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संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटेंगे या नहीं, 25 नवंबर को आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला

संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को हटाने की मांग उठी है। शुक्रवार को भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी और अन्य वकीलों की तरफ से दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। अब अदालत 25 नवंबर को अपना फैसला सुनाएगी। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़े गए दोनों शब्दों को हटाने के पीछे तर्क भी दिया।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Fri, 22 Nov 2024 05:28 PM (IST)
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संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने की मांग।
एएनआई, नई दिल्ली। संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई की।

पीठ ने कहा कि भारतीय अर्थ में समाजवादी होने का अर्थ केवल कल्याणकारी राज्य से है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इन दोनों शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिका पर 25 नवंबर को आदेश पारित करेगी। यह याचिकाओं को भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, वकील बलराम सिंह, करुणेश कुमार शुक्ला और अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की है।

पश्चिम नजरिए से देखने की जरूरत नहीं

पीठ ने आगे कहा कि धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। 42वें संविधान संशोधन पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट विचार कर चुका है। इससे पहले भी पीठ ने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता को हमेशा संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना गया है और मौखिक रूप से कहा था कि प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्दों को पश्चिमी नजरिए से देखने की आवश्यकता नहीं है।

पीठ ने कहा, " अवसरों की समानता भी समाजवाद का अर्थ हो सकता है और देश की संपत्ति समान रूप से वितरित की जानी भी। इसे पश्चिमी अर्थ में नहीं लेना चाहिए। इसका अलग अर्थ भी हो सकता है। धर्मनिरपेक्षता शब्द के साथ भी ऐसा ही है।

मूल संचरना सिद्धांत का उल्लंघन: सुब्रमण्यम स्वामी

सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि 1976 में प्रस्तावना में जोड़े गए दो शब्द मूल प्रस्तावना की तारीख नहीं दर्शाते, जिसे 1949 में तैयार किया गया था। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से प्रस्तावना में जोड़े गए ये दोनों शब्द 1973 में 13 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा प्रसिद्ध केशवानंद भारती फैसले के प्रतिपादित मूल संरचना सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं। केशवानंद भारती केस में संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को संविधान की मूल विशेषताओं के साथ छेड़छाड़ करने से रोक दिया गया था।

संविधान निर्माताओं का इन शब्दों को जोड़ने का इरादा नहीं था

स्वामी ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने संविधान में इन दो शब्दों को शामिल करने से मना कर दिया था। उन्होंने आरोप लगाया कि इन दो शब्दों को नागरिकों पर थोपा गया। जबकि संविधान निर्माताओं का कभी भी लोकतांत्रिक शासन में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को शामिल करने का कोई इरादा नहीं था।

उन्होंने तर्क दिया गया कि इस तरह की प्रविष्टि अनुच्छेद 368 के तहत संसद की संशोधन शक्ति से परे है। स्वामी ने कहा कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने इन शब्दों को शामिल करने से मना कर दिया था। इसकी वजह यह थी कि संविधान नागरिकों से उनके चुनने के अधिकार को छीनकर उन पर कुछ राजनीतिक विचारधाराओं को थोप नहीं सकता है।

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