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सद्गुरु जग्गी वासुदेव के फाउंडेशन के खिलाफ केस बंद; SC ने कहा- लड़कियां बालिग, मर्जी से आश्रम में रह रहीं

आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को शुक्रवार को बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने संस्था के खिलाफ दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर कार्यवाही को बंद कर दिया है। दो बहनों के बयान के बाद शीर्ष अदालत ने केस को बंद करने का निर्णय लिया। बता दें कि एक व्यक्ति ने याचिका दाखिल कर अपनी दो बेटियों को बंधक बनाने का आरोप लगाया था।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Fri, 18 Oct 2024 03:25 PM (IST)
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Isha Foundation: आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव। (फाइल फोटो)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कथित रूप से दो लड़कियों को बंधक बनाने के मामले में सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ केस बंद कर दिया है। एक व्यक्ति ने शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल करके आरोप लगाया था कि कोयंबटूर स्थित ईशा फाउंडेशन परिसर में उसकी दो बेटियों को बंधक बनाकर रखा गया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दोनों महिलाएं बालिग हैं। दोनों ने कहा है कि वे स्वेच्छा और बिना किसी दबाव के आश्रम में रह रही हैं। 

पिता ने लगाया ब्रेनवॉश करने का आरोप

इससे पहले सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज ने मद्रास उच्च न्यायालय में ईशा फाउंडेशन के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। पिता ने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों को ब्रेशवॉश करके आश्रम में रखा गया है। बड़ी बेटी गीता की उम्र 42 और छोटी बेटी लता की उम्र 39 साल है। इसके बाद 30 सितंबर को मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी आपराधिक मामलों की जांच करने और रिपोर्ट पेश करने का आदेश तमिलनाडु पुलिस को दिया था।

हाईकोर्ट के आदेश पर लग चुकी रोक

हाईकोर्ट के आदेश के बाद लगभग 150 तमिलनाडु पुलिस के जवान जांच करने ईशा फाउंडेशन पहुंचे। ईशा फाउंडेशन ने आरोपों पर कहा कि दोनों लड़कियां अपनी स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ ईशा फाउंडेशन ने देश की शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

तीन अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने फाउंडेशन के खिलाफ पुलिस जांच पर रोक लगा दी। पिछली सुनवाई में एक युवती ने माना था कि वह अपनी स्वेच्छा से आश्रम में हैं। उन्होंने आठ साल से अपने पिता पर परेशान करने का आरोप भी लगाया।

इस वजह से बंद किया केस 

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आठ साल पहले मां ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी। सर्वोच्च न्यायालय में दोनों बहनों ने अपनी बात रखी और कहा कि वह अपनी मर्जी से यहां रह रही हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को बंद करने का निर्णय लिया।

हालांकि शीर्ष अदालत ने यह साफ किया है कि अन्य शिकायतों की जांच पुलिस कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है। उधर, तमिलनाडु पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट पर ईशा फाउंडेशन के वकील मुकुल रोहतगी ने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मीडिया में स्टेटस रिपोर्ट चल रही। यह निजता का उल्लंघन है।

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