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MARCOS Commando: मौत को मात देकर तैयार होते हैं मार्कोस, पलक झपकते ही कर देते हैं दुश्मनों का सफाया

MARCOS Commando भारत में कई घातक और खतरनाक स्पेशल फोर्स हैं जिनके नाम से दुश्मनों के पसीने छूटने लगते हैं। इन्हीं में से एक मार्कोस कमांडो है। मार्कोस कमांडो मौत को मात देकर तैयार होते हैं जिनकी ट्रेनिंग तीन सालों की होती है।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Thu, 25 May 2023 05:53 PM (IST)
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भारत के सबसे खतरनाक फोर्स में गिने जाते हैं मार्कोस कमांडो
नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। इस साल जी-20 समिट की अध्यक्षता भारत कर रहा है। इसकी बैठक श्रीनगर में आयोजित की गई थी, जहां सुरक्षा की कड़ी तैयारी की गई थी। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, जब यहां पर कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर की बैठक हुई। इस दौरान पूरे क्षेत्र में सुरक्षा की जिम्मेदारी मार्कोस और एनएसजी कमांडो को दी गई थी।

दरअसल, मार्कोस को भारत के सबसे खतरनाक कमांडो में गिना जाता है। इसकी ट्रेनिंग भी बहुत ही खतरनाक होती है, हर किसी के लिए इसको क्वालीफाई कर पाना संभव नहीं होता है। इतना ही नहीं, मार्कोस के नाम से ही दुश्मनों की रूह कांप जाती है। इस खबर में हम आपको मार्कोस कमांडो से जुड़े सभी सवालों के जवाब देंगे।

कौन होते हैं मार्कोस कमांडो? (What is Marcos Commando)

मार्कोस या मरीन कमांडो फोर्स भारत के सबसे खतरनाक और घातक कमांडो होते हैं। हालांकि, यह इंडियन नेवी की स्पेशल ऑपरेशंस फोर्स यूनिट है, लेकिन इनकी ट्रेनिंग इस तरह से दी जाती है कि यह आसानी से जमीनी स्तर से लेकर आसमान तक दुश्मनों का खात्मा कर सकते हैं। भारतीय नौसेना की यह स्पेशल यूनिट फरवरी, 1987 में बनाई गई थी। इन्हें दुनिया के सभी आधुनिक हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है।

क्यों बनाई गई थी स्पेशल यूनिट?

1987 में मार्कोस कमांडो की स्पेशल यूनिट इसलिए बनाई गई थी, क्योंकि उस वक्त आतंकवादी हमले और समुद्री लुटेरों का आतंक काफी तेजी से बढ़ने लगा था। उस पर काबू पाने और सबक सिखाने के लिए एक स्पेशल फोर्स की जरूरत थी। उस दौरान इस यूनिट की स्थापना की गई थी। दरअसल, मार्कोस की ट्रेनिंग अमेरिकी नेवी सील्स की तरह कराई जाती है। फिलहाल, इसमें 1200 कमांडो मौजूद हैं। इनका चयन बहुत ही कठिन ट्रेनिंग के बाद किया जाता है।

यूनिट को तैयार करने के पीछे की कहानी

इस स्पेशल यूनिट को बनाने के पीछे का इतिहास 1955 से शुरू होता है। दरअसल, उस समय भारतीय सेना बल ने ब्रिटिश स्पेशल बोट सर्विस की मदद से कोच्चि में एक डाइविंग स्कूल की स्थापना की। इसका लक्ष्य आर्मी के लोगों को फ्रॉगमैन या कॉम्बैटेंट डाएइवर, यानी लड़ाकू गोताखोर बनाना था।

हालांकि, 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़े युद्ध में इन्हें सफलता नहीं मिली, जिसके लिए उनकी ट्रेनिंग को जिम्मेदार माना गया। इसके बाद 1986 में भारतीय नौसेना ने एक स्पेशल फोर्स यूनिट को बनाने का फैसला किया, जिसका काम छापा मरना, एंटी टेररिस्ट ऑपरेशन करना और समुद्र में हो रहे लूटपाट को कम करना था।

इसके लिए 1955 के ट्रेनिंग सेंटर के 3 वॉलिंटीयर अधिकारियों का चुना गया, जिन्होंने संयुक्त राज्य के नौसेना के ट्रेनिंग सेंटर, कोरोनाडो में ट्रेनिंग ली। 1987 में जब यह यूनिट तैयार हुआ, तो इसका नाम मरीन स्पेशल फोर्स रखा गया। उस दौरान इस यूनिट में 3 ऑफिसर ही मौजूद थे। हालांकि, 1991 में इस यूनिट का नाम बदलकर मरीन कमांडो फोर्स रख दिया गया।

क्यों कठिन मानी जाती है मार्कोस कमांडो की ट्रेनिंग?

मार्कोस कमांडो की ट्रेनिंग बहुत ही ज्यादा कठिन होती है, जिसका एक आम व्यक्ति अंदाजा भी नहीं लगा सकता है। दरअसल, मार्कोस के लिए चुने गए सैनिकों की ट्रेनिंग तीन सालों के लिए होती है, इसमें हजारों सैनिकों में से कुछ ही सैनिकों को ट्रेनिंग के लिए आगे भेजा जाता है।

इसमें सैनिकों की तीन साल की कठिन ट्रेनिंग कराई जाती है। ट्रेनिंग के दौरान सैनिकों को 24 घंटे में से मात्र 4-5 घंटे तक ही सोने दिया जाता है। तड़के सुबह से शुरू हुई ट्रेनिंग देर शाम या रात तक भी चलती रहती है। हर परिस्थिति में सैनिक को अपनी ट्रेनिंग पूरी करनी होती है।

मार्कोस के लिए सैनिकों की ट्रेनिंग सिर्फ समुद्र में नहीं होती, बल्कि इन्हें अलग-अलग जगह पर प्रशिक्षित किया जाता है। भारत में राजस्थान, तवांग, सोनमर्ग और मिजोरम जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में इन्हें ट्रेनिंग देकर तैयार किया जाता है, ताकि जगह ऑपरेशन को अंजाम दे सके।

ट्रेनिंग में क्या-क्या होते हैं टास्क?

मार्कोस को ट्रेनिंग के दौरान कई कठिन टास्क कराए जाते हैं। इसमें से एक होता है कि सैनिकों की पीठ पर 20-25 किलो का वजन रखकर उन्हें दौड़ाया जाता है। इसके अलावा, सैनिकों को भारी वजन लेकर कीचड़ के अंदर कम से कम समय में 800 मीटर की दौड़ पूरी करनी होती है।

इनकी ट्रेनिंग भी जान को जोखिम में डालने वाली होती है। ट्रेनिंग के दौरान सैनिकों को 8-10 हजार मीटर की ऊंचाई से पैराशूट से कूदना होता है। इन सभी पड़ावों को पार करने वाले सैनिकों को आगे की ट्रेनिंग के लिए अमेरिका में नेवी सील के साथ ट्रेनिंग दी जाती है। इन सबके बाद मार्कोस कमांडो तैयार होते हैं।

कितने ऑपरेशन में तैनात हुए मार्कोस कमांडो?

मार्कोस 1987 से अब तक कई सारे बड़े ऑपरेशन में अपनी भूमिका निभा चुके हैं और उन्हें एक सफल अंजाम तक पहुंचाया है। पहली बार मार्कोस की तैनाती 1990 के दशक में वुलर झील में की गई थी।  

साल 1987 में हुए पवन ऑपरेशन को मार्कोस कमांडो ने ही सफलता दिलाई थी। इसके बाद, साल 1988 में कैक्टस ऑपरेशन , 1991 में ताशा ऑपरेशन, साल 1992 में जबरदस्त ऑपरेशन ,1999 में कारगिल वार , 2008 में  ब्लैक टॉरनैडो नाडो ऑपरेशन और 2015 में हुए राहत ऑपरेशन समेत इस स्पेशल कमांडो फोर्स ने कई बड़े ऑपरेशन में शानदार प्रदर्शन किया है।

मार्कोस कमांडो को मगरमच्छ और दाढ़ीवाला फौज भी कहा जाता है। इन्होंने हर बार साबित किया है कि इन्हें सबसे निर्भीक सैनिक क्यों कहा जाता है। मार्कोस, दुश्मनों के लिए मौत का दूसरा नाम रहा है। इनके नाम से भी हर बार दुश्मनों की रूह कांप जाती है।  

देश के पांच सबसे खतरनाक कमांडो (Top Commandos Of India)

मार्कोस को भारत के सबसे खतरनाक कमांडो में गिना जाता है। इसके अलावा भी देश में ऐसे कई कमांडो है, जिनके नाम से भी दुश्मनों के पसीने छूटने लगते हैं।

इनमें से एक एनएसजी कमांडो (NSG Commando) है। एनएसजी का पूरा नाम राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड है। इसे साल 1984 में बनाया गया था, जिनकी ट्रेनिंग 14 महीने की होती है। यह गृह मंत्रालय के तहत काम करते हैं। NSG कमांडो ने 26/11 और अक्षरधाम हमले जैसे बड़े और घातक आतंकी हमलों में दुश्मनों की खाट खड़ी कर दी थी।

इसके बाद आती है, कोबरा कमांडो फोर्स (CoBRA Commando)। इसका पूरा नाम कमांडो बटालियन फॉर रिजॉल्यूट एक्शन है। इस कमांडो फोर्स की शुरुआत साल 2008 में की गई थी। इनकी ट्रेनिंग मात्र तीन महीने की होती है, लेकिन यह भी काफी कठिन होती है। इन्हें खास तौर पर नक्सल वॉरफेयर और गोरिल्ला ट्रेनिंग दी जाती है। इनकी गिनती दुनिया के बेस्ट पैरामिलिट्री फोर्स में की जाती है।

पैरा एसएफ कमांडो (Para SF Commando) फोर्स को पैराशूट कमांडो के नाम से भी जाना जाता है। इसे 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय तैयार किया गया था। इनकी ट्रेनिंग नौ महीने की होती है। इस फोर्स के जवानों ने डोगरा रेजिमेंट के साथ मिलकर पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था।

साल 1984 में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी, उसके बाद 1985 में एसपीजी कमांडो (SPG Commando) फोर्स का गठन किया गया था। इनका मुख्य काम प्रधानमंत्री की सुरक्षा करना होता है। इन जवानों के पास में कई तरह के हथियार होते हैं, जिसका अंदाजा लगा पाना भी दुश्मनों के लिए मुश्किल होता है।