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फर्जी जज ने ठिकाने लगा दी करोड़ों की जमीन, कोर्ट से लेकर फैसले तक की कहानी पर नहीं होगा यकीन

गुजरात के गांधीनगर में एक वकील (मॉरिस सैमुअल क्रिश्चियन) ने फर्जी कोर्ट फर्जी जज और फर्जी याचिकाकर्ता तैयार कर लगभग सौ एकड़ सरकारी जमीन अपने नाम कर ली। इस मामले में अब एक के बाद एक नई कड़ी खुलने लगी है। ऑर्डर पारित करने वाले फर्जी जज मॉरिस के कई पीड़ित सामने आ रहे हैं। आइए जानते हैं इस फर्जीवाड़े की पूरी कहानी...

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Thu, 24 Oct 2024 07:17 PM (IST)
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फर्जी जज मॉरिस सैमुअल क्रिश्चियन (Photo Jagran)
राज्य ब्यूरो/डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुजरात की एक अदालत ने बुधवार को मॉरिस सैमुअल क्रिश्चियन को 11 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया। आरोपी कथित तौर पर 2019 से फर्जी कोर्ट चलाकर फर्जी फैसले सुना रहा था। क्रिश्चियन को गुजरात में कथित तौर पर फर्जी अदालत चलाने और जमीन विवाद से संबंधित आदेश जारी करने के आरोप में मंगलवार को गिरफ्तार किया गया था। आइए जानते हैं इस फर्जी जज की कहानी...

शिकायत के बाद पर्दाफाश

गुजरात के गांधीनगर में एक वकील ने फर्जी कोर्ट, फर्जी जज और फर्जी याचिकाकर्ता तैयार कर लगभग एक सौ एकड़ सरकारी जमीन को अपने नाम कर लिया। अहमदाबाद के एक जमीन विवाद में शिकायत के बाद इसका पर्दाफाश हुआ। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, क्रिश्चियन ने अहमदाबाद में फर्जी मध्यस्थता केंद्र स्थापित किया और सरकारी जमीन से संबंधित आदेश जारी किए। उसने खुद को जज के तौर पर पेश किया, जिससे कई लोगों को लगा कि वे वैध कानूनी कार्यवाही में लगे हुए हैं।

मोटी फीस लेकर सुनाता फैसला

क्रिश्चियन ने रूम को एक प्रामाणिक अदालत का का रूप दिया। अपने सहयोगियों को अदालत के कर्मचारी के तौर पर नियुक्त किया, ताकि लोगों को यह लगे कि वे असली कोर्ट में अपना केस लड़ रहे हैं। इतना ही नहीं वह, मोटी फीस लेकर भी अपना फैसला सुनाता था, जिससे लोगों को यह लगता कि सच में अपना केस जीत गए।

कैसे शुरू हुई कहानी?

जुलाई 2007 में मॉरिस सैमुअल क्रिश्चियन ने बार काउंसिल में कानूनी लाइसेंस के लिए आवेदन किया। हालांकि, दिसंबर 2007 में उनके दस्तावेजों के सत्यापन के बाद, यह पुष्टि हुई कि उन्हें आवश्यक योग्यताएं पूरी करनी होंगी।

पुलिस ने जांच में पाया कि मॉरिस सैमुअल क्रिश्चियन ने 2002 में एलएलबी की डिग्री और नई दिल्ली में अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान से बी.कॉम की डिग्री प्राप्त की, जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। यानी ये मामला भी फर्जी निकला।

गुजरात बार काउंसिल ने अंतर्राष्ट्रीय बार काउंसिल में उनकी सदस्यता के दावे को खारिज कर दिया, यह स्पष्ट करते हुए कि ऐसी सदस्यता किसी को भी भारतीय अदालतों में कानून का अभ्यास करने के लिए अधिकृत नहीं करती है।

गांधीनगर जिलाधिकारी ने आरोपित वकील के फर्जी कोर्ट रूम को सील कर दिया था, लेकिन कुछ समय बाद उसने इसे फिर शुरू कर दिया। 2019 में क्रिश्चियन ने पालडी क्षेत्र में एक भूखंड से संबंधित राजस्व रिकॉर्ड में अपना नाम जोड़ने का प्रयास करते हुए सरकारी भूमि के स्वामित्व का दावा करने वाले एक ग्राहक के पक्ष में एक आदेश जारी किया।

बिना किसी आधिकारिक मंजूरी के क्रिश्चियन ने अपने मुवक्किल को आश्वस्त किया कि सरकार ने उन्हें आधिकारिक मध्यस्थ नियुक्त किया है। धोखाधड़ी का पता तब चला जब भद्रा में सिटी सिविल कोर्ट के रजिस्ट्रार हार्दिक देसाई ने अहमदाबाद के करंज पुलिस स्टेशन में क्रिश्चियन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।

एक मामला ये भी

गांधीनगर के अडालज में अहमदाबाद मेहसाणा हाइवे पर स्थित हनुमान मंदिर की जमीन को भी मोरिस ने कब्जाने का प्रयास किया, लेकिन ट्रस्ट के सदस्य संतों ने राजस्व कार्यालय से पता किया तो उसके फर्जी होने का पता चला।

15 साल से चला रहा था फर्जी कोर्ट

सिटी सिविल कोर्ट अहमदाबाद के निर्देश पर कारंज पुलिस ने गांधीनगर के वकील मोरिस सेम्युअल क्रीश्चियन को गिरफ्तार कर पूछताछ की तो पता चला कि वह गांधीनगर के सेक्टर-15 में कई वर्षों से फर्जी कोर्ट चला रहा था। पहले वह सरकारी जमीन या विवादित जमीन की खोज करता, इसके बाद किसी व्यक्ति को तैयार कर अपनी फर्जी कोर्ट में एक याचिका लगवाकर सुनवाई करता।

ऐसे खुली फर्जी जज की पोल

मॉरिस सैमुअल क्रिश्चियन सरकारी अधिकारी अथवा कोर्ट के समक्ष वह खुद को कोर्ट का आर्बिट्रेटर बताता था। अहमदाबाद पालड़ी के बाबूजी छनाभाई ठाकोर की जमीन पर कब्जा करने के लिए मोरिस ने स्वयं की फर्जी कोर्ट से अपने ही पक्ष में फैसला दिया तो सिटी सिविल जज की कोर्ट ने पूछा कि यह आदेश किसने और किन दस्तावेजों के आधार पर दिया। इसके बाद उसका फर्जीवाड़ा सामने आ गया। कोर्ट के निर्देश पर मोरिस के खिलाफ केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया। आगे की जांच जारी है।

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