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भारतीय समुद्री क्षेत्र में रूस की किलो क्‍लास और जर्मनी की टाइप 209 सबमरीन का आज भी कम नहीं हुआ रुतबा

भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा में रूस के साथ जर्मनी का भी सहयोग कम नहीं रहा है। शुरुआत में भारत ने इन दोनों से ली गई सबमरीन से ही अपने जलक्षेत्र की रक्षा की है। ये अब भी जारी है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 15 Oct 2022 12:54 PM (IST)
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समुद्र में आज भी भारत को सुरक्षा देती है रूस और जर्मनी की सबमरीन

नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। भारत ने समुद्र में अपनी ताकत को बढ़ाने की शुरुआत सोवियत संघ के जमाने से की थी। भारत की सुरक्षा में रूस और पूर्व सो‍वियत संघ का बड़ा योगदान रहा है। इसके अलावा जर्मनी का भी इसमें सहयोग रहा है। ये पार्टनरशिप आज भी मजबूती के साथ जारी है। समुद्र की गहराईयों में आज भी सोवियत संघ और  जर्मनी से ली गई सबमरीन भारत की सुरक्षा में अहम योगदान देती हैं। 

सिंधुदुर्ग क्‍लास सबमरीन 

इसी तरह से किलो क्‍लास या सिंधुदुर्ग क्‍लास सबमरीन जो प्रोजेक्‍ट 877 का हिस्‍सा हैं, वो सभी सोवियत संघ के सहयोग से तैयार की गई हैं। इनमें INS Sindhughosh (S55), INS Sindhuraj (S57), INS Sindhuratna (S59), INS Sindhukesri (S60), INS Sindhukriti (S61), INS Sindhuvijay (S62), INS SindhuRashtra (S65) शामिल हैं।

क्‍या है इनकी खासियत 

ये सभी 3100 टन वजनी सबमरीन हैं। इनकी अधिकतम लंबाई की बात करें तो ये करीब 238 फीट है और चौड़ाई करीब 32 फीट है। ये सभी डीजल-इलेक्ट्रिक इंजन चलित हैं। रफ्तार की बात करें तो इनकी अधिकतम गति सतह पर 20 किमी प्रतिघंटे की और समुद्र की गहराई में करीब 35 किमी प्रतिघंटे की होती है। ये करीब 45 दिनों तक समुद्र में बनी रह सकती है और इसमें 52 क्रू मैंबर्स एक बार में रह सकते हैं। ये अधिकतम 300 मीटर की गहराई तक जा सकती है। इससे जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल को लान्‍च किया जा सकता है। इन सभी में एंटी सबमरीन मिसाइल, समुद्र में माइंस बिछाने और टारपीडो मौजूद हैं। S55 को अप्रैल 1986, S57 अक्‍टूबर 1987, S59 दिसंबर 1988, S60 दिसंबर 1988, S61 दिसंबर 1989, S62 मार्च 1991 और S65 जुलाई 2000 में भारतीय सेना में शामिल की गई थी।

शिशुमार क्‍लास सबमरीन 

शिशुमार जो टाइप 209 क्‍लास वैरिएंट हैं में INS Shishumar (S44), INS Shankush (S45), INS Shalki (S46), INS Shankul (S47) शामिल हैं। ये सभी सबमरीन 2000 टन से कम वजनी हैं और इन्‍हें जर्मनी के सहयोग से तैयार किया गया या खरीदा गया है। इनकी लंबाई 211 फीट और चौड़ाई करीब 21 फीट है। ये सभी डीजल-इलेक्ट्रिक इंजन से चलती हैं। सतह पर ये 20 किमी प्रतिघंटा और समुद्र की गहराई में ये 41 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती हैं। इनमें वायर गाइडेड टारपीडो लान्‍च करने और माइंस बिछाने की क्षमता है। इनमें 40-50 कर्मचारी तक एक बार में मौजूद रह सकते हैं। ये अधिकतम 260 फीट की गहराई में जा सकती हैं। S44 सितंबर 1986, S45 नवंबर 1986, S46 फरवरी 1992, S47 नवंबर 1986 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। 

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