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आरोपियों के लिए जमानत नीति में सुधार लाने की कवायद, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र को दिया निर्देश

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जमानत देने के लिए नीति रणनीति नाम के स्वत संज्ञान मामले की सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने जेल में बंद दोषियों को सजा में छूट देने की नीतियों में मानक तय करने और उसमें पारदर्शिता लाने को कहा है। साथ ही कोर्ट ने दिव्यांगजन अधिकार कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग वाली जनहित याचिका पर भी सुनवाई की।

By Agency Edited By: Sachin Pandey Updated: Mon, 04 Nov 2024 11:49 PM (IST)
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कोर्ट ने नीतियों में मानक तय करने और उसमें पारदर्शिता लाने को कहा है। (File Image)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को जेल में बंद दोषियों को सजा में स्थायी छूट देने की नीतियों में मानक तय करने और उसमें पारदर्शिता लाने को कहा है। इसके लिए शीर्ष अदालत ने निर्देश जारी किए हैं।

जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ द्वारा जारी निर्देशों में सजा में स्थायी छूट की नीतिगत सूचनाओं तक अधिक पहुंच सुनिश्चित करने, फैसलों के बारे में समय पर जानकारी देने और मनमानी से बचने के लिए प्रत्येक मामले पर उसकी परिस्थतियों के हिसाब से विचार को अनिवार्य बनाया गया है।

एक हफ्ते के भीतर सूचना देने का निर्देश

पीठ 2021 के एक स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसका शीर्षक 'जमानत देने के लिए नीति रणनीति' था। शीर्ष कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे स्थायी छूट से जुड़ी अर्जी खारिज होने की सूचना दोषियों को एक हफ्ते के भीतर दें।

साथ ही राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इन फैसलों की प्रतियां संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों को भी भेजनी होंगी, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि दोषियों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए उचित कदम उठाए गए।

पीठ ने कहा, 'इस स्तर पर हम निम्नलिखित निर्देश जारी करते हैं, जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होंगे:

  • स्थायी छूट प्रदान करने के निर्णय को नियंत्रित करने वाली वर्तमान नीतियों की प्रतियां राज्यों की प्रत्येक जेल में उपलब्ध कराई जाएंगी।
  • इन नीतियों की प्रतियां अंग्रेजी अनुवाद के साथ सरकार की उपयुक्त वेबसाइट पर अपलोड की जाएंगी।'

नीतियों के अस्तित्व के बारे में जानकारी देने का निर्देश

शीर्ष अदालत ने 22 अक्टूबर के अपने आदेश में जेल अधीक्षकों और जेल अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया कि सभी दोषियों को इन नीतियों के अस्तित्व के बारे में जानकारी दी जाए। कोर्ट ने कहा कि राज्य के अधिकारियों को व्यापक कदम उठाने चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि छूट के लिए योग्य दोषियों को पर्याप्त जानकारी हो और उनके मामलों पर निष्पक्ष रूप से विचार किया जाए।

दिव्यांगता कानून संबंधी याचिका पर कोर्ट ने जारी किया नोटिस

दिव्यांगजन अधिकार कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ नेशनल ला स्कूल आफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू), बेंगलुरु के प्रोफेसर संजय जैन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। जन्म से ही नेत्रहीन संजय दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ता हैं।

याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार को दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के प्रविधानों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। कानून के अपर्याप्त कार्यान्वयन के कारण दिव्यांगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। याचिका में दिव्यांगजन अधिकार कानून का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई है।याचिका में विभिन्न रिपोर्टों का हवाला दिया गया है, जिसमें दिव्यांगता अधिकार फाउंडेशन और अन्य संगठनों की 2018 की संयुक्त रिपोर्ट भी शामिल है, जिसमें संकेत दिया गया है कि कई राज्यों ने अभी तक नियमों को अधिसूचित नहीं किया है।