1993 के बम धमाकों के दोषी की याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज, की थी आजीवन कारावास से राहत देने की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 1993 के मुंबई बम धमाकों के दोषी मुहम्मद मोईन फरुदुल्ला कुरैशी की जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत राहत की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। इन बम धमाकों में 257 लोग मारे गए थे जबकि 713 घायल हुए थे।
By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Sat, 28 Nov 2020 10:05 PM (IST)
नई दिल्ली, आइएएनएस। आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 1993 के मुंबई बम धमाकों के दोषी मुहम्मद मोईन फरुदुल्ला कुरैशी की जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत राहत की मांग संबंधी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कुरैशी ने संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की थी।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि याचिका में याचिकाकर्ता को टाडा मामले में विशेष अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को पलटने संबंधी मांगी गई राहत में आवश्यक रूप से इस अदालत की जरूरत होगी क्योंकि आपराधिक अपील में इस अदालत ने उसके दोष और सजा को बरकरार रखा था। उपरोक्त तथ्यों की रोशनी में अनुच्छेद-32 के तहत याचिका पर कोई राहत उपलब्ध नहीं होगी। हालांकि शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस. नागामुथ की उस दलील पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की कि उनके मुवक्किल को क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने की सलाह दी जाएगी।
याचिका में उन्होंने अपने मुवक्किल के दोष को बरकरार रखते हुए सजा को खारिज करने की मांग की थी। याचिका इस आधार पर दायर की गई थी कि अन्य टाडा मामले में शीर्ष अदालत ने नौ मार्च, 2011 को एक आदेश के जरिये जुवेनाइल के मुद्दे को उठाने की अनुमति प्रदान की थी। पीठ ने कहा, रिकार्ड के मुताबिक विशेष अदालत द्वारा याचिकाकर्ता को दोषी ठहराए जाने को उसकी आपराधिक अपील और पुनर्विचार याचिका को खारिज करके बरकरार रखा गया था। बता दें कि 12 मार्च 1993 को मुंबई में सिलसिलेवार 12 जगहों पर बम विस्फोट हुए थे। इन सिलसिलेवार बम धमाकों में 257 लोग मारे गए थे जबकि 713 घायल हुए थे।
बॉम्बे स्टॉक एक्सेंज की 28-मंजिला इमारत की बेसमेंट में भी धमाका हुआ था जिसमें करीब 50 लोगों की मौत हो गई थी। बताया जाता है कि इन बम धमाकों में करीब 27 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए 19 नवंबर 1993 में इसकी छानबीन केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई के हवाले कर दी गई थी।