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जिस वाघनख से शिवाजी महाराज ने अफजल खान को उतारा मौत के घाट वो कब पहुंचा लंदन, पढ़ें इतिहास के पन्नों का किस्सा

छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) का हथियार वाघनख तीन सालों के लिए लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय से वापस भारत लाया जाएगा। दरअसल इसे छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350 वीं वर्षगांठ के समारोह के हिस्से के रूप में जनता के लिए प्रदर्शित किया जाएगा। वाघनख से ही शिवाजी महाराज ने अफजल खान को मौत के घाट उतारा था।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Mon, 02 Oct 2023 10:11 AM (IST)
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तीन सालों के लिए वापस आएगा शिवाजी महाराज का वाघनख
ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रसिद्ध 'वाघ नख' यानी बाघ के पंजे वाले खंजर को तीन साल के लिए ब्रिटेन के संग्रहालय से महाराष्ट्र वापस लाया जाएगा। इसके लिए राज्य के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री सुधीर मुनगंटीवार रविवार देर रात ब्रिटेन के लिए रवाना हो गए हैं। उन्होंने रहा कि समझौते पर हस्ताक्षर के बाद वाघ नख को जल्द ही महाराष्ट्र वापस लाए जाने की उम्मीद है।

ऐसे में बहुत से लोगों के मन में सवाल है कि आखिर यह वाघ नख क्या है और इसका महत्व क्या है। बहुत से लोगों के मन में यह सवाल भी आया होगा कि बहुत-सी चीजें ब्रिटिश शासन के दौरान भारत से ब्रिटेन गई हैं, लेकिन उनमें-से कितनी चीजें वापस आई है। इस खबर में हम आपको वाघ नख के महत्व और इतिहास के साथ ब्रिटिश संग्रहालय से वापस आई भारतीय ऐतिहासिक विरासतों के बारे में बताएंगे।

अफजल खान को उतारा था मौत के घाट

गौरतलब हो कि छत्रपति शिवाजी महाराज 17वीं सदी के भारतीय योद्धा राजा थे। उन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी और उन्हें भारत का राष्ट्रीय नायक माना जाता है।

अफजल खान मराठों के प्रतिद्वंद्वी राज्य बीजापुर सल्तनत का सेनापति था। 1659 में, शिवाजी और अफजल ने एक शांति संधि पर बातचीत करने के लिए मुलाकात की। हालांकि, माना जाता है कि इस बातचीत के दौरान अफजल ने शिवाजी को खत्म करने की योजना बनाई थी।

प्रचलित कथाओं के मुताबिक, शिवाजी को अफजल खान की इस योजना के बारे में पहले से पता था और वे छुपे हुए वाघ नख या बाघ के पंजे वाले खंजर लेकर उस बैठक में शामिल हुए थे। बातचीत के बीच जैसे ही अफजल खान ने शिवाजी पर हमला करने की कोशिश की, तो शिवाजी ने उसे मारने के लिए वाघ नख का इस्तेमाल किया और उसे मौत के घाट उतार दिया।

मालूम हो कि वाघ नख एक पारंपरिक भारतीय हथियार है, जिसमें एक क्रॉसबार या दस्ताने से जुड़े चार या पांच घुमावदार ब्लेड होते हैं। इसे त्वचा और मांसपेशियों को काटने के लिए डिजाइन किया गया है। यह काफी नुकीले होते हैं और शरीर के किसी भी अंग को गहराई तक चोटिल कर सकते हैं।

तीन साल के लिए वापस आएगा वाघ नख

प्रसिद्ध वाघ नख को तीन साल के लिए ब्रिटेन से वापस भारत लाया जाएगा। फिलहाल, यह खंजर लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में प्रदर्शित है। संग्रहालय के मुताबिक, इस वाघनख को एक केस में रखा गया है, जिसपर लिखा है 'शिवाजी का वाघनख' जिससे उन्होंने मुगल सेनापति को मार गिराया।

कैसे लंदन पहुंचा वाघनख?

विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम के जानकारी के मुताबिक, यह वाघनख ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स ग्रांट डफ को दिया गया था। दरअसल, डफ को 1818 में तत्कालीन सातारा रियासत का राजनीतिक एजेंट नियुक्त किया गया था। मराठा साम्राज्य के तत्कालीन पेशवा ने डफ को यह वाघनख तोहफे में दिया था। बाद में इस वाघनख को डफ के एक वंशज ने लंदन के इस संग्रहालय को उपहार के तौर पर दे दिया था।

3 अक्टूबर को समझौते पर होगा हस्ताक्षर

भारत सरकार तथा विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय द्वारा वाघ नख की वापसी के लिए 3 अक्टूबर, 2023 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने की उम्मीद है। इस साल के अंत में वाघ नख के भारत वापस आने की उम्मीद है और इसे छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350 वीं वर्षगांठ के समारोह के हिस्से के रूप में जनता के लिए प्रदर्शित किया जाएगा।

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वाघनख को लेकर शुरू हुआ राजनीतिक विवाद

शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे ने सवाल किया है कि क्या ब्रिटेन से लाया जा रहा वाघ नख छत्रपति शिवाजी महाराज का है और क्या यह स्थायी रूप से भारत में रहेगा। ठाकरे ने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वाघ नख स्थायी रूप से भारत वापस आ जाए और इसे महाराष्ट्र के एक संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाए।

भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक

वाघ नख की भारत में वापसी देश के लिए एक महत्वपूर्ण मामला है। यह खंजर छत्रपति शिवाजी महाराज की बहादुरी और विदेशी शासन के खिलाफ उनकी लड़ाई का प्रतीक माना जाता है। वाघ नख की वापसी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की भी याद दिलाती है। खंजर भारतीय कला और इतिहास का एक अद्वितीय और मूल्यवान नमूना है।

9 साल में वापस आईं 200 से अधिक कलाकृतियां

मालूम हो कि केंद्र सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, पिछले 9 सालों में विभिन्न देशों से लगभग 240 प्राचीन कलाकृतियां वापस भारत लाई गई हैं। इसमें 72 ऐसी कलाकृतियां है, जिन्हें उनके देश को वापस सौंपा जाएगा। वापस लाई गई सैकड़ों कलाकृतियों में नटराज की करीब 1100 साल पुरानी मूर्ति और नालंदा के म्यूजियम से करीब छह दशक पहले गायब हुई बुद्ध की 12वीं सदी की कांस्य प्रतिमा शामिल हैं। 

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