बड़ी संख्या में चेक बाउंस के मामले लंबित होने पर सुप्रीम कोर्ट चिंतित, कहा- अदालतों को यह कदम उठाना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चेक बाउंस के कई मामले लंबित रहने पर गंभीर चिंता जताई। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि पक्षकार तैयार हैं तो अदालतों को परक्राम्य लिखत अधिनियम (निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट्स एक्ट) के तहत उन्हें समझौता करने को प्रोत्साहित करना चाहिए। अदालत ने इस बात पर गौर किया कि पक्षकारों ने एक समझौता किया था और शिकायतकर्ता को 5.25 लाख रुपये का भुगतान किया गया था।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी तादाद में चेक-बाउंस के मामलों के लंबित होने पर गंभीर चिंता जताई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कोर्ट को अगर चेक बाउंस के मामलों में दोनों पक्ष समझौता करना चाहते हैं, तो अदालत को परक्राम्य लिखत अधिनियम (निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट एक्ट) के तहत अपराध का निपटारा करने में बढ़ावा देना चाहिए।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने पी. कुमारस्वामी नाम के एक व्यक्ति के खिलाफ चेक बाउंस के एक मामले को तब खारिज कर दिया, जब पता चला कि दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया है और शिकायतकर्ता को 5.25 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया है।
'चेक बाउंस के लंबित मामले चिंता का विषय'
खंडपीठ ने 11 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि अदालतों में चेक बाउंस होने के बड़ी भारी तादाद में मामले लंबित हैं। यह हमारी न्यायिक प्रणाली के लिए बहुत चिंता की बात है। उनका कहना है कि निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट एक्ट के तहत बनने वाले प्रामिसरी नोट से बिलों का आदान-प्रदान और चेक का लेन-देन होता है। अदालत के बाहर सुलझाए जाने वाले अपराध वह है जिसमें पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच समझौता होना संभव है।इस मामले में खंडपीठ ने पाया कि कुमारस्वामी उर्फ गणेश ने 5,25,000 रुपये ए.सुब्रह्मण्यम से लिए थे, लेकिन उसे वापस नहीं लौटाया। बाद में कुमारस्वामी ने उसे 5.25 लाख रुपये का चेक दिया लेकिन वह बाउंस हो गया।