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White Paper: 'UPA सरकार की प्राथमिकता में नहीं था सामाजिक विकास', श्वेत पत्र में मोदी सरकार ने और क्या कुछ कहा?

श्वेत पत्र में सरकार ने बताया है कि 2004 से 2014 के बीच समाज और ग्रामीण विकास से जुड़े 14 मंत्रालयों और विभागों में संप्रग सरकार ने कुल बजटीय व्यय का 94060 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किया। यह इस अवधि में कुल बजटीय अनुमान का 6.4 प्रतिशत था।इसमें कहा गया है कि इस निराशाजनक तस्वीर के मुकाबले मोदी सरकार में कल्याण के माध्यम से सशक्तिकरण का रास्ता चुना है।

By Jagran News Edited By: Sonu Gupta Updated: Thu, 08 Feb 2024 08:05 PM (IST)
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UPA सरकार की प्राथमिकता में नहीं था सामाजिक विकासः मोदी सरकार।
मनीष तिवारी, नई दिल्ली। मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था पर लाए गए श्वेत पत्र में याद दिलाया है कि संप्रग सरकार के वर्षों में किस तरह सामाजिक क्षेत्र की कई योजनाओं के लिए पैसा खर्च करने में कोताही की गई और इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि सरकार की योजनाओं का प्रभाव ही खत्म हो गया।

सरकार ने आंकड़ों के साथ उन दिनों की नीतिगत निष्क्रियता और दिशाहीनता बयान की है और यह भी बताया है कि मोदी सरकार के दस सालों में सशक्त और प्रभावी डिलिवरी सिस्टम ने लोककल्याण की पूरी तस्वीर ही सुनहरी कर दी है।

श्वेत पत्र में सरकार ने क्या कहा?

श्वेत पत्र में सरकार ने बताया है कि 2004 से 2014 के बीच समाज और ग्रामीण विकास से जुड़े 14 मंत्रालयों और विभागों में संप्रग सरकार ने कुल बजटीय व्यय का 94,060 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किया। यह इस अवधि में कुल बजटीय अनुमान का 6.4 प्रतिशत था।

इसके विपरीत राजग सरकार के दौरान 2014 से 2024 के दौरान बजटीय व्यय की एक प्रतिशत से भी कम राशि अप्रयुक्त रही। ये सभी मंत्रालय सीधे तौर पर सामाजिक और ग्रामीण विकास से जुड़े हैं। इनमें कृषि और किसान कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, अल्पसंख्यक कार्य, ग्रामीण विकास, भूमि संसाधन, सामाजिक न्याय, दिव्यांगजन सशक्तीकरण, जनजातीय कार्य, महिला और बाल विकास, युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय शामिल हैं।

भारतीय परिवारों के लिए स्वास्थ्य व्यय भी था चिंता का विषय

सरकार ने श्वेत पत्र में कहा है कि संप्रग शासन के दौरान भारतीय परिवारों के लिए स्वास्थ्य व्यय भी चिंता का विषय था। उस समय स्वास्थ्य व्यय गरीब परिवारों के लिए गरीबी का मार्ग तो था ही, यह लोगों की जेबें भी खाली कर रहा था। इसके लिए सरकार ने 2014 में देश के कुल स्वास्थ्य व्यय (टीएचई) में आउट ऑफ पाकेट व्यय (ओओपीई) 64.2 प्रतिशत होने के तथ्य का हवाला दिया है।

सरकार ने दी थी अनुत्पादनकारी खर्च को प्राथमिकता  

मोदी सरकार ने यह तथ्य भी बताया है कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने अनुत्पादनकारी खर्च को प्राथमिकता दी और इसका मतलब था-निवेश के बजाय उपभोग के लिए महत्वपूर्ण धन का आवंटन। उदाहरण के लिए छठे केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों पर गलत तरीके से अमल तथा 2008 की कृषि कर्ज माफी और ऋण राहत योजना, जिस पर 52 हजार करोड़ रुपये (जीडीपी का लगभग एक प्रतिशत) खर्च हुए।

सरकार ने विश्व बैंक के शोध का दिया हवाला

सरकार ने अपनी बात के समर्थन में विश्व बैंक के एक शोध पत्र का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि कर्ज माफी से बेहतर निवेश, खपत या बढ़ी हुई मजदूरी का कोई सुबूत नहीं मिलता है। एक अर्थशास्त्री ने भी टिप्पणी की कि सरकार (संप्रग) आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए डरपोक रवैया अपना रही है। इसका ध्यान विकास को बढ़ावा देने के बजाय वोट हासिल करने के लिए लोकलुभावन नीतियों पर अधिक है।

मोदी सरकार ने चुना सशक्तिकरण का रास्ता

श्वेत पत्र में कहा गया है कि इस निराशाजनक तस्वीर के मुकाबले मोदी सरकार में कल्याण (सामाजिक) के माध्यम से सशक्तिकरण का रास्ता चुना गया है। बुनियादी सुविधाओं तक सभी की पहुंच को प्राथमिकता देते हुए सबका साथ, सबका विकास की विचारधारा को अपनाया गया है और इसे साकार करने के लिए मिशन मोड में काम करने का दृष्टिकोण अपनाया गया है। यह मानसिकता किसी को पीछे न छोड़ने की है। सामाजिक योजनाएं संतृप्ति यानी सौ प्रतिशत कवरेज की तरफ बढ़ रही हैं। योग्य लाभार्थियों का चयन किया गया है और फर्जी लाभार्थियों को सिस्टम से हटा दिया गया है। यह नजरिया लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाता है।

सशक्त निगरानी तंत्र को सरकार ने किया लागू  

मोदी सरकार ने यह रेखांकित किया है कि उसने किस तरह तकनीक का इस्तेमाल करके सशक्त निगरानी तंत्र लागू किया है। जैम ट्रिनिटी यानी जनधन, आधार और मोबाइल की त्रयी ने एक नए युग को जन्म दिया है। डीबीटी यानी प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण से लीकेज की आशंका समाप्त हो गई है।

उदाहरण के लिए एलपीजी सब्सिडी हस्तांतरण से लीकेज में 24 प्रतिशत की कमी आई है। आधार की उपयोगिता ने डीबीटी के तहत 1167 करोड़ लाभार्थियों को 34 करोड़ रुपये से अधिक की सुविधा प्रदान की है।

इसके साथ ही सरकार ने स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे सामाजिक कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन से देश के ढांचे में बुनियादी बदलाव का रास्ता तैयार किया है। वन नेशन, वन राशन कार्ड के माध्यम से राज्यों में राशन कार्ड की निर्बाध पोर्टेबिलिटी का विस्तार देश भर की पूरी आबादी तक हो गया है। 

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