‘निजी संपत्तियों को समुदाय का भौतिक संसाधन कहा जा सकता है या नहीं’; 9 जजों की पीठ ने सुरक्षित रखा फैसला
निजी संपत्ति पर अधिकार के सवाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अनुच्छेद 39(बी) पर बहस हुई। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस जटिल कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत ‘‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है और क्या ‘सार्वजनिक कल्याण’ में इस्तेमाल के लिए इसे राज्य प्राधिकार अपने कब्जे में ले सकता है?
पीटीआई, नई दिल्ली। Supreme Court On Private Property: निजी संपत्ति पर अधिकार के सवाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अनुच्छेद 39(बी) पर बहस हुई। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस जटिल कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत ‘‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है और क्या ‘सार्वजनिक कल्याण’ में इस्तेमाल के लिए इसे राज्य प्राधिकार अपने कब्जे में ले सकता है?
इस प्रश्न पर चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-सदस्यीय संविधान पीठ विचार कर रही है। पीठ 16 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (पीओए) की ओर से दायर मुख्य याचिका भी शामिल है।यह भी पढ़ें: 'हस्तक्षेप का मतलब चुनाव प्रक्रिया को रोकना होगा', SC का पूर्व भाजपा उम्मीदवार की याचिका पर विचार करने से इनकार
पीओए ने महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) अधिनियम के अध्याय आठ(ए) का कड़ा विरोध किया है। यह अध्याय 1986 में जोड़ा गया था और यह राज्य प्राधिकारियों को किसी ऐसे भवन और संबंधित जमीन को कब्जे में लेने का अधिकार प्रदान करता है, जिसमें रहने वाले 70 प्रतिशत लोग पुनर्स्थापन उद्देश्यों के लिए ऐसा अनुरोध करते हैं।म्हाडा अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के अनुसरण में अधिनियमित किया गया था, जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (डीपीएसपी) का हिस्सा है और सरकार के लिए ‘स्वामित्व और नियंत्रण’ हासिल करने की दिशा में एक ऐसी नीति बनाना अनिवार्य बनाता है, जिसके तहत यह सुनिश्चित हो कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का वितरण सार्वजनिक कल्याण के लिए सर्वोत्तम तरीके से संभव हो सके।’’
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य सरकार की ओर से दलील दी कि म्हाडा प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 31सी के जरिये संरक्षित हैं, जिसे कुछ डीपीएसपी को प्रभावी करने वाले कानूनों के संरक्षण के इरादे से 1971 के 25वें संशोधन अधिनियम द्वारा डाला गया था।संविधान पीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे। पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित विभिन्न अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
पीओए और अन्य ने अधिनियम के अध्याय आठ-ए को चुनौती देते हुए दावा किया है कि इस अध्याय के प्रावधान संपत्ति मालिकों के खिलाफ हैं और उन्हें बेदखल करने का प्रयास करते हैं।मुख्य याचिका पीओए द्वारा 1992 में दायर की गई थी और 20 फरवरी, 2002 को नौ-सदस्यीय संविधान पीठ को भेजे जाने से पहले इसे तीन बार पांच और सात जस्टिसों वाली बड़ी पीठ के पास भेजा गया था।यह भी पढ़ें: ED के नोटिस पर पेश क्यों नहीं हुए केजरीवाल? सुप्रीम कोर्ट की तीखे सवाल पर क्या बोले अभिषेक मनु सिंघवी
मुंबई एक घनी आबादी वाला शहर है, जहां पुरानी, जीर्ण-शीर्ण इमारतें हैं और मरम्मत के अभाव में असुरक्षित होने के बावजूद उनमें किरायेदार रहते हैं। इन इमारतों की मरम्मत और पुनर्स्थापना के लिए, म्हाडा अधिनियम, 1976 इसके रहने वालों पर एक उपकर लगाता है, जिसका भुगतान मुंबई भवन मरम्मत और पुनर्निर्माण बोर्ड (एमबीआरआरबी) को किया जाता है, जो ऐसी इमारतों की मरम्मत और पुनर्निर्माण की देखरेख करता है। मुंबई में लगभग 13,000 अधिगृहीत इमारतें हैं, जिनके जीर्णोद्धार या पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। हालांकि, किरायेदारों के बीच या डेवलपर नियुक्त करने पर मालिकों और किरायेदारों के बीच मतभेद के कारण उनके पुनर्विकास में अक्सर देरी होती है।
मुंबई एक घनी आबादी वाला शहर है, जहां पुरानी, जीर्ण-शीर्ण इमारतें हैं और मरम्मत के अभाव में असुरक्षित होने के बावजूद उनमें किरायेदार रहते हैं। इन इमारतों की मरम्मत और पुनर्स्थापना के लिए, म्हाडा अधिनियम, 1976 इसके रहने वालों पर एक उपकर लगाता है, जिसका भुगतान मुंबई भवन मरम्मत और पुनर्निर्माण बोर्ड (एमबीआरआरबी) को किया जाता है, जो ऐसी इमारतों की मरम्मत और पुनर्निर्माण की देखरेख करता है। मुंबई में लगभग 13,000 अधिगृहीत इमारतें हैं, जिनके जीर्णोद्धार या पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। हालांकि, किरायेदारों के बीच या डेवलपर नियुक्त करने पर मालिकों और किरायेदारों के बीच मतभेद के कारण उनके पुनर्विकास में अक्सर देरी होती है।