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Bangladesh Protest: शेख हसीना की ढाका से विदाई...सैन्य शासन और चुनाव पर संशय बरकरार, भारत ने पड़ोसी देश की हालात पर जताई चिंता

दो अलग-अलग कार्यकालों और 20 वर्षों से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान (चल रहे विरोध प्रदर्शनों में 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है) उनकी सबसे बड़ी परीक्षा में वह विफल दिख रहीं है। 76 वर्षीय शेख हसीना ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया है और बांग्लादेश को उसकी हालात पर छोड़कर भाग गईं हैं।

By Jagran News Edited By: Babli Kumari Updated: Mon, 05 Aug 2024 10:59 PM (IST)
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बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ( फोटो-जागरण )

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। 07 जनवरी, 2024 को अवामी लीग ने जब लगातार चौथी बार बांग्लादेश चुनाव में विजय हासिल की तो इसकी मुखिया शेख हसीना ने सोचा नहीं होगा कि सिर्फ आठ महीनों में ही उन्हें देश छोड़ कर भागना पड़ेगा। रिजर्वेशन कोटा पर जून, 2024 में ढाका में शुरु हुआ छात्र आंदोलन रविवार (4 अगस्त) को बहुत ही हिंसक रूप ले लिया जिसके बाद बांग्लादेश की सेना ने भी पीएम हसीना की मदद करने से इनकार कर दिया। अंतत: सोमवार (05 अगस्त) को सेना के हेलीकाप्टर से हसीना को ढाका से दिल्ली लाया गया।

माना जा रहा है कि कुछ दिनों तक यहां रहने के बाद वह लंदन जा सकती हैं। इसके साथ ही दक्षिण एशिया में भारत के सबसे विश्वस्त सरकार की भी विदाई हो गई है। बांग्लादेश का भविष्य कैसा होगा अभी यह अस्पष्ट नहीं है। वहां सैन्य शासन लंबा चलता है या जल्द ही चुनाव करवाये जाते हैं, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन कई वजहें हैं जिसके कारण बांग्लादेश के हालात भारत के लिए चिंता का कारण है।

सबसे विश्वस्त वैश्विक साझेदार रही हैं हसीना

पूरी दुनिया में कोई एक वैश्विक नेता जिस पर भारत आंख मूंद कर भरोसा कर सकता था वह बंग-बंधु शेख मुजीबुर्रहमान की पुत्री शेख हसीना थी। चाहे पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की यूपीए-दो का कार्यकाल हो या विगत दस वर्षों से पीएम नरेन्द्र मोदी की सरकार हो, शेख हसीना ने हमेशा भारतीयों हितों का ख्याल रखा। पहले, ढाका से उन्होंने पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आइएसएआइ के नेटवर्क और पाक की मदद से फल-फूल रहे भारत विरोधी कट्टरपंथियों की दुकानें बंद करवाई। वर्षों से ढाका व काक्सबाजार में छिप कर रहने वाले असम के आतंकियों का सफाया कराया।

पाक समर्थित आंतकवाद के मुद्दे पर सार्क व दूसरे मंचों पर हमेशा भारत का साथ दिया। जाहिर है कि अब इस पड़ोसी देश में जो भी नई सरकार आती है उसके साथ भारत का पुराना भरोसा बनाने में समय लगेगा। भारत ने भी हसीना के हितों का ख्याल रखा। कभी वहां के अंदरूनी हालात में दखल नहीं दी। वर्ष 2015 में सीमा विवाद विधेयक पारित कराने के साथ ही 40 वर्ष पुराने विवाद का निपटारा किया। बांग्लादेश को कई सड़कों, रेल मार्गों, ऊर्जा परियोजनाओं का तोहफा दिया।

बीएनपी व कट्टरपंथी का साथ यानी भारत के साथ विश्वासघात

अवामी लीग के बाहर होने के साथ ही इस बात की संभावना है कि पीएम हसीना की सरकार में रहे कट्टरपंथियों और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) अब वहां की राजनीति में ज्यादा सक्रिय हो जाएंगे। इन दोनों के साथ भारत का रिश्ता बहुत अच्छा नहीं रहा है। पूर्व में बीएनपी की पीएम खालिदा जिया ने भारत के बजाये हमेशा चीन व पाकिस्तान को मदद पहुंचाई है। जिया ने भारत की तरफ से बार-बार आग्रह करने के बावजूद उल्फा आतंकियों पर लगाम नहीं लगाई। वर्ष 2001-2006 के दौरान जिया के दूसरे कार्यकाल में पूरा बांग्लादेश पाकिस्तानी एजेंसी आइएसआइ का सबसे बड़ा भारत विरोधी अड्डा बन गया था।

इसी तरह से जिस तरह से हसीना के देश छोड़ने की खबर के बाद बंग-बंधु की मूर्तियों, भारत से संबंधित भवनों आदि को नुकसान पहुंचाया गया है वह बताता है कि वहां जमाते-इस्लामी को खुली छूट मिल गई है। जमात बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के दौरान भी पाकिस्तान परस्त रहा था। हसीना ने सत्ता में लौटने के बाद इनके कई नेताओं को फांसी की सजा सुनाई। पिछले बुधवार को ही हसीना सरकार ने जमात व इसके छात्र धड़े को प्रतिबंधित किया है।

चीन व पाकिस्तान के प्रभाव पर रखनी होगी नजर

बांग्लादेश में नये हालात वहां पाकिस्तान और चीन का प्रभुत्व बढ़ा सकते हैं। ढाका के जरिए भारत को घाव देने की पाकिस्तान के मंसूबों पर शेख हसीना की सरकार ने पूरी तरह से पानी फेर दिया था। हाल ही में जब हसीना सरकार ने तीस्ता नदी की सफाई का काम भारतीय सहयोग से करवाने का फैसला किया तो यह चीन को काफी नागवार गुजरा। इस विवाद की वजह से बांग्लादेश पीएम हसीना को जुलाई, 2024 में अपनी बीजिंग यात्रा अधूरी ही छोड़ कर स्वदेश लौटना पड़ा। जबकि चीन बांग्लादेश के लिए अपनी झोली खोलने को तैयार था। अब भारत को बांग्लादेश में मालदीव जैसे हालात का सामना करना पड़ सकता है।

पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा

बांग्लादेश के साथ रिश्तों का संबंध सीधे तौर पर भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। पिछले दस वर्षों में भारत ने बांग्लादेश के जरिए पूर्वोत्तर राज्यों की कनेक्टिविटी बढ़ाने पर काफी जोर दिया है। अभी यह क्षेत्र सिलीगुड़ी मार्ग (चिकेन नेक) से ही शेष भारत से जुड़ा हुआ है। रणनीतिक विशेषज्ञ इसे भारतीय सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती मानते हैं क्योंकि चीन की इस पर नजर रहती है। इस मार्ग को तोड़ कर पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत से संपर्क काटा जा सकता है। अप्रैल, 2023 में हसीना सरकार ने चट्टोग्राम व मोंगला पोर्ट के इस्तेमाल की खुली छूट भारत को दी थी जिसे भारत की एक बड़ी रणनीतिक जीत बताई गई थी।

रिश्तों के दीर्घकालिक एजेंडा अधर में

जून, 2024 में नई दिल्ली में पीएम मोदी और हसीना ने दीर्घकालिक रिश्तों का एक एजेंडा जारी किया था जिसमें कैसे द्विपक्षीय रिश्तों को सैन्य व आर्थिक क्षेत्र में आगे ले जाना है इसका रोडमैप था। इसमें आपसी सहयोग से रक्षा उपकरण बनाने से लेकर मुक्त व्यापार समझौता करने का लक्ष्य था। अब देखना होगा कि नई सरकार इस एजेंडे पर क्या रुख अख्तियार करती है।

'बांग्लादेश हमारे देश के कुछ हिस्सों में अस्थिरता बढ़ा सकता है'

बांग्लादेश में भारत के पूर्व उच्चायुक्त और पूर्व विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने कहा कि शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन के पीछे विदेशी हाथ होने की आशंका है। बांग्लादेश में जो भी सत्ता व्यवस्था में है, भारत उसके बातचीत करेगा। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में इस राजनीतिक संकट में आर्थिक कारकों और अवसरवादियों का योगदान है। एक अस्थिर बांग्लादेश हमारे देश के कुछ हिस्सों में अस्थिरता बढ़ा सकता है। एक शांतिपूर्ण, समृद्ध, स्थिर बांग्लादेश ही भारत के हित में है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम यह सुनिश्चित करने के लिए सभी संबंधित पक्षों के साथ काम करें कि हमारे और बांग्लादेश के हित सुरक्षित रहें। 

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