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Supreme Court: मुस्लिम महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बताया ऐतिहासिक, UCC के तहत मांगी आजादी

सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर फिर मुहर लगाई और कहा कि वह आम भारतीय महिलाओं की तरह तलाक के बाद गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी हैं तो मुस्लिम महिलाओं की खुशी का ठिकाना न रहा। वर्तमान सरकार पर उनका विश्वास इतना गहरा है कि उन्होंने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू किए जाने की मांग भी रख दी है।

By Jagran News Edited By: Sonu Gupta Updated: Thu, 11 Jul 2024 12:19 AM (IST)
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हर महिला का संवैधानिक अधिकार है गुजारा भत्ता- सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी

जागरण टीम, नई दिल्ली। जिस बराबरी के अधिकार के लिए मुस्लिम महिलाओं को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिला, और फिर लोकतंत्र के मंदिर में उन्हें न्याय से वंचित कर दिया गया। मगर मुस्लिम महिलाओं ने समानता और सम्मान की लड़ाई जारी रखी।

सुप्रीम कोर्ट ने अब जब उनके अधिकारों पर फिर मुहर लगाई और कहा कि वह आम भारतीय महिलाओं की तरह तलाक के बाद गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी हैं, तो मुस्लिम महिलाओं की खुशी का ठिकाना न रहा।

UCC लागू करने की रखी मांग

वर्तमान सरकार पर उनका विश्वास इतना गहरा है कि उन्होंने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू किए जाने की मांग भी रख दी है। असल में यह बदलता भारत है, जहां मुस्लिम महिलाएं अपने हक के लिए आवाज बुलंद करने लगी हैं। संवैधानिक अधिकारों पर मजबूती से बात कर रही हैं। कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ हिंदू संत भी इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए इसकी सराहना कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला अच्छा- शबनम हाशमी

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला बहुत अच्छा है। हर औरत को गुजारा भत्ता मिलना ही चाहिए। यह उसका संवैधानिक अधिकार है। तीन तलाक के विरुद्ध सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट जाने वाली और उत्तराखंड राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष शायरा बानो ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश की मुस्लिम महिलाओं को उनका वाजिब अधिकार मिल सकेगा।

मुस्लिम तलाकशुदा महिलाएं भी मांग सकेंगी गुजारा भत्ताः शायरा बानो

शायरा ने कहा कि अपने तीन तलाक को लेकर 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद 2018 में तीन तलाक को लेकर कानून बना और तलाक देने वालों पर मुकदमा दर्ज करके जेल भेजने का प्रावधान बनाया गया। सायरा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुस्लिम तलाकशुदा महिलाएं भी अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं।

गुजारा भत्ता भीख नहीं अधिकार है

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की महिला विंग की अध्यक्ष शालिनी अली का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला नहीं है। शाहबानो प्रकरण में यही कहा था। गुजारा भत्ता भीख नहीं अधिकार है। जब लड़की अपना घर छोड़कर दूसरे घर में जाती है और उसे संवारती है। उसे अपना घर बनाती है। अचानक उसे जब वहां से निकाल दिया जाता है तो उसके पास जगह नहीं होती कि वह कहां जाए।

उन्होंने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को सड़कों पर भीख मांगते भी देखा है। आज की सरकार पूर्व की डरी सरकार नहीं है बल्कि महिलाओं के हित में बड़े फैसले लेती है। संसद में महिलाओं का आरक्षण जैसे फैसले ऐतिहासिक है। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार यूसीसी लागू कर मुस्लिम महिलाओं और युवतियों को कट्टर मौलानाओं के चंगुल से निकालेगी।

सुप्रीम कोर्ट आया आगेः अंबर जैदी

सामाजिक कार्यकर्ता अंबर जैदी ने कहा कि जब-जब शरिया के नाम पर कठमुल्लों ने मुस्लिम महिलाओं को दबाने और कुचलने की कोशिश की, तब सुप्रीम कोर्ट आगे आया। इसके पहले तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ऐतिहासिक था, जिससे महिलाओं को कानूनी सुरक्षा मिली। उसी तरह से इस फैसले से उनके लिए सम्मानजनक जिंदगी का रास्ता निकला है।

उन्होंने कहा कि गुजारा भत्ता का अधिकार सभी महिलाओं के लिए है। इसे धर्म के आधार पर नहीं बांटा जाना चाहिए था, लेकिन पूर्व की राजीव गांधी सरकार ने कट्टर मौलवियों के सामने घुटने टेक दिए थे, लेकिन इस सरकार से उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा। हमारा आग्रह है कि मोदी सरकार अब समान नागरिक संहिता की तरफ आगे बढ़े, जिससे हर किसी को बराबरी का अधिकार सुनिश्चित हो।

संतों ने भी किया फैसले का स्वागत

अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय स्वागत योग्य है। अगर देश संप्रदाय निरपेक्ष है तो मुस्लिमों के लिए अलग और हिंदुओं के लिए अलग कानून नहीं होना चाहिए था। शाहबानो के मुकदमे में यह फैसला पूर्व में भी आया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उस फैसले को पलटा था। वह निर्णय गलत है। आज सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को पुर्नस्थापित किया है।

पर्सनल ला बोर्ड विरोध में, जमीयत को जानकारी नहीं

मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने शरीयत का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध किया है। कहा कि शाहबानो प्रकरण का मामला भी यही था, उसी आधार पर विरोध किया था। गुजारा भत्ता देने से तलाक के मामले कम होंगे। वैवाहिक संबंध खराब होने पर भी दोनों पक्ष घुट-घुट कर जीएंगे, लेकिन तलाक नहीं देंगे। इस पूरे मामले को समझने के लिए बोर्ड ने वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई है। साथ ही बोर्ड की कानूनी समिति में भी इस फैसले की समीक्षा कर फैसले को चुनौती देने का रास्ता अख्तियार किया जा सकता है।

बोर्ड के प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास ने कहा कि इस रविवार को दिल्ली में वर्किंग कमेटी की बैठक हो सकती है। वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इस मामले पर टिप्पणी करने से बचते हुए कहा कि अभी उनको इस फैसले की जानकारी नहीं है।

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