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'छिन जाता है जीवनसाथी चुनने का अधिकार', बाल विवाह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश में हो रहे बाल विवाह पर नाराजगी जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को पर्सनल लॉ से नहीं रोका जा सकता और बच्चों से जुड़ी शादियां अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन करती हैं। CJI ने कहा कि अधिकारियों को बाल विवाह रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए।

By Jagran News Edited By: Versha Singh Updated: Fri, 18 Oct 2024 01:59 PM (IST)
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SC ने बाल विवाह पर जताई नाराजगी (फाइल फोटो)

 पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को बाल विवाह निषेध अधिनियम को लेकर सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने देश में हो रहे बाल विवाह के मुद्दे पर कड़ी नाराजगी जताई है। 

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को पर्सनल लॉ से नहीं रोका जा सकता और बाल विवाह अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन करती हैं। CJI ने कहा कि सबको अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। 

SC ने जारी किए कई दिशानिर्देश

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने देश में बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी किए।

एससी की बेंच ने कहा कि अधिकारियों को अपराधियों को दंडित करते समय बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए।

अलग- अलग समुदाय के लिए बनाई जाए रणनीति- SC

पीठ ने कहा, निवारक रणनीति अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बनाई जानी चाहिए। यह कानून तभी सफल होगा जब बहु-क्षेत्रीय समन्वय होगा। कानून प्रवर्तन अधिकारियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हम इस बात पर जोर देते हैं कि इस मामले में समुदाय आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

कानून में हैं कुछ खामियां- SC

पीठ ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। 

बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और समाज से उनके उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह निरोधक अधिनियम की जगह ली।

SC ने वैवाहिक दुष्कर्म मामले पर क्या कहा?

बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और समाज से उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिए लाया गया। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह निरोधक अधिनियम की जगह ली।

इससे पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह भारतीय दंड संहिता (IPC) और भारतीय न्याय संहिता (BNS) के उन दंडनीय प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर निर्णय करेगी, जो दुष्कर्म के अपराध के लिए पति को अभियोजन से छूट प्रदान करता है। अगर वह अपनी पत्नी (जो नाबालिग नहीं है) को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है।

पीठ ने केंद्र की इस दलील पर याचिकाकर्ताओं की राय जाननी चाही कि इस तरह के कृत्यों को दंडनीय बनाने से वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा।

बाल विवाह नियंत्रण पर SC ने कहा-

* अधिकारियों की विशेष ट्रेनिंग हो

* हर समुदाय के लिए अलग तरीके अपनाएं

* दंडात्मक तरीके से सफलता नहीं मिलती

* लोगों में जागरूकता बढाएं

* समाज की स्थिति समझ कर रणनीति बने

* बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मसला संसद में लंबित है।

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