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आदिवासियों की कोरी चिंता, कागजों में सिमटा रहा पेसा कानून; अधिकारों से अब तक अनजान आदिवासी समाज

PESA Act 1996 आदिवासी वोटरों को लेकर हर दल चिंतित दिखते हैं और उन्हें साधने के लिए तरह-तरह के जतन करते हैं लेकिन जब बात उनके अधिकारों को लागू कराने की आती है तो सरकारों की उदासीनता साफ दिखती है। इसिलिए 1996 में बने पेसा कानून को लागू करने में सरकारों ने रूचि नहीं ली। अधिसूचित दस राज्यों में से पांच राज्यों में 2014 के बाद नियमावली बन सकी।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Thu, 26 Sep 2024 08:21 PM (IST)
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1996 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार लेकर आई थी कानून। (File Image- ANI)

जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। चुनावों के समय हर राजनीतिक दल की चिंता के केंद्र में रहने वाले आदिवासियों के प्रति सरकारें वास्तविकता में कितनी फिक्रमंद रही हैं, इसका प्रमाण पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम (पेसा कानून) देता है।

जनजाति वर्ग को सामाजिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार देने के लिए 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा बनाए गए इस कानून को लागू करने में सरकारों ने रुचि ही नहीं ली। अधिसूचित दस राज्यों में से पांच राज्यों में 2014 के बाद नियमावली बन सकी, जबकि झारखंड और ओडिशा में अब नियमावली बनने जा रही है।

पंचायतीराज मंत्रालय ने रखी राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस

पंचायतीराज मंत्रालय की राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में उभरी चिंताएं इस बात को लेकर थीं कि कानून कागजों में सिमटा रहा और इस कानून के तहत मिले अधिकारों से आदिवासी समाज अब तक अनजान है। पेसा अधिनियम को धरातल पर उतारते हुए प्रभावी बनाने पर गुरुवार को नई दिल्ली के डॉ. आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस पंचायतीराज मंत्रालय द्वारा रखी गई।

पेसा अधिनियम के तहत अधिसूचित दस राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और गुजरात के त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों, अधिकारियों ने भाग लिया। यह विमर्श आदिवासी बहुल पंचायतों के प्रतिनिधियों को पेसा कानून के प्रति जागरूक और प्रोत्साहित करने के लिए था।

सरकारों के स्तर पर बरती गई उदासीनता

हालांकि, मंच से बताए गए तथ्यों में यह स्वीकारने को लेकर कतई संकोच नहीं था कि इस कानून को लागू करने के प्रति सरकारों के स्तर से बेहद उदासीनता बरती गई। केंद्रीय पंचायतीराज राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने दो टूक कहा कि 1996 में अटल सरकार ने यह कानून बनाया, लेकिन फिर आदिवासियों के लिए सरकारी वनवास हो गया। खास तौर पर 2004 से 2014 तक इस कानून को लागू कराने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। बीते दस वर्षों से काम शुरू हुआ है।

उनकी यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है, 'यदि मैं इस विभाग का मंत्री न होता तो जान ही नहीं पाता कि पेसा कानून क्या है?' मध्य प्रदेश के पंचायतीराज एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल ने भी कहा कि यह विचार-विमर्श का विषय है कि 1996 में बने इस कानून को लागू होने में इतनी देर क्यों लगी। हालांकि, उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में इसे 2022 में नियमावली बनाकर लागू कर दिया गया। बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए गए। पेसा समितियों के माध्यम से करीब 11 हजार विवादों का निपटारा किया गया और तीन आदिवासियों को उनकी भूमि वापस कराई गई।

सचिव बोले- तेजी से काम हो रहा

हिमाचल प्रदेश के पंचायतीराज मंत्री अनिरुद्ध सिंह और तेलंगाना की पंचायतीराज मंत्री डी. अनुसूइया सीताक्का ने अपने विषय रखे। इस मंथन के दौरान मंत्रालय के सचिव विवेक भारद्वाज ने भी स्पष्ट चिंता जताई कि 28 वर्षों तक इस कानून को लागू करने के लिए नियमावली नहीं बनाई गई। हजारों प्रशिक्षण चलते रहे, लेकिन पेसा के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं की गई। पेसा अभी भी सिर्फ कागजों पर है और आदिवासियों को उनके अधिकार ही नहीं मालूम।

उन्होंने बताया कि अब तेजी से इस पर काम हो रहा है। सात राज्यों को समन्वयक बनाकर सात विषयों के ट्रेनिंग मैन्युअल बनाए गए हैं। कार्यक्रम में ग्राम पंचायत विकास योजना पोर्टल का संशोधन वर्जन लांच किया गया, जिसमें अब पेसा अधिसूचित क्षेत्रों में विकास कार्ययोजना पंचायत नहीं, बल्कि गांव के स्तर पर बनेगी।