Sukhdev Thapar Birth Anniversary: भगत सिंह, राजगुरु के साथ हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए थे सुखदेव
पंजाबी खत्री परिवार में जन्मे सुखदेव के पिता रामलाल थे जबकि मां का नाम रल्ली देवी था। सुखदेव के जन्म से करीब तीन महीने पहले ही उनके पिता का निधन हो गया था। ताऊ लाला चिंतराम ने ही सुखदेव का लालन-पालन किया।
By Vinay SaxenaEdited By: Vinay SaxenaUpdated: Sun, 14 May 2023 11:00 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। भगत सिंह और राजगुरु के साथ हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटकने वाले सुखदेव थापर की 15 मई को जयंती है। स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में भगत सिंह के साथ मार्क्सवादी सोशलिस्ट क्रांतिकारी सुखदेव थापर को भी हमेशा यादव किया जाता है। सुखदेव लोगों को आंदोलन में जोड़ने से पहले उन्हें क्रांति का मतलब समझाना चाहते थे।
जन्म से 3 महीने पहले ही हो गया था पिता का निधन
सुखदेव थापर का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब के लुधियाना में हुआ था। पंजाबी खत्री परिवार में जन्मे सुखदेव के पिता रामलाल थे, जबकि मां का नाम रल्ली देवी था। सुखदेव के जन्म से करीब तीन महीने पहले ही उनके पिता का निधन हो गया था। ताऊ लाला चिंतराम ने ही सुखदेव का लालन-पालन किया।
बचपन से ही थी देशभक्ति की भावना
सुखदेव के मन में बचपन से ही देशभक्ति की भावना थी। 8 सितंबर 1928 को ब्रिटिश शासन के विरोध में काम कर रहे क्रांतिकारियों ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना की थी। सुखदेव इसकी सेंट्रल कमेटी के सदस्य थे। सुखदेव पंजाब के संगठन प्रमुख थे।नेशनल कॉलेज में भगत सिंह से मिले सुखदेव
सुखदेव ने साल 1921 में नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। यहीं पर सुखदेव की मुलाकात भगत सिंह से हुई। बाद में वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए, जो 1928 में सोशलिस्ट हो गया।
नौजवान भारत सभा नाम से खोला बड़ा संगठन
सुखदेव को उनके साथी दयाल, स्वामी, और अन्य कई नामों से भी पुकारते थे। मार्क्सवादी छबील दास और सोहन सिंह जोश से मुलाकात के बाद सुखदेव का झुकाव मार्क्सवाद की ओर हो गया। इसके बाद उन्होंने 'नौजवान भारत सभा' नाम से एक बड़ा संगठन खोलने का फैसला लिया। इस संगठन का उद्देश्य पंजाब के युवा छात्रों को मजदूरों और किसानों के बीच काम करने के लिए उत्साह पैदा करना था।लाला लाजपत राय की मौत का लिया बदला
1928 में साइमन कमीशन के विरोध के दौरान लाठीचार्ज हुआ। इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मौत हो गई। लाला जी की मौत के बाद उत्तर भारत के युवाओं में भारी रोष छा गया। सुखदेव ने उनकी मौत का बदला लेने का फैसला किया। सुखदेव इसकी कार्ययोजना बनाई और भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और राजगुरू के साथ मिलकर इसे सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाया। इस मामले में 1929 में गिरफ्तार होने पर वे प्रमुख आरोपी बनाए गए।