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    'किसी भी खाते को फ्रॉड घोषित करने से पहले....', सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को सुनाया ये फरमान

    Updated: Tue, 04 Nov 2025 10:00 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों से पूछा है कि किसी उधारकर्ता के खाते को धोखाधड़ी घोषित करने से पहले उसे सुनवाई का मौका क्यों नहीं दिया जाना चाहिए। अदालत ने एसबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलना चाहिए। एसबीआई ने आरबीआई के सर्कुलर का हवाला दिया, जबकि कोर्ट ने व्यक्तिगत सुनवाई पर जोर दिया और आरबीआई को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया।

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    सुप्रीम कोर्ट का बैंकों से सवाल

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बैंकों से पूछा है कि यदि किसी उधारकर्ता के खाते को धोखाधड़ी घोषित करने से पहले उसे सुनवाई का अवसर दिया जाए तो इससे बैंकों को आखिर क्या नुकसान होगा।

    न्यायमूर्ति जेपी पार्डीवाला और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि जिस व्यक्ति के खाते पर कार्रवाई की जानी है, उसे अपना पक्ष रखने के लिए कम से कम एक मौका दिया जाना चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी कलकत्ता हाई कोर्ट के एक फैसले को चुनौती देनेवाली स्टेट बैंक आफ इंडिया (एसबीआइ) की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। मामला खाते को धोखाधड़ी घोषित करने से जुड़ा है।

    सुप्रीम कोर्ट का बैंकों से सवाल

    एसबीआइ की तरफ से पेश हुए सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2023 के एक फैसले के हवाले से कहा कि निर्णय को इस तरह से नहीं पढ़ा या समझा जाना चाहिए कि मौखिक या व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य प्रतीत होने लगे। गौरतलब है कि 2023 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी उधारकर्ता के खाते को फ्राड घोषित करने से पहले उसे उचित सुनवाई का एक अवसर दिया जाना चाहिए।

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    मेहता ने धोखाधड़ी का पता लगाने के लिए रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आरबीआइ) के एक सर्कुलर का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि जांच के दौरान फोरेंसिक आडिट होती है, जिसमें खाताधारक फोरेंसिक आडिटरों के साथ जुड़ा रहता है। इसके बाद खाताधारक को नोटिस जारी किया जाता है, जिस पर वह लिखित जवाब देता है और उसी आधार पर निर्णय लिया जाता है।

    आरबीआई को पक्षकार बनाने का निर्देश

    हालांकि, पीठ ने पूछा, “अगर नोटिस जारी किया जा रहा है, जवाब मांगा जा रहा है और उस जवाब को देखा जा रहा है, तो व्यक्तिगत सुनवाई देने में दिक्कत क्या है? और अगर दी जाए तो बैंक को क्या नुकसान होगा?''अदालत ने कहा कि 2023 के फैसले को आए दो साल से अधिक हो गए और इस बीच तमाम बैंकों ने निश्चित तौर पर इस आधार पर बताओ नोटिस जारी किए होंगे।

    ऐसे में एसबीआइ को ही क्यों दिक्कत है। मेहता ने तर्क दिया कि कोई भी बैंक व्यक्तिगत सुनवाई नहीं करता और कई बार ऐसा करना व्यावहारिक नहीं होता। कई बार व्यक्तिगत सुनवाई से खाते को फ्राड घोषित करने का उद्देश्य ही विफल हो सकता है।पीठ ने कहा कि मामले में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) को भी पक्षकार बनाया जाए और एसबीआइ से यह स्पष्ट करने को कहा कि किन परिस्थितियों में बैंक व्यक्तिगत सुनवाई देने से छूट चाहते हैं।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)