Bangladesh Protest: शेख हसीना की ढाका से विदाई...सैन्य शासन और चुनाव पर संशय बरकरार, भारत ने पड़ोसी देश की हालात पर जताई चिंता
दो अलग-अलग कार्यकालों और 20 वर्षों से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान (चल रहे विरोध प्रदर्शनों में 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है) उनकी सबसे बड़ी परीक्षा में वह विफल दिख रहीं है। 76 वर्षीय शेख हसीना ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया है और बांग्लादेश को उसकी हालात पर छोड़कर भाग गईं हैं।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। 07 जनवरी, 2024 को अवामी लीग ने जब लगातार चौथी बार बांग्लादेश चुनाव में विजय हासिल की तो इसकी मुखिया शेख हसीना ने सोचा नहीं होगा कि सिर्फ आठ महीनों में ही उन्हें देश छोड़ कर भागना पड़ेगा। रिजर्वेशन कोटा पर जून, 2024 में ढाका में शुरु हुआ छात्र आंदोलन रविवार (4 अगस्त) को बहुत ही हिंसक रूप ले लिया जिसके बाद बांग्लादेश की सेना ने भी पीएम हसीना की मदद करने से इनकार कर दिया। अंतत: सोमवार (05 अगस्त) को सेना के हेलीकाप्टर से हसीना को ढाका से दिल्ली लाया गया।
माना जा रहा है कि कुछ दिनों तक यहां रहने के बाद वह लंदन जा सकती हैं। इसके साथ ही दक्षिण एशिया में भारत के सबसे विश्वस्त सरकार की भी विदाई हो गई है। बांग्लादेश का भविष्य कैसा होगा अभी यह अस्पष्ट नहीं है। वहां सैन्य शासन लंबा चलता है या जल्द ही चुनाव करवाये जाते हैं, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन कई वजहें हैं जिसके कारण बांग्लादेश के हालात भारत के लिए चिंता का कारण है।
सबसे विश्वस्त वैश्विक साझेदार रही हैं हसीना
पूरी दुनिया में कोई एक वैश्विक नेता जिस पर भारत आंख मूंद कर भरोसा कर सकता था वह बंग-बंधु शेख मुजीबुर्रहमान की पुत्री शेख हसीना थी। चाहे पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की यूपीए-दो का कार्यकाल हो या विगत दस वर्षों से पीएम नरेन्द्र मोदी की सरकार हो, शेख हसीना ने हमेशा भारतीयों हितों का ख्याल रखा। पहले, ढाका से उन्होंने पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आइएसएआइ के नेटवर्क और पाक की मदद से फल-फूल रहे भारत विरोधी कट्टरपंथियों की दुकानें बंद करवाई। वर्षों से ढाका व काक्सबाजार में छिप कर रहने वाले असम के आतंकियों का सफाया कराया।पाक समर्थित आंतकवाद के मुद्दे पर सार्क व दूसरे मंचों पर हमेशा भारत का साथ दिया। जाहिर है कि अब इस पड़ोसी देश में जो भी नई सरकार आती है उसके साथ भारत का पुराना भरोसा बनाने में समय लगेगा। भारत ने भी हसीना के हितों का ख्याल रखा। कभी वहां के अंदरूनी हालात में दखल नहीं दी। वर्ष 2015 में सीमा विवाद विधेयक पारित कराने के साथ ही 40 वर्ष पुराने विवाद का निपटारा किया। बांग्लादेश को कई सड़कों, रेल मार्गों, ऊर्जा परियोजनाओं का तोहफा दिया।
बीएनपी व कट्टरपंथी का साथ यानी भारत के साथ विश्वासघात
अवामी लीग के बाहर होने के साथ ही इस बात की संभावना है कि पीएम हसीना की सरकार में रहे कट्टरपंथियों और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) अब वहां की राजनीति में ज्यादा सक्रिय हो जाएंगे। इन दोनों के साथ भारत का रिश्ता बहुत अच्छा नहीं रहा है। पूर्व में बीएनपी की पीएम खालिदा जिया ने भारत के बजाये हमेशा चीन व पाकिस्तान को मदद पहुंचाई है। जिया ने भारत की तरफ से बार-बार आग्रह करने के बावजूद उल्फा आतंकियों पर लगाम नहीं लगाई। वर्ष 2001-2006 के दौरान जिया के दूसरे कार्यकाल में पूरा बांग्लादेश पाकिस्तानी एजेंसी आइएसआइ का सबसे बड़ा भारत विरोधी अड्डा बन गया था।इसी तरह से जिस तरह से हसीना के देश छोड़ने की खबर के बाद बंग-बंधु की मूर्तियों, भारत से संबंधित भवनों आदि को नुकसान पहुंचाया गया है वह बताता है कि वहां जमाते-इस्लामी को खुली छूट मिल गई है। जमात बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के दौरान भी पाकिस्तान परस्त रहा था। हसीना ने सत्ता में लौटने के बाद इनके कई नेताओं को फांसी की सजा सुनाई। पिछले बुधवार को ही हसीना सरकार ने जमात व इसके छात्र धड़े को प्रतिबंधित किया है।