'अनुसूचित जाति में उपवर्गीकरण संविधान के अनुरूप नहीं', जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने SC के फैसले पर की टिप्पणी
उच्चतम न्यायालय ने आज एक ऐतिहासिक फैसले में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (एससी/एसटी)के आरक्षित श्रेणी समूहों को आरक्षण का लाभ देने के लिए उनके पिछड़ेपन के आधार पर विभिन्न समूहों में उप-वर्गीकृत करने के राज्यों के अधिकार को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने बहुमत से असहमति जताई। उन्होंने इस मामले में कहा अनुसूचित जाति की अलग सूची तैयार करने का मूल आधार हिंदू समाज में व्याप्त छुआछुत है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ में अपना अलग फैसला देते हुए न्यायाधीश बेला एम त्रिवेदी ने अनुसूचित जाति में उपवर्गीकरण को संविधान के प्रविधानों के खिलाफ बताया है। न्यायाधीश त्रिवेदी के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 341, जिसमें अनुसूचित जातियों का विवरण होता है, में राज्यों द्वारा हस्तक्षेप की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
न्यायाधीश त्रिवेदी ने पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा 2004 में सुनाए गए फैसले पर सवाल उठाते हुए 2020 में तीन न्यायाधीशों के खंडपीठ द्वारा मामला सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंपे जाने को भी कानूनी प्रक्रिया के तय मानदंडों के खिलाफ बताया।
'हिंदू समाज में व्याप्त है छुआछुत'
न्यायाधीश बेला त्रिवेदी ने 84 पन्नों में दिये अपने फैसले में संविधान सभा में हुई बहस और हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अनुसूचित जाति की अलग सूची तैयार करने का मूल आधार हिंदू समाज में व्याप्त छुआछुत है और इसे सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों (ओबीसी) से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है।समाज में समानता लाने के लिए ये सकारात्मक उपाय
न्यायाधीश त्रिवेदी के अनुसार अनुसूचित जाति में क्रीमीलेयर द्वारा अलग वर्गीकरण की इजाजत भी अनुच्छेद 341 नहीं देता है, जिसमें पूरी जाति अनुसूचित जाति के रूप में दर्ज है। उनके अनुसार अनुसूचित जाति एक समान समूह को प्रतिबिंबित करता है, उसमें विभाजन नहीं किया जा सकता है। उनके अनुसार समाज में समानता लाने के लिए सकारात्मक उपाय किये जा सकते हैं, लेकिन ये कानूनी व संवैधानिक प्रविधानों के खिलाफ नहीं होने चाहिए।
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