Move to Jagran APP

सुप्रीम कोर्ट आजीवन कारावास मामले पर सुनवाई को सहमत, याचिका पर नोटिस जारी कर दिल्ली सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को आजीवन कारावास से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई को सहमत हो गया। इसमें यह बताने का आग्रह किया गया है कि क्या आजीवन कारावास का मतलब पूरे जीवन के लिए होगा या नहीं। जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर चंद्रकांत झा द्वारा दायर याचिका पर जवाब मांगा है।

By Agency Edited By: Sonu Gupta Updated: Fri, 09 Feb 2024 08:00 PM (IST)
Hero Image
सुप्रीम कोर्ट आजीवन कारावास मामले पर सुनवाई को सहमत।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को आजीवन कारावास से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई को सहमत हो गया। इसमें यह बताने का आग्रह किया गया है कि क्या आजीवन कारावास का मतलब पूरे जीवन के लिए होगा या नहीं। क्या इसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432 के तहत प्राप्त शक्तियों द्वारा कम या माफ किया जा सकता है। सीआरपीसी की यह धारा सजा निलंबित करने या कम करने की शक्ति से संबंधित है।

कोर्ट ने दिल्ली सरकार को जारी किया नोटिस

जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर चंद्रकांत झा द्वारा दायर याचिका पर जवाब मांगा है। चंद्रकांत हत्या के तीन मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। इन मामलों में 2006 और 2007 में यहां तिहाड़ जेल के समीप बिना सिर के तीन शव पाए गए थे।

याचिका में क्या कहा गया है?

वकील ऋषि मल्होत्रा के माध्यम से दायर अपनी याचिका में चंद्रकांत ने कहा कि उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 201 (अपराध के साक्ष्यों को गायब करना) के तहत दोषी ठहराया गया। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक निचली अदालत द्वारा उसे दी गई मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था। याचिका में कहा गया है कि यदि आजीवन कारावास का मतलब अपनी अंतिम सांस तक कैद में रहना होता है तो यह दोषी व्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

यह भी पढ़ेंः Parliament: 'चलिए आप लोगों को सजा देनी है', जब लंच टेबल पर PM Modi के साथ मिले विपक्षी सांसद

अंतिम सांस तक कारावास की सजा देना असंवैधानिक

याचिका में कहा गया है कि हत्या के अपराध के लिए अंतिम सांस तक कारावास की सजा देना असंवैधानिक है, क्योंकि यह किसी व्यक्ति के सुधार का मौका पूरी तरह से छीन लेता है और इससे राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित छूट नीति और नियमों का उल्लंघन होता है। इसमें कहा गया, 'यह उल्लेख करना भी उचित है कि सीआरपीसी की धारा 432 के तहत किसी व्यक्ति को सजा से छूट देना एक वैधानिक अधिकार है।'

यह भी पढ़ेंः 'अगर जज प्रशिक्षण ले सकते हैं तो वकील क्यों नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने कहा- प्रमाण पत्र के बिना नहीं दी जानी चाहिए प्रैक्टिस की अनुमति