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Siachen conflict: आइये जानें सियाचिन को लेकर क्या है विवाद और क्यों है भारत के लिए अहम

Siachen conflict पिछले 35 साल से पाकिस्तान और भारत की सेना एक दूसरे के आमने-सामने डटी है। दोनों ही देश सियाचिन पर अपना अधिकार जताते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 26 Sep 2019 08:20 AM (IST)
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Siachen conflict: आइये जानें सियाचिन को लेकर क्या है विवाद और क्यों है भारत के लिए अहम
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Siachen conflict: 18,875 फुट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन दुनिया का एक अनोखा जंगी मोर्चा माना जाता है। यहां पिछले 35 साल से पाकिस्तान और भारत की सेना एक दूसरे के आमने-सामने डटी है। दोनों ही देश इसपर अपना अधिकार जताते हैं। इस विवादित ग्लेशियर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच 12 से ज्यादा बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई हल नहीं निकला।

अब भारतीय सेना सियाचिन ग्लेशियर पर कुछ स्थानों को भारतीय नागरिकों के लिए खोलने की तैयारी कर रही है। इस फैसले के पीछे भारतीय सेना का मकसद आम लोगों को सेना के जीवन से जोड़ना भी है। वह भारतीय जनता को दिखाना चाहते हैं कि जवान कितने मुश्किल हालात में सियाचिन में तैनात हैं। भारत पूरे 76 किलोमीटर लंबे सियाचिन ग्लेशियर और इसके सभी उपनदीय ग्लेशियरों पर नियंत्रण रखता है। आइये जानते हैं सियाचिन को लेकर क्या है विवाद और क्यों यह भारत के लिए अहम है। 

विवाद की वजह

भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद 1972 में जब शिमला समझौता हुआ तो सियाचिन के एनजे-9842 नामक स्थान पर युद्ध विराम की सीमा तय हो गई। इस बिंदु के आगे के हिस्से के बारे में कुछ नहीं कहा गया। अगले कुछ वर्षों में बाकी के हिस्से में गतिविधियां होने लगीं।

पाकिस्तान ने कुछ पर्वतारोही दलों को वहां जाने की अनुमति भी दे दी। इसी के साथ पाकिस्तान के कुछ मानचित्रों में यह भाग उनके हिस्से में दिखाया गया। इससे चिंतित होकर भारत ने 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के ज़रिए एनजे-9842 के उत्तरी हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। भारत ने एनजे-9842 के जिस हिस्से पर नियंत्रण किया है, उसे सालटोरो कहते हैं।

फिर की हमले की कोशिश की

25 अप्रेल, 1984 को पाकिस्तानी सेना एक बार फिर सियाचिन पर चढ़ाई करने की कोशिश की, लेकिन खराब मौसम के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा। आखिरकार, 25 जून, 1987 को पाकिस्तान ने 21 हजार फीट की ऊंचाई पर कायद नामक एक पोस्ट बनाने में सफलता प्राप्त की। लेकिन ऑपरेशन राजीव के तहत ऑपरेशन राजीव मेजर वरिंदर सिंह के नेतृत्व में एक भारतीय टास्क फोर्स ने पोस्ट पर कब्जा करने के लिए कई हमले किए। तीन असफल प्रयासों के बाद, नायब सूबेदार बाना सिंह के नेतृत्व में सेना ने पोस्ट पर कब्जा कर लिया।

भारत-पाक में युद्ध विराम संधि पर हुए हस्ताक्षर

2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक युद्धविराम संधि पर हस्ताक्षर किए गए। तब से इस क्षेत्र में गोलीबारी और बमबारी बंद हो गई है लेकिन दोनों देशों की सेना यहां तैनात है।

दुर्गम हालात जवानों के सबसे बड़े दुश्मन

भारत और पाकिस्तान दोनों देश के जितने सैनिक यहां आपसी लड़ाई के कारण नहीं मारे गए हैं, उससे भी कहीं ज्यादा सैनिक यहां ऑक्सीजन की कमी और हिमस्खलन के कारण मारे गए हैं। यहां ज्यादातर समय शून्य से भी 50 डिग्री नीचे तापमान रहता है। एक अनुमान के मुताबिक अब तक दोनों देशों को मिलाकर 2500 जवानों को यहां अपनी जान गंवानी पड़ी है। 2012 में पाकिस्तान के गयारी बेस कैंप में हिमस्खलन के कारण 140 जवान मारे गए थे।

किसके पास क्या?

सियाचिन का उत्तरी हिस्सा, कराकोरम भारत के पास है। पश्चिम का कुछ भाग पाकिस्तान के पास है। सियाचिन का ही कुछ भाग चीन के पास भी है। एनजे-9842 ही भारत और पाकिस्तान के बीच वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा है।

सामरिक महत्व

पूरी तरह बर्फ सा ढका सियाचिन सामरिक रूप से भारत के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है। यहां से लेह, लद्दाख और चीन के कुछ हिस्सों पर नजर रखने में भारत को मदद मिलती है।

-70 डिग्री तक पहुंच जाता है पारा

सियाचिन पूर्वी काराकोरम रेंज पर स्थित है। यह हिमालय पर्वत शृंखला के 35.421226 डिग्री उत्तर, 77.109540 डिग्री पूर्व, पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 5,753 मीटर है। इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां तापमान साल भर बेहद कम रहता है। पारा -50 से लेकर -70 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।

लद्दाख आने वाले पर्यटक सियाचिन ग्लेशियर तक आने देने की करते हैं मांग

सेना के सूत्रों का कहना है कि लद्दाख और उसके आसपास तक आने वाले भारतीय प्रसिद्ध कारगिल के युद्ध के मोर्चों तक आने देने की मांग करते रहते हैं, जैसे टाइगर हिल जहां से भारतीय सेना ने बड़ी ही बहादुरी और अदम्य साहस से पाक घुसपैठियों को खदेड़ा था। सियाचिन ग्लेशियर का बेस कैंप समुद्र तल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर है, जबकि सियाचिन के और ऊंचे इलाके 21 हजार फीट से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं।

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