'बुलडोजर जस्टिस मंजूर नहीं', CJI के रूप में डीवाई चंद्रचूड़ ने क्या सुनाया अंतिम फैसला?
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद से रिटायर हो गए। अब सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के आखिरी फैसले में CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने बुलडोजर जस्टिस की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा बुलडोजर न्याय कानून के शासन के तहत अस्वीकार्य है।अदालत ने कहा बुलडोजर न्याय न केवल कानून के शासन के विरुद्ध है बल्कि यह मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद से रिटायर हो गए। अब सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के आखिरी फैसले में CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने 'बुलडोजर जस्टिस' की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा, 'बुलडोजर न्याय' कानून के शासन के तहत अस्वीकार्य है।
अदालत ने कहा कि बुलडोजर न्याय न केवल कानून के शासन के विरुद्ध है, बल्कि यह मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है। अगर इसे अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता एक डेड लेटर बनकर रह जाएगी।'
एक गंभीर खतरा है- कोर्ट
कोर्ट ने कहा, बुलडोजर के माध्यम से न्याय न्यायशास्त्र की किसी भी सभ्य प्रणाली के लिए अज्ञात है। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'एक गंभीर खतरा है कि यदि राज्य के किसी भी विंग या अधिकारी द्वारा उच्चस्तरीय और गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाती है, तो नागरिकों की संपत्तियों का विध्वंस बाहरी कारणों से चुनिंदा प्रतिशोध के रूप में होगा।'अदालत ने किसी भी संपत्ति को ढहाने से पहले छह आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया है
- अदालत ने कहा,अधिकारियों को पहले मौजूदा भूमि रिकॉर्ड और मानचित्रों को सत्यापित करना होगा।
- दो, वास्तविक अतिक्रमणों की पहचान करने के लिए उचित सर्वे किया जाना चाहिए।
- कथित अतिक्रमणकारियों को तीन लिखित नोटिस जारी किए जाने चाहिए।
- आपत्तियों पर विचार किया जाना चाहिए और स्पष्ट आदेश पारित किया जाना चाहिए
- स्वैच्छिक हटाने के लिए उचित समय दिया जाना चाहिए ।
- यदि आवश्यक हो तो अतिरिक्त भूमि कानूनी रूप से अधिग्रहित की जानी चाहिए।
अदालत ने क्या कहा?
अधिकारियों ने दावा किया कि राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार के लिए विध्वंस आवश्यक था, वहीं जब इस मामले की जांच की गई तो जांच में उल्लंघन का एक पैटर्न सामने आया जिसे अदालत ने राज्य शक्ति के दुरुपयोग का उदाहरण बताया।