मद्रास हाई कोर्ट की सजा पर लगाई रोक
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने रिटायर्ड आईपीएस जी संपत कुमार के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल की थी। मुकदमे के जवाब में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी द्वारा दायर लिखित दलीलों में न्यायपालिका के खिलाफ की गई टिप्पणियों के लिए मद्रास HC ने संपत कुमार को 15 दिनों की जेल की सजा सुनाई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। दरअसल, टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी द्वारा दायर अदालत की अवमानना के मामले में सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी जी संपत कुमार को मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा दी गई 15 दिन की जेल की सजा पर सोमवार को अंतरिम रोक लगा दी गई है।
8 मार्च को होगी अगली सुनवाई
न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ कुमार की याचिका पर नोटिस जारी किया। मामले की अगली सुनवाई 8 मार्च को तय की गई है। उच्च न्यायालय ने पिछले साल 15 दिसंबर को कुमार को आपराधिक अवमानना का दोषी पाया था और उन्हें 15 दिन की जेल की सजा सुनाई थी।
2014 में की थी अदालत का रुख
अपनी अवमानना याचिका में धोनी ने 100 करोड़ रुपये के मानहानि मुकदमे के जवाब में दायर अपने लिखित बयान में न्यायपालिका के खिलाफ की गई कुमार की टिप्पणियों के लिए उन्हें दंडित करने की मांग की। धोनी ने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) सट्टेबाजी घोटाले में लोकप्रिय क्रिकेटर का नाम लेने के लिए पूर्व पुलिसकर्मी के खिलाफ 2014 में अदालत का रुख किया था।अदालत की गरिमा को कमजोर करने की कोशिश
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि कुमार ने जानबूझकर इस अदालत और उच्चतम न्यायालय को बदनाम करने और उनके अधिकार को कम करने का प्रयास किया है। उच्च न्यायालय ने कहा था कि कुमार ने अपने विशिष्ट शब्दों से इस अदालत के साथ-साथ शीर्ष न्यायालय की गरिमा और महिमा को बदनाम करने और कमजोर करने के इरादे से न्यायपालिका पर अभद्र टिप्पणी की है। उच्च न्यायालय ने कहा था कि कुमार एक जिम्मेदार पुलिस अधिकारी थे, जिनके पास अपराध की जांच करने का मौका था।
अदालत की गरिमा से छेड़छाड़ का अधिकार नहीं
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उच्च न्यायालय ने कहा था कि अदालत की अवमानना अधिनियम में निहित वैधानिक सीमाओं को कमजोर करने के लिए भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विस्तार नहीं किया जा सकता है। चूंकि, अदालतों की गरिमा बनाए रखना कानून के शासन के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है, इसलिए किसी भी प्रकाशन या सार्वजनिक भाषण की अनुमति नहीं दी जा सकती है।यह भी पढ़ें: उद्धव गुट की याचिका पर सुनवाई करने को राजी हुआ सुप्रीम कोर्ट, महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर के फैसले को दी गई है चुनौती
उच्च न्यायालय ने कहा था कि अदालत की अवमानना अधिनियम एक संस्था के रूप में न्यायपालिका में जनता के सम्मान और विश्वास को सुरक्षित करने के लिए बनाया गया है। कोर्ट ने कहा था, "अगर संपत कुमार जैसे व्यक्तियों को न्याय के निष्पक्ष प्रशासन में जनता के विश्वास को छेड़ने की इजाजत दी गई, तो इसे न्यायपालिका पर हमला माना जाना चाहिए।"
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