खाद्य पदार्थ के पैकेट पर निर्माता का विवरण और निर्माण की तिथि न होने से दुकानदार पर लगा 50 हजार जुर्माना, 24 साल पुराने केस में SC ने सुनाया फैसला
Supreme Court Verdict इस मामले में दुकान में बिक रहे पैकेट बंद खाद्य पदार्थ (शक्कर की चाशनी से बनी चीज) को जांचने में उसमें कोई मिलावट नहीं पायी गई लेकिन पैकेट पर निर्माता का विवरण पता व निर्माण की तिथि न लिखी होने के कारण दुकानदार को मिसब्रांडिंग का दोषी माना गया और 50000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अक्सर छोटी - छोटी दुकानों विशेषकर गांव और कस्बों में स्थानीय स्तर पर निर्मित पैकेट बंद खाद्य पदार्थ बिकते हैं जिनमें न तो निर्माता का नाम पता विवरण होता है और न ही निर्माण के साथ एक्सपाइयरी तिथि लिखी होती है। लोग ऐसा सामान बेचते भी हैं और खरीदते भी हैं लेकिन बहुत लोग यह नहीं जानते कि ये नियमों का उल्लंघन है और मिसब्रांडिंग में आता और इसके लिए सजा भी हो सकती है। ऐसा ही एक मामला कोलकाता का था जिसमें निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने दुकानदार को खाद्य अपमिश्रण निवारक कानून के उल्लंघन का दोषी माना है और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है।
इस मामले में दुकान में बिक रहे पैकेट बंद खाद्य पदार्थ (शक्कर की चाशनी से बनी चीज) को जांचने में उसमें कोई मिलावट नहीं पायी गई लेकिन पैकेट पर निर्माता का विवरण, पता व निर्माण की तिथि न लिखी होने के कारण दुकानदार को मिसब्रांडिंग का दोषी माना गया और 50000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मामला 24 साल पुराना होने और दुकानदार की आयु करीब 60 साल होने के आधार पर नये कानून का लाभ देते हुए तीन महीने की कैद की सजा घटा कर 50000 रुपये जुर्माने तक सीमित कर दी है। वैसे निचली अदालत से लेकर हाई कोर्ट तक ने दुकानदार को अपराध के समय लागू खाद्य अपमिश्रण निवारक कानून के तहत तीन महीने कैद और 1000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। और उसके साथी को 2000 रुपये जुर्माने की सजा दी थी। यह फैसला न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया औ न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वारले की पीठ ने 7 मार्च 2024 को सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने सजा घटाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 20 में इस बात का निषेध है कि अपराध घटित होने पर लागू कानून में तय सजा से ज्यादा सजा किसी को नहीं दी जा सकती लेकिन तय सजा से कम सजा देने पर कोई रोक नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि जब अपराध घटित हुआ था उस समय खाद्य अपमिश्रण निवारक कानून 1954 लागू था जो कि निरस्त हो चुका है और अब उसकी जगह खाद्य सुरक्षा और मानक कानून 2006 लागू है। नये कानून में मिसब्रां¨डग पर धारा 52 में तीन लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है लेकिन कैद की सजा का प्रावधान इसमें नहीं है। पीठ ने पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि दोषी को नये कानून का लाभ देकर सजा घटाई जा सकती है और पूर्व में कोर्ट ने ऐसा किया भी है। कोर्ट ने सजा घटा कर 50000 रुपये जुर्माना कर दी और दूसरे अभियुक्त की 2000 रुपये जुर्माने की सजा कायम रखी।
इस मामले में छह दिसंबर 2000 को फूड इंस्पेक्टर ने जांच के दौरान कलकत्ता की एक दुकान से शक्कर की चाशनी से बने एक खाद्य पदार्थ का पैकेट जांच के लिए लिया और उसकी जांच की गई। जांच में खाद्य पदार्थ में मिलावट नहीं पाई गई लेकिन पैकेट पर निर्माता का विवरण पता और निर्माण की तिथि न लिखे होने पर दुकानदार और उसके एक साथी को निचली अदालत ने छह महीने के कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई।
हाई कोर्ट ने भी अपील में दोष सिद्धि तो बरकरार रखी लेकिन छह महीने की कैद घटा कर तीन महीने कैद कर दी जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट आया था। दुकानदार की दलील थी कि उसने पैकेट बंद पदार्थ का निर्माण नहीं किया है बल्कि कोलकाता की एक कन्फेशनरी से खरीदा है लेकिन वह इसका कोई सबूत नहीं दे पाया इसलिए अदालत ने उसकी यह दलील नही मानी।