पराली जलाने से निकलने वाला धुआं एक बड़ी आबादी का जीना कर रहा मुहाल, एक्सपर्ट व्यू
किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए अभी तक जो भी योजनाएं बनी हैं वे कागजों पर तो लुभावनी हैं लेकिन खेतों में व्यावहारिक नहीं। जरूरत है जमीनी स्तर पर किसानों के साथ मिलकर उनकी व्यावहारिक दिक्कतों को समझते हुए इसके निराकरण के स्थानीय उपाय खोजे जाएं।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Wed, 19 Oct 2022 01:01 PM (IST)
पंकज चतुर्वेदी। पिछले वर्ष करोड़ों रुपये के विज्ञापन चले थे, जिसमें किसी ऐसे रासायनिक घोल की चर्चा थी, जिसके डालते ही धान के अवशेष यानी पराली गायब हो जाती और उसे जलाना नहीं पड़ता, लेकिन जैसे ही मौसम का मिजाज ठंडा हुआ दिल्ली-एनसीआर को स्माग यानी धुंध ने ढक लिया। इस बार भी सितंबर विदा हुआ और अक्टूबर आया कि हरियाणा-पंजाब से पराली जलाने के समाचार आने लगे।
चूंकि इस बार बरसात देर तक रही, जिसने खेती-किसानी को भी खासा नुकसान पहुंचाया है, लिहाजा इससे हवा की गुणवत्ता के आंकड़े अभी ठीक दिख रहे हैं, लेकिन जान लें इस बार पराली जलाए जाने से धुएं का संकट अधिक गहरा होगा, क्योंकि एक तो मौसम की अनियमितता सामने आ रही है और ऊपर से बीते पंजाब विधानसभा चुनाव में किए वादे के अनुसार पराली जलाने वाले किसानों पर दर्ज आपराधिक मुकदमे को वापस लेने का बात कही जा रही है।
पराली की समस्या
गत वर्ष दिल्ली एनसीआर में वायु गुणवत्ता सूचकांक साढ़े चार सौ से अधिक था तो मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और फिर सारा ठीकरा पराली पर फोड़ दिया गया। हालांकि इस बार शीर्ष अदालत इससे असहमत है कि करोड़ों लोगों की सांस घोंटने वाले प्रदूषण का कारण महज पराली जलाना है। विदित हो कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 से 2021 के दौरान पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली को पराली की समस्या से निपटने के लिए कुल 1,726.67 करोड़ रुपये जारी किए थे, जिसका सर्वाधिक हिस्सा 793.18 करोड़ रुपये पंजाब को दिया गया।पराली जलाने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही
विडंबना है कि इसी राज्य में 2021 में पराली जलाने की 71,304 घटनाएं दर्ज की गईं। हालांकि ये पिछले साल के मुकाबले कम थीं, लेकिन हवा में जहर भरने के लिए पर्याप्त। पंजाब में 2020 के दौरान पराली जलाने की 76,590 घटनाएं सामने आई थीं, जबकि 2019 में 52,991 ऐसी घटनाएं हुई थीं। हरियाणा का आंकड़ा भी कुछ ऐसा ही है। जाहिर है आर्थिक मदद, रासायनिक घोल, मशीनों से पराली के निपटान जैसे प्रयोग भले सरल और लुभावने लग रहे हैं, लेकिन किसान को ये आकर्षित नहीं कर रहे या उनके लिए लाभकारी नहीं हैं। इस बार तो वर्षा के दो लंबे दौर–सितंबर के अंत और अक्टूबर में आए। इससे पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों में धान की कटाई में एक से दो सप्ताह की देरी हुई है।अब अगली फसल के लिए अपने खेत को तैयार करने को लेकर किसान चिंतित हैं। वे मशीन से अवशेष के निपटान के तरीके में लगने वाले समय के लिए राजी नहीं हैं और पराली को आग लगाने को ही सबसे सरल तरीका मान रहे हैं। उपग्रह से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक पंजाब एवं हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। पराली जलाने की खबरें उत्तर प्रदेश से भी आने लगी हैं। किसानों का पक्ष है कि पराली को मशीन से निपटाने पर प्रति एकड़ कम से कम पांच हजार रुपये का खर्च आता है। फिर अगली फसल के लिए इतना समय होता नहीं कि गीली पराली को खेत में पड़े रहने दें।