राम जन्म भूमि मामले में मध्यस्थता करेंगे तीन दक्षिण भारतीय, जानें इनके बारे में पूरा ब्यौरा
विवादित राम जन्म भूमि मामले को अब मध्यस्थता से सुलझाने के लिए कोर्ट ने तीन लोगों को तय किया है। इनमें श्रीश्री रविशंकर पूर्व जज खुलीफुल्लाह और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू का नाम शामिल है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 08 Mar 2019 03:01 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। विवादित राम जन्म भूमि मामले को अब मध्यस्थता से सुलझाने के लिए कोर्ट ने तीन लोगों को तय किया है। इनमें जानें-मानें आर्ट ऑफ लीविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मोहम्मद इब्राहिम खुलीफुल्लाह और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू का नाम शामिल है। इसको इत्तफाक ही कहा जाएगा कि ये तीनों ही दक्षिण भारतीय हैं और तीनों ही तमिलनाडु से ताल्लुक रखते हैं।
हालांकि मध्यस्थों का नाम सामने आते ही इनको लेकर राजनीतिक सुगबुगाहट और विरोध शुरू हो गया है। जिनके नाम पर सबसे अधिक शोर सुनाई दे रहा है उनमें श्रीश्री रविशंकर का नाम सबसे बड़ा है। एआईएमआईएम के नेता और लोकसभा सांसद असदुद्दीन औवेसी ने उनका विरोध करते हुए कहा है कि वह शुरू से ही विवादित जमीन पर राम मंदिर बनने की बात कहते रहे हैं, ऐसे में वह निष्पक्ष नहीं हो सकते हैं। उन्होंने मध्यस्थता पर कोर्ट की बात को स्वीकार करते हुए कहा है कि मध्यस्थता हो लेकिन इसमें श्रीश्री रविशंकर शामिल नहीं होने चाहिए।
श्रीश्री रविशंकर
बहरहाल, इस मामले में श्रीश्री रविशंकर का नाम चर्चित नाम है। पिछले वर्ष उन्होंने कहा था कि वह इस मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता करने को भी तैयार हैं। हालांकि उस वक्त भी उनकी काफी आलोचना हुई थी और इस मामले में शामिल हिंदु पक्ष ने ही उनकी इस अपील को सिरे से खारिज कर दिया था।
बहरहाल, इस मामले में श्रीश्री रविशंकर का नाम चर्चित नाम है। पिछले वर्ष उन्होंने कहा था कि वह इस मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता करने को भी तैयार हैं। हालांकि उस वक्त भी उनकी काफी आलोचना हुई थी और इस मामले में शामिल हिंदु पक्ष ने ही उनकी इस अपील को सिरे से खारिज कर दिया था।
जहां तक श्रीश्री रविशंकर की बात है तो आपको बता दें कि उनकी पहचान एक आध्यात्मिक गुरू के तौर पर है। आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्रीश्री का जन्म तमिलनाडु में 13 मई 1956 को हुआ था। उनके पिता वेंकट रत्नम बड़े भाषाकोविद थे। आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेते हुए उनके पिता ने उनका नाम रविशंकर रखा था। उनके पिता ने उन्हें महेश योगी को सौंप दिया था। अपनी विद्वता के कारण रविशंकर महेश योगी के प्रिय शिष्य बन गये। उनके नाम के आगे श्रीश्री होने के पीछे एक विवाद वजह बना था। दरअसल, प्रख्यात सितार वादक रविशंकर ने आरोप लगाया था कि वह उनके नाम का इस्तेमाल ख्याति पाने के लिए कर रहे हैं। इसके बाद उन्होंने अपने नाम के आगे श्रीश्री लगा लिया था।
जीवन परिचय
रविशंकर लोगों को सुदर्शन क्रिया सशुल्क सिखाते हैं। इसके बारे में वो कहते हैं कि 1982 में दस दिवसीय मौन के दौरान कर्नाटक के भद्रा नदी के किनारे लयबद्ध सांस लेने की क्रिया एक कविता या एक प्रेरणा की तरह उनके जेहन में उत्पन्न हुई। उन्होंने इसे सीखा और दूसरों को सिखाना शुरू किया। 1997 में उन्होंने इंटरनेशनल एसोसियेशन फार ह्यूमन वैल्यू की स्थापना की जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उन मूल्यों को फैलाना है जो लोगों को आपस में जोड़ती है। श्रीश्री रविशंकर को वर्ष 2016 में भारत सरकार ने पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। इसके अलावा उन्हें अमेरिका ने वर्ष 2007 में नेशनल वेटरैन्स फाउंडेशन अवार्ड, ईटीवी ने 2007 में वर्षद कन्नडिगा, वर्ष 2006 में मंगोलिया का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार आर्डर पोल स्टार 2006, मिल चुका है। नवंबर 2017 में उन्होंने योगगुरू बाबा रामदेव की तरह ही 'श्री श्री तत्वा' ब्रांड नाम से रिटेल बाजार में उतरने की बात कही थी। उन्होंने एक मीडिया चैनल से बातचीत में ऐसे अगले दो सालों में 1000 फ्रेंचाइजी स्टोर खोलने की बात कही थी।
रविशंकर लोगों को सुदर्शन क्रिया सशुल्क सिखाते हैं। इसके बारे में वो कहते हैं कि 1982 में दस दिवसीय मौन के दौरान कर्नाटक के भद्रा नदी के किनारे लयबद्ध सांस लेने की क्रिया एक कविता या एक प्रेरणा की तरह उनके जेहन में उत्पन्न हुई। उन्होंने इसे सीखा और दूसरों को सिखाना शुरू किया। 1997 में उन्होंने इंटरनेशनल एसोसियेशन फार ह्यूमन वैल्यू की स्थापना की जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उन मूल्यों को फैलाना है जो लोगों को आपस में जोड़ती है। श्रीश्री रविशंकर को वर्ष 2016 में भारत सरकार ने पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। इसके अलावा उन्हें अमेरिका ने वर्ष 2007 में नेशनल वेटरैन्स फाउंडेशन अवार्ड, ईटीवी ने 2007 में वर्षद कन्नडिगा, वर्ष 2006 में मंगोलिया का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार आर्डर पोल स्टार 2006, मिल चुका है। नवंबर 2017 में उन्होंने योगगुरू बाबा रामदेव की तरह ही 'श्री श्री तत्वा' ब्रांड नाम से रिटेल बाजार में उतरने की बात कही थी। उन्होंने एक मीडिया चैनल से बातचीत में ऐसे अगले दो सालों में 1000 फ्रेंचाइजी स्टोर खोलने की बात कही थी।
इन मामलों में भी कर चुके हैं मध्यस्थता की अपील
जहां तक राम जन्म भूमि मामले में उनकी मध्यस्थता की बात है तो आपको बता दें कि उन्होंने इस मुद्दे पर पहले भी कई बार निजी राय जाहिर की है कि मुसलमानों को बड़ा दिल दिखाते हुए राम मंदिर बनने देना चाहिए। मुसलमान जहां भी मस्जिद बनाना चाहे उसके लिए रविशंकर मदद करने के लिए तैयार हैं। हालांकि वह इससे पहले भी चार बार अलग-अलग मामलों में मध्यस्थ्ता कर चुके हैं। लेकिन इनमें से किसी भी मामले में उन्हें सफलता हासिल नहीं हो सकी। कश्मीर में आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद पत्थरबाजी और हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए उन्होंने वानी से बेंगलुरू में बातचीत की थी। इसके अलावा वह कई अलगाववादी नेताओं से भी मिले थे। इसका मकसद घाटी में शांति व्याप्त करना था, लेकिन उनकी इस पहल का कोई नतीजा नहीं निकल सका था। इससे पहले 2017 में उन्होंने नक्सलवाद को खत्म करने के लिए मध्यस्थता करने का एलान किया था। लेकिन सरकार ने उनकी अपील पर कोई प्रतिक्रिया तक व्यक्त तक नहीं की, लिहाजा यह मामला भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सका। इसके अलवा उन्होंने ऐसी ही कोशिश उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए की थी। उन्होंने केंद्र सरकार और वहां के चरमपंथी विरोधी गुटो के बीच बढ़ते तनाव को खत्म करने के लिए मध्यस्थ बनने की इच्छा जाहिर की थी। अपने स्तर पर उन्होंने इसकी शुरुआत भी की लेकिन सरकार ने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। लिहाजा यह मामला भी वहीं के वहीं रुक गया।पूर्व जज इब्राहिम खुलीफल्लाह
जस्टिस खुलीफल्लाह के पिता एम फाकिर मोहम्मद भी जज रह चुके हैं। उनका जम्न तमिलनाडु के कराएकुडी में हुआ था। 1975 से उन्होंने अपनी वकालत की शुरुआत की। श्रम कानून से जुड़े मामलों में वह काफी एक्टिव वकील रहे हैं। कई सरकारी मामलों में वह पैरवी कर चुके हैं। वर्ष 2000 में तमिलनाडु इलेक्ट्रिकसिटी बोर्ड के मामले में भी वह स्टेंडिंग काउंसिल रहे थे। मद्रास हाईकोर्ट में उन्हें स्थायी नियुक्ति के तौर पर जज बनाया गया था। इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अहम फैसले सुनाए। अप्रेल 2011 में उन्हें जम्मू कश्मीर का अस्थाई चीफ जस्टिस बनाया गया था। इसके बाद इसी वर्ष सितंबर में उन्हें जम्मू कश्मीर का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया। अप्रेल 2012 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया। 22 जुलाई 2016 को वह यहां से रिटायर हुए थे।श्रीराम पंचू
श्रीराम पंचू तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मध्यस्थ बनाया है। वह वरिष्ठ वकील है। वह मीडिएशन चैंबर के संस्थापक भी हैं। इसके अलावा वह इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टिट्यूट के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर भी हैं। साथ ही वह एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर के अध्यक्ष भी हैं। वर्ष 2005 में उन्होंने कोर्ट में पहला मीडिएशन सेंटर खोला था। पंचू इससे पहले कई सरकारी और गैर सरकारी समेत कई अन्य मामलों में मध्यस्थ की भूमिका अदा कर चुके हैं। इतना ही नहीं वह कुछ विदेशी मामलों में भी इस भूमिका को निभा चुके हैं। सिंगापुर इंटरनेशनल मीडिएशन सेंटर के पैनल में वह सर्टिफाइट मीडिएटर भी हैं। असम और नागालैंड के बीच भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मध्यस्थ बनाया था। इसके अलावा पारसियों से जुड़े एक विवादित मामले में भी वह मध्यस्थ रह चुके हैं। उनकी खासियत है कि वह मध्यस्थता से जुड़े मामलों में अंजाम तक पहुंचने के लिए यूजर फ्रेंडली तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। पंचू इस विषय पर दो किताब भी लिख चुके हैं। इस किताब में बेहतर मध्यस्थ बनकर मामले सुलझाने के कई तरीके दिए हुए हैं।
जहां तक राम जन्म भूमि मामले में उनकी मध्यस्थता की बात है तो आपको बता दें कि उन्होंने इस मुद्दे पर पहले भी कई बार निजी राय जाहिर की है कि मुसलमानों को बड़ा दिल दिखाते हुए राम मंदिर बनने देना चाहिए। मुसलमान जहां भी मस्जिद बनाना चाहे उसके लिए रविशंकर मदद करने के लिए तैयार हैं। हालांकि वह इससे पहले भी चार बार अलग-अलग मामलों में मध्यस्थ्ता कर चुके हैं। लेकिन इनमें से किसी भी मामले में उन्हें सफलता हासिल नहीं हो सकी। कश्मीर में आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद पत्थरबाजी और हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए उन्होंने वानी से बेंगलुरू में बातचीत की थी। इसके अलावा वह कई अलगाववादी नेताओं से भी मिले थे। इसका मकसद घाटी में शांति व्याप्त करना था, लेकिन उनकी इस पहल का कोई नतीजा नहीं निकल सका था। इससे पहले 2017 में उन्होंने नक्सलवाद को खत्म करने के लिए मध्यस्थता करने का एलान किया था। लेकिन सरकार ने उनकी अपील पर कोई प्रतिक्रिया तक व्यक्त तक नहीं की, लिहाजा यह मामला भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सका। इसके अलवा उन्होंने ऐसी ही कोशिश उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए की थी। उन्होंने केंद्र सरकार और वहां के चरमपंथी विरोधी गुटो के बीच बढ़ते तनाव को खत्म करने के लिए मध्यस्थ बनने की इच्छा जाहिर की थी। अपने स्तर पर उन्होंने इसकी शुरुआत भी की लेकिन सरकार ने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। लिहाजा यह मामला भी वहीं के वहीं रुक गया।पूर्व जज इब्राहिम खुलीफल्लाह
जस्टिस खुलीफल्लाह के पिता एम फाकिर मोहम्मद भी जज रह चुके हैं। उनका जम्न तमिलनाडु के कराएकुडी में हुआ था। 1975 से उन्होंने अपनी वकालत की शुरुआत की। श्रम कानून से जुड़े मामलों में वह काफी एक्टिव वकील रहे हैं। कई सरकारी मामलों में वह पैरवी कर चुके हैं। वर्ष 2000 में तमिलनाडु इलेक्ट्रिकसिटी बोर्ड के मामले में भी वह स्टेंडिंग काउंसिल रहे थे। मद्रास हाईकोर्ट में उन्हें स्थायी नियुक्ति के तौर पर जज बनाया गया था। इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अहम फैसले सुनाए। अप्रेल 2011 में उन्हें जम्मू कश्मीर का अस्थाई चीफ जस्टिस बनाया गया था। इसके बाद इसी वर्ष सितंबर में उन्हें जम्मू कश्मीर का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया। अप्रेल 2012 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया। 22 जुलाई 2016 को वह यहां से रिटायर हुए थे।श्रीराम पंचू
श्रीराम पंचू तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मध्यस्थ बनाया है। वह वरिष्ठ वकील है। वह मीडिएशन चैंबर के संस्थापक भी हैं। इसके अलावा वह इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टिट्यूट के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर भी हैं। साथ ही वह एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर के अध्यक्ष भी हैं। वर्ष 2005 में उन्होंने कोर्ट में पहला मीडिएशन सेंटर खोला था। पंचू इससे पहले कई सरकारी और गैर सरकारी समेत कई अन्य मामलों में मध्यस्थ की भूमिका अदा कर चुके हैं। इतना ही नहीं वह कुछ विदेशी मामलों में भी इस भूमिका को निभा चुके हैं। सिंगापुर इंटरनेशनल मीडिएशन सेंटर के पैनल में वह सर्टिफाइट मीडिएटर भी हैं। असम और नागालैंड के बीच भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मध्यस्थ बनाया था। इसके अलावा पारसियों से जुड़े एक विवादित मामले में भी वह मध्यस्थ रह चुके हैं। उनकी खासियत है कि वह मध्यस्थता से जुड़े मामलों में अंजाम तक पहुंचने के लिए यूजर फ्रेंडली तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। पंचू इस विषय पर दो किताब भी लिख चुके हैं। इस किताब में बेहतर मध्यस्थ बनकर मामले सुलझाने के कई तरीके दिए हुए हैं।