मोहम्मद जुबैर को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में दर्ज मामले में अंतरिम जमानत दी
Mohammad Zubair Petition जुबैर ने याचिका में अपनी गिरफ्तारी से राहत की मांग की थी और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कोर्ट ने दर्ज प्राथमिकी को रद करने से इनकार कर दिया था।
By Mahen KhannaEdited By: Updated: Fri, 08 Jul 2022 12:29 PM (IST)
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने फैक्ट चैक वेबसाइट आल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को उनके खिलाफ सीतापुर, उत्तर प्रदेश में दर्ज मामले में अंतरिम जमानत दे दी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली जुबैर की याचिका पर यूपी पुलिस को नोटिस भी जारी किया है।
सुनवाई में हो रहा वाद-प्रतिवाद
- यूपी पुलिस की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह गिरफ्तारी एक ट्वीट के बारे में नहीं है। उन्होंने कहा कि जुबैर एक ऐसे सिंडिकेट का हिस्सा हो जो देश को अस्थिर करने के इरादे से नियमित रूप से इस तरह के ट्वीट पोस्ट कर रहा है।
- एसजी तुषार मेहता ने यह भी कहा कि इसमें कुछ पैसे का एंगल भी है। क्या भारत के विरोधी देशों से उन्हें चंदा मिला है, इसकी जांच की जा रही है।
- उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से पेश हुए एडिशनल सालिसिटर जनरल एसवी राजू ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अगर जुबैर इतने अच्छे इंसान होते, तो उन्हें ट्वीट नहीं करना चाहिए था और यूपी को एक पत्र नहीं भेजना चाहिए था। अगर उन्हें जमानत मिल जाती है, तो वह बेंगलुरु में सबूत नष्ट कर सकते हैं।
- दूसरी ओर जुबैर के वकील गोंजाल्विस का कहना है कि जुबैर के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि है कि लोगों को अभद्र भाषा के लिए गिरफ्तार किया गया है और उन्हें जमानत पर भी रिहा किया गया है। वे फिर से भड़काऊ भाषण देते हैं। जुबैर ने किसी धर्म के खिलाफ नहीं बोला है। वह केवल अभद्र भाषा की बात कर रहे थे।
बता दें कि जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की अवकाशकालीन पीठ ने मामले को शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई थी। मामले की तत्काल सुनवाई का जिक्र करते हुए जुबैर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कालिन गोंजाल्विस ने पीठ से कहा था कि उनकी जान को गंभीर खतरा है।जुबैर पर यह है आरोप
बता दें कि जुबैर के खिलाफ 1 जून को आईपीसी की धारा 295 (ए) और आईटी अधिनियम की धारा 67 के तहत यूपी के सीतापुर जिले के खैराबाद पुलिस स्टेशन में साधुओं की जानबूझकर "धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने" को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई थी। शीर्ष अदालत में उनकी अपील में कहा गया है कि उनके खिलाफ प्राथमिकी के आरोप बिल्कुल झूठे और निराधार हैं।