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स्थगनादेश पर अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गठित की संविधान पीठ, हाई कोर्ट की शक्तियों से जुड़ा है मामला

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 के अपने एक फैसले पर पुनर्विचार के लिए प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित कर दी है। उस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि दीवानी या आपराधिक मामलों में निचली अदालत या हाई कोर्ट द्वारा जारी किया गया स्थगनादेश छह महीने बाद स्वत समाप्त हो जाएगा बशर्ते उसे खास तौर पर न बढ़ाया गया हो।

By Jagran NewsEdited By: Abhinav AtreyUpdated: Mon, 04 Dec 2023 07:08 PM (IST)
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स्थगनादेश पर अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गठित की संविधान पीठ (फाइल फोटो)
जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 के अपने एक फैसले पर पुनर्विचार के लिए प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित कर दी है। उस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि दीवानी या आपराधिक मामलों में निचली अदालत या हाई कोर्ट द्वारा जारी किया गया स्थगनादेश छह महीने बाद स्वत: समाप्त हो जाएगा बशर्ते उसे खास तौर पर न बढ़ाया गया हो।

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के स्थगनादेश पर प्रभावी नहीं था। शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई अधिसूचना के मुताबिक, पांच सदस्यीय संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश के अलावा जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस जेबी पार्डीवाला, जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।

कोर्ट ने एक दिसंबर को संविधान पीठ को संदर्भित किया था

यह संविधान पीठ इस मुद्दे पर सुनवाई तब शुरू करेगी जब वह असम में घुसपैठियों से जुड़ी नागरिकता अधिनियम की धारा-6ए की संवैधानिक वैधता से संबंधित मामले में कार्यवाही पूरी कर लेगी। शीर्ष अदालत ने 2018 के अपने फैसले को पुनर्विचार के लिए एक दिसंबर को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को संदर्भित किया था।

'इस फैसले ने हाई कोर्टों की शक्तियों को छीन लिया'

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ऑफ इलाहाबाद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेद्वी की उस दलील पर संज्ञान लिया था कि 2018 के फैसले ने हाई कोर्टों को संविधान के अनुच्छेद-226 के तहत उपलब्ध शक्तियों को छीन लिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल की मदद मांगी थी

अनुच्छेद-226 ने हाई कोर्टों को व्यापक शक्तियां दी हैं जिनके तहत वे मौलिक अधिकारों के क्रियान्वयन और अन्य उद्देश्यों के लिए किसी व्यक्ति या सरकार को रिट या आदेश जारी कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने फैसले से उत्पन्न कानूनी मुद्दों से निपटने में अटार्नी जनरल या सालिसिटर जनरल की सहायता भी मांगी थी।

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