संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटेंगे या नहीं, 25 नवंबर को आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला
संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को हटाने की मांग उठी है। शुक्रवार को भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी और अन्य वकीलों की तरफ से दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। अब अदालत 25 नवंबर को अपना फैसला सुनाएगी। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़े गए दोनों शब्दों को हटाने के पीछे तर्क भी दिया।
एएनआई, नई दिल्ली। संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई की।
पीठ ने कहा कि भारतीय अर्थ में समाजवादी होने का अर्थ केवल कल्याणकारी राज्य से है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इन दोनों शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिका पर 25 नवंबर को आदेश पारित करेगी। यह याचिकाओं को भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, वकील बलराम सिंह, करुणेश कुमार शुक्ला और अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की है।
पश्चिम नजरिए से देखने की जरूरत नहीं
पीठ ने आगे कहा कि धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। 42वें संविधान संशोधन पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट विचार कर चुका है। इससे पहले भी पीठ ने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता को हमेशा संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना गया है और मौखिक रूप से कहा था कि प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्दों को पश्चिमी नजरिए से देखने की आवश्यकता नहीं है।पीठ ने कहा, " अवसरों की समानता भी समाजवाद का अर्थ हो सकता है और देश की संपत्ति समान रूप से वितरित की जानी भी। इसे पश्चिमी अर्थ में नहीं लेना चाहिए। इसका अलग अर्थ भी हो सकता है। धर्मनिरपेक्षता शब्द के साथ भी ऐसा ही है।