Supreme Court: चुनावी बांड मामले में विचार के पांच मुद्दे, संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से किए कई सवाल
राजनीतिक दलों को चंदे की चुनावी बांड योजना की वैधानिकता पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की पैरोकारी कर रहे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि पांच मुद्दे विचारणीय हैं। कोर्ट ने सरकार को पांच मुद्दे गिनाते हुए एक संतुलित प्रणाली तैयार करने का सुझाव दिया। हालांकि सालिसिटर जनरल ने भी कोर्ट के कुछ सुझाव से सहमति जताई।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राजनीतिक दलों को चंदे की चुनावी बांड योजना की वैधानिकता पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की पैरोकारी कर रहे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि पांच मुद्दे विचारणीय हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को पांच मुद्दे गिनाए
कोर्ट ने सरकार को पांच मुद्दे गिनाते हुए एक संतुलित प्रणाली तैयार करने का सुझाव दिया। हालांकि, सालिसिटर जनरल ने भी कोर्ट के कुछ सुझाव से सहमति जताई। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को चुनावी बांड पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से कई सवाल किए।
जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि पहले औद्योगिक समूह ने एक चुनावी ट्रस्ट बनाया था, जिससे विभिन्न दलों को चंदा दिया जाता था। इससे यह किसी को पता नहीं चलता था कि किस कंपनी ने कितना पैसा दिया है। सिर्फ ट्रस्ट होता था, लेकिन 2013 में चुनाव आयोग ने नियम में बदलाव किया, जिसमें कहा गया कि नाम सार्वजनिक होना चाहिए।
मेहता ने कहा कि ट्रस्ट बस एक छद्म नाम होता है। अभी भी चुनावी ट्रस्ट होते हैं। मेहता ने कहा कि यह योजना व्यवस्था से काला धन हटाने के लिए लाई गई है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, जिस क्षण किसी पार्टी को चुनावी बांड दिया जाता है तो उस पार्टी को इसका पता चल जाता है।
मेहता का जवाब था कि लेकिन दानदाता चाहता है कि दूसरी पार्टी को इसके बारे में पता न चले। जस्टिस बीआर गवई का सवाल था कि मतदाता को जानकारी के अधिकार का क्या? मेहता ने कहा कि मतदाता को इस पर वोट नहीं करना चाहिए कि किस पार्टी को दान मिला है। चुनाव की स्वच्छता सुप्रीम है। मतदाता राजनीतिक दल की विचारधारा, उसकी नीतियों के आधार पर मतदान करता है। जस्टिस खन्ना की टिप्पणी थी कि पार्टी जानती है। सिर्फ मतदाता नहीं जानता।
चुनावी चंदे की मौजूदा योजना पर क्या बोले सीजेआई?
इसपर चीफ जस्टिस ने चुनावी चंदे की मौजूदा योजना पर कहा कि पांच चीजें महत्वपूर्ण विचार की हैं। पहला चुनावी प्रक्रिया में नगदी की हिस्सेदारी कम करने की आवश्यकता, दूसरा है इस उद्देश्य के लिए अधिकृत बैंकिग चैनल को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता, तीसरा बैंकिंग चैनल के प्रयोग को बढ़ावा देना और प्रोत्साहित करने के लिए गोपनीयता रखना, चौथा है पारदर्शिता की जरूरत और पांचवां है कि इसमें सत्ता के केंद्र में चाहें वह केंद्रीय हो या राज्य में हो, लेनदेन के फायदे को कानूनी जामा नहीं मिलना चाहिए। जो लोग सत्ता के करीब होने का लाभ लेते हैं, वे इसके भागीदार हैं। इसलिए एक संतुलन बनाने की जरूरत है। यह संतुलन विधायिका या कार्यपालिका बना सकती है। कोर्ट नहीं बना सकता। हम इसके लिए सचेत हैं।
चीफ जस्टिस ने आगे कहा, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि या तो आप इस सिस्टम को लो या फिर आप पूरी तरह नगदी सिस्टम में चले जाओ। आपको एक दूसरी प्रणाली तैयार करनी होगी, जिसमें इस व्यवस्था की खामियां न हों। चीफ जस्टिस ने मौजूदा योजना में नान प्राफिट कंपनी के भी दान देने की छूट पर सवाल किया।
कोर्ट ने पूछा कि कोई सीमा क्यों नहीं है? एक कंपनी व्यापार करती है। जिस कंपनी ने कोई मुनाफा नहीं कमाया वह कैसे दान देगी या फिर कोई कंपनी अपना पूरा मुनाफा दान दे सकती है। कोर्ट ने कहा कि वह सरकार की नीति पर नहीं जा रहा, लेकिन ऐसे तो मुखौटा कंपनी भी दान दे सकती है।
इन सवालों पर मेहता ने कहा कि हम मानते हैं कि सिर्फ मुनाफा कमाने वाली कंपनी ही दान कर सकती है। इस पर चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि क्या आप यह बयान दे रहे हैं कि इसके लिए कंपनी एक्ट में संशोधन किया जाएगा। मेहता ने कहा कि वह सिर्फ यह कह रहे हैं कि सिर्फ मुनाफा कमाने वाली कंपनी दान कर सकती है। वह कानून में संशोधन का बयान नहीं दे सकते क्योंकि वह विधायिका नहीं हैं।