'भारी मात्रा में मादक पदार्थ बरामदगी मामले में जल्द जमानत नहीं दें अदालतें', सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को ऐसे मामले में आरोपित को जमानत देने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए जिसमें भारी मात्रा में मादक पदार्थ जब्त किए गए हों। शीर्ष अदालत ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें 232.5 किलोग्राम गांजे की जब्ती से संबंधित मामले में एक आरोपित को अग्रिम जमानत दी गई थी।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को ऐसे मामले में आरोपित को जमानत देने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, जिसमें भारी मात्रा में मादक पदार्थ जब्त किए गए हों। शीर्ष अदालत ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें 232.5 किलोग्राम गांजे की जब्ती से संबंधित मामले में एक आरोपित को अग्रिम जमानत दी गई थी।
अदालत ने आरोपित बी. रामू को 10 दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट के सामने आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट इस बात पर विचार करने में विफल रहा कि आरोपित का आपराधिक इतिहास रहा है। उसे पहले से ही नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत दो मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है।
नियमित जमानत देने में धीमी गति से काम करना चाहिए
पीठ ने 12 फरवरी को पारित अपने आदेश में कहा, इतनी भारी मात्रा में मादक पदार्थ की बरामदगी मामले में अग्रिम जमानत तो दूर की बात है, आरोपित को नियमित जमानत देने में भी अदालतों को धीमी गति से काम करना चाहिए।
तमिलनाडु सरकार की अपील पर हुई सुनवाई
कोर्ट ने कहा कि खासकर तब जब आरोपित का आपराधिक पृष्ठभूमि हो। शीर्ष अदालत हाई कोर्ट के जनवरी 2022 के आदेश के खिलाफ तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत दर्ज मामले में आरोपित को अग्रिम जमानत दी थी।
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