AMU: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा रहेगा या नहीं? तीन जजों की बेंच सुनाएगी फैसला
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा या नहीं। इस पर तीन जजों की पीठ अपना फैसला सुनाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को तीन जजों की पीठ के पास भेज दिया है। संविधान पीठ ने एक फरवरी को इस पर फैसला सुरक्षित रखा था। एएमयू को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट इस विवादास्पद कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुनाया कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। शीर्ष अदालत ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को निर्धारित करने के लिए तीन जजों की बेंच के पास मामले को भेज दिया है। अब यह बेंच सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानदंडों के आधार पर एएमयू के दर्जे का निर्धारण करेगी।
फैसले का असर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी पर भी पड़ेगा
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है। संविधान पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पार्डीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं। इस फैसले का असर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी पर भी पड़ेगा।
अदालत ने आठ दिन तक दलीलें सुनने के बाद एक फरवरी को इस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। एक फरवरी को शीर्ष अदालत ने कहा था कि एएमयू अधिनियम में 1981 के संशोधन ने केवल आधे-अधूरे मन से काम किया और संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति में बहाल नहीं किया। 1981 के संशोधन ने इसे प्रभावी रूप से अल्पसंख्यक दर्जा दिया था।
एएमयू का गठन 1920 के एक्ट से हुआ था
मंगलवार को केंद्र सरकार की ओर से बहस करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट को ध्यान देना चाहिए कि एएमयू का गठन 1920 के एक्ट से हुआ था। एएमयू न तो अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित किया गया था और न ही उनके द्वारा प्रशासित होता है। मेहता ने अपनी दलीलों के समर्थन में एएमयू एक्ट में समय समय पर हुए संशोधनों का जिक्र करते हुए उन संशोधनों के दौरान संसद में हुई बहस का कोर्ट में हवाला दिया।
एएमयू पर संविधान सभा की बहस का भी जिक्र
साथ ही एएमयू पर संविधान सभा की बहस का भी जिक्र किया और कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है बल्कि राष्ट्रीय महत्व का देश का बेहतरीन संस्थान है। उन्होंने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करने के परिणाम बताते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 15 (1) कहता है कि राज्य किसी के भी साथ जाति, धर्म, भाषा, जन्मस्थान, वर्ण के आधार पर भेद नहीं करेगा।10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं चीफ जस्टिस
जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उनके पास अब कुछ ही कार्य दिवस हैं। ऐसे में उनकी सेवानिवृत्ति से पहले इन मामलों में फैसला आ जाएगा। जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में फैसला देने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सेवानिवृत्त होने वाले आखिरी न्यायाधीश हैं।
यह संयोग ही है कि उनकी सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले नौ नवंबर को अयोध्या पर आए फैसले को पांच वर्ष पूरे हो जाएंगे। गत जुलाई में ही जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या गए थे और रामलला का दर्शन किया था। शायद वह पहले प्रधान न्यायाधीश हैं जो रामलला के दर्शन करने अयोध्या गए।