तौकीर रजा और सपा की दोस्ती में तीन मर्तबा पड़ चुकी है दरार
बरेली [जासं]। मौलाना तौकीर रजा खां और समाजवादी पार्टी के बीच सियासी दोस्ती को अभी साढ़े पांच माह हुए हैं। परवान चढ़ने से पहले दोस्ती में तीन मर्तबा दरार पड़ चुकी है। वजह, सामने से तो मौलाना की दंगा आयोग के गठन समेत पांच मांगे हैं लेकिन पर्दे के पीछे सरकार में कद के हिसाब से ओहदे का दबाव है। यही वजह है कि रूठने-मनाने का सिलसिला लंबा हो
By Edited By: Updated: Thu, 05 Dec 2013 07:19 PM (IST)
बरेली [जासं]। मौलाना तौकीर रजा खां और समाजवादी पार्टी के बीच सियासी दोस्ती को अभी साढ़े पांच माह हुए हैं। परवान चढ़ने से पहले दोस्ती में तीन मर्तबा दरार पड़ चुकी है। वजह, सामने से तो मौलाना की दंगा आयोग के गठन समेत पांच मांगे हैं लेकिन पर्दे के पीछे सरकार में कद के हिसाब से ओहदे का दबाव है। यही वजह है कि रूठने-मनाने का सिलसिला लंबा होता जा रहा है।
सपा से पहले मौलाना कांग्रेस के हमसफर रह चुके हैं। वहां भी दोस्ती लंबी नहीं चली। सांसद प्रवीण सिंह ऐरन से रिश्ते बिगड़े तो मौलाना कांग्रेस से दूर हो गए। तब उन्हें सपा के रूप में नया दोस्त मिला। यहां भी खटास पैदा हो गई है। दरअसल, मौलाना ने सियासी सफर मजबूत इरादों के साथ शुरू किया। आला हजरत खानदान का चश्म-ओ-चिराग होने के बावजूद उन्होंने अपनी सियासी पार्टी बनाई। सात अक्टूबर 2001 को आल इंडिया इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल यानी आइएमसी की नींव डाली। पहले ही चुनाव में इस पार्टी की अच्छी बोहनी हुई। नगर निगम में दस पार्षद जीते। महापौर प्रत्याशी को 36 हजार वोट मिले। विधानसभा में आइएमसी का खाता 2011 के चुनाव में खुला। शहजिल इस्लाम भोजीपुरा से विधायक बने। यह बात और है कि शहजिल और उनके पिता इस्लाम साबिर आइएमसी से नाता तोड़ चुके हैं। मौलाना की पार्टी को पांच विधानसभा क्षेत्रों में 32 हजार से लेकर 14 हजार तक वोट मिले। अब जब लोकसभा में सपा से समझौते की बात चली तो मौलाना सरकार में कद के हिसाब से वजन चाहते थे। उन्हें मंत्री तो बनाया गया लेकिन कैबिनेट का दर्जा नहीं मिला। यह कसक लखनऊ से लालबत्ती का लैटर आने पर भी उठी थी। पढ़ें : भाजपा जैसा कर गुजरने वाली पार्टी को समर्थन
आइएमसी के सूत्र बताते हैं-उच्च स्तरीय बातचीत में वायदा भी हुआ था, जो पूरा आजतक नहीं किया जा सका है। यही वजह है कि मौलाना बेचैन हैं। एक तरफ वह सद्भावना सम्मेलन करके मुलायम सिंह यादव की तारीफ करते नहीं थक रहे और दूसरी तरफ मुख्यमंत्री से मिलकर सरकार से नाराजगी जता आते हैं। कभी वह गठबंधन के तकाजे के खिलाफ जाकर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से सियासी रिश्ते पर हामी भर देते हैं। बरेली में भी देश बचाओ-देश बनाओ रैली के मंच से कह दिया था, मुसलमानों में बेचैनी है, उस पर नेताजी से अलग बात करेंगे। सच यह भी है कि सरकार ने उनकी मांगे पूरी नहीं की हैं। न तो दंगा आयोग का गठन हुआ, न पीसीएस जे में उर्दू पेपर बहाल किया गया और न दंगे के मुकदमों में बेगुनाहों के नाम निकालने की प्रक्रिया शुरू हुई। अब जब राज्यसभा सीटों को भरने की बात चली तो मौलाना ने अपनी नाराजगी फिर से जता दी है। साढ़े पांच माह में तीन मर्तबा इस्तीफे की बात फैल चुकी है। चूंकि रुहेलखंड में मुस्लिम वोटों को सहेजे रखने की कोशिशें हो रही हैं, ऐसे में नाराज मौलाना को हर बार मना लिया जाता है।
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