न्याय व्यवस्था में सराहनीय पहल, न्यायिक पारदर्शिता की ओर बढ़ते कदम
देश के किसी भी कोने में बैठे हुए नागरिक को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही देखने में सुविधा हो। जनता का विश्वास और लाइव-स्ट्रीमिंग के माध्यम से न्यायिक पारदर्शिता की ओर बढ़ते कदम ही सर्वोच्च न्यायालय के ध्येय वाक्य ‘यतो धर्मः ततो जयः’ की सार्थकता को सिद्ध करेंगे।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Sat, 08 Oct 2022 04:17 PM (IST)
अभिनव कुमार। भारत के इतिहास में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संवैधानिक पीठ में होने वाली कार्यवाही का सीधा प्रसारण एक सार्थक प्रयास जान पड़ता है। उल्लेखनीय है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत संविधान की व्याख्या या कानून से जुड़े किसी भी महत्वपूर्ण मामले का निर्णय कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा किया जाना चाहिए। ऐसी पीठ को संविधान पीठ कहा जाता है। सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग यानी सीधे प्रसारण का आरंभ न्यायालय के प्रति लोकनिष्ठा, पारदर्शिता और जवाबदेही का मार्ग प्रशस्त करेगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस ऐतिहासिक कदम से एक ओर पारदर्शिता सुनिश्चित करने तो दूसरी ओर ‘ओपन कोर्ट’ के सिद्धांत को व्यावहारिक रूप देने के लिए 27 सितंबर 2022 से संविधान पीठ के मामलों की लाइव-स्ट्रीमिंग को सफलतापूर्वक आरंभ कर दिया है। हालांकि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमणा की सेवानिवृत्ति के कार्यक्रम को भी प्रसारित किया गया था, जो लाइव-स्ट्रीमिंग शुरू करने की दिशा में पहला सफल प्रयास था। पहले ही दिन तीन संविधान पीठ की सुनवाई का सीधा प्रसारण किया गया। यह प्रसारण एनआइसी वेबकास्ट द्वारा यूट्यूब प्लेटफार्म पर किया गया।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आइसीटी) के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय नीति और कार्ययोजना के तहत प्रभावी ढंग से काम कर रही है। ई-समिति के द्वारा कोविड महामारी के दौरान ई-फाइलिंग शुरू की गई थी और बाद में वर्चुअल हियरिंग शुरू की गई, जिससे हाइब्रिड सिस्टम की ओर कोर्ट अग्रसर हुआ। वर्तमान में छह उच्च न्यायालय भी अपनी कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग करते हैं।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति ने कोर्ट की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग और रिकार्डिंग के लिए प्रारूप माडल नियमों को भी मंजूरी दी है, जिसने लाइव-स्ट्रीमिंग के सुचारु प्रसारण का मार्ग प्रशस्त किया। वैसे जब हम अन्य देशों के साथ तुलना करते हैं, तो अमेरिका ने वर्ष 1955 से केवल आडियो रिकार्डिंग और मौखिक तर्कों के टेप की अनुमति दी है। इंग्लैंड में अदालत की कार्यवाही को एक मिनट देरी से वेबसाइट पर प्रसारित किया जाता है, जिसे संवेदनशील मामले में रोका जा सकता है। आस्ट्रेलिया में विविध न्यायालयों के अपने नियमों के अधीन लाइव या विलंबित प्रसारण की अनुमति है।
लाइव स्ट्रीमिंग के लाभ
हमारे देश में यह एक लोकप्रिय अवधारणा है कि लोग मुकदमेबाजी या अदालत जाने को दुर्भाग्य मानते हैं। ऐसे में यह लाइव-स्ट्रीमिंग के माध्यम से किया गया यह सार्थक प्रयास निश्चित रूप से गरीब और वंचित वर्गों के लिए पारदर्शिता और न्याय का अधिकार सुनिश्चित करके समाज में कानूनी साक्षरता में सुधार करेगा। इससे अनेक प्रकार की चुनौतियों को मिटाते हुए समग्र रूप से जन जागरूकता पैदा करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। हालांकि ऐसी भी चिंताएं हैं कि सूचनाओं को विकृत और तथ्य के साथ छेड़छाड़ करके प्रसारित किया जा सकता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय को चाहिए कि अपने प्लेटफार्म पर वीडियो के प्रसारण एवं कापीराइट संबंधी मुद्दों को लेकर भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए दिशा-निर्देशों का एक मसौदा तैयार करे, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि देश के किसी भी कोने में बैठे हुए नागरिक को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही देखने में सुविधा हो। जनता का विश्वास और लाइव-स्ट्रीमिंग के माध्यम से न्यायिक पारदर्शिता की ओर बढ़ते कदम ही सर्वोच्च न्यायालय के ध्येय वाक्य ‘यतो धर्मः ततो जयः’ की सार्थकता को सिद्ध करेंगे।(ये लेखक के निजी विचार हैं)[कानून और नीति ममले के विशेषज्ञ]