सुप्रीम कोर्ट ने दिया इच्छामृत्यु का हक
कोर्ट ने इसके बारे में विस्तृत प्रक्रिया और दिशा निर्देश तय किये हैं ताकि इस हक और प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
By Sachin BajpaiEdited By: Updated: Fri, 09 Mar 2018 08:59 PM (IST)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सम्मान से मरने के अधिकार को मान्यता देते हुए भारत के लोगों को जिंदगी की वसीयत (लिविंग विल) में इच्छामृत्यु का हक दे दिया है। कोई भी व्यक्ति अपनी जिंदगी और इलाज के बारे में पूर्व निर्देश दे सकता है। जिसमें वह घोषित कर सकता है कि लाइलाज रोग से ग्रसित होने और मरणासन्न स्थिति में पहुंचने पर उसके जीवन रक्षक उपकरण हटा दिये जाएं और उसे शांति से मरने दिया जाए। इतना ही नहीं जिन्होंने पूर्व में ऐसी घोषणा नहीं की है लेकिन मरणासन्न स्थिति में पहुंच गए हैं और उनके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है उनके जीवनरक्षक उपकरण हटाने (पैसिव यूथेनीशिया) की भी कोर्ट ने कड़ी शर्तो के साथ इजाजत दी है। कोर्ट ने इसके बारे में विस्तृत प्रक्रिया और दिशा निर्देश तय किये हैं ताकि इस हक और प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
दूरगामी परिणामों वाला यह ऐतिहासिक फैसला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनाया है। पांच न्यायाधीशों में से चार न्यायाधीशों ने अलग अलग लेकिन एक दूसरे का समर्थन करने वाले फैसले दिये हैं। मुख्य फैसला जस्टिस मिश्रा ने स्वयं और जस्टिस एम खानविल्कर की ओर से लिखा है। इसके अलावा जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण ने मुख्य न्यायाधीश के फैसले से सहमति जताते हुए अपना अलग से फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि इच्छामृत्यु के बारे में सरकार द्वारा कोई कानून बनाए जाने तक कोर्ट का यह फैसला लागू रहेगा। अमेरिका सहित कई देशों में लिविंग विल या तो कानून से या फिर कोर्ट के आदेश से लागू है। अब भारत भी इच्छामृत्यु का अधिकार देने वाले देशों में शामिल हो गया है।
न्यायाधीशों ने जीवन और मृत्यु के बारे में दार्शनिक, धार्मिक व्याख्याओं के अलावा कानूनी विश्लेषण किया है। कोर्ट ने इच्छामृत्यु के बारे में दुनियाभर में तय प्रक्रिया का जिक्र करते हुए भारत के लिए विस्तृत दिशानिर्देश और प्रक्रिया जारी की है। कोर्ट ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले सम्मान से जीवन जीने के अधिकार में सम्मान से मरने का अधिकार शामिल है। फैसले में जिंदगी की वसीयत करने से लेकर उस वसीयत को लागू करने तक की विस्तृत प्रक्रिया तय की गई है ताकि किसी तरह का दुरुपयोग या अस्पष्टता न रहे। फैसले में एक्टिव और पैसिव यूथेनीशिया का अंतर भी बताया गया है। एक्टिव यूथेनीशिया में लाइलाज और मरणासन्न स्थिति में पहुंच गए मरीज का जीवन समाप्त करने के लिए इंजेक्शन आदि दिया जाता है जबकि पैसिव इथूनिशिया में मरीज के जीवन को लंबा खींचने वाले कृत्रिम साधनों के जीवन रक्षक उपकरण हटाए जाते हैं। कोर्ट ने सिर्फ पैसिव यूथेनीशिया की इजाजत दी है। जिसमे मरणासन्न व्यक्ति के लिए जीवन रक्षक उपकरण हटाए जाएंगे ताकि उसका कष्ट कम हो और वह शांति से मर सके।
कौन कर सकता है जिंदगी की वसीयतजिंदगी की वसीयत में इच्छामृत्यु की घोषणा करने वाला व्यक्ति वयस्क स्वस्थ चित्त का होना चाहिए। वह ऐसी घोषणा करने के परिणामों को समझने की स्थिति में भी होना चाहिए। घोषणा स्वैच्छिक बिना किसी दबाव व प्रलोभन के होनी चाहिए। घोषणा लिखित और स्पष्ट होनी चाहिए। उसमें लिखा होना चाहिए कि कब उसका इलाज रोक दिया जायगा या उसे ऐसा कोई विशेष इलाज नही दिया जाएगा जो कि उसकी मृत्यु की प्रक्रिया में देरी करे और उसके कष्टों को बढ़ाए।
वसीयत में क्या लिखा होगाउसमें स्पष्ट लिखा जाएगा कि किन परिस्थितियों में और कब इलाज रोक दिया जाएगा। इस बारे मे दिये गए निर्देश पूरी तरह स्पष्ट होंगे। ये भी लिखा होगा कि वसीयत करने वाला किसी भी समय अपने निर्देश रद कर सकता है या वापस ले सकता है। उसमें बताया जाएगा कि दस्तावेजी वसीयत करने वाले को इसके परिणामों की समझ और जानकारी है। उसमें संरक्षक या नजदीकी रिश्तेदार का नाम बताया जाएगा जो वसीयत करने वाले के बीमार या अक्षम होने पर इलाज रोकने या वापस लेने के बारे में फैसला लेने के लिए अधिकृत होगा। अगर जिंदगी की वसीयत एक से ज्यादा होंगी तो आखिरी वाली को मरीज की इच्छा मानते हुए लागू किया जाएगा।वसीयत पर दो गवाहों और न्यायिक मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर होंगे।जीवन रक्षक उपकरण हटाने और इलाज रोकने के बार में की गई वसीयत पर दो गवाहों की मौजूदगी में वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर होंगे। उस वसीयत पर संबंधित क्षेत्राधिकार में आने वाले प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर होंगे। वसीयत रजिस्टर्ड होगी और उसकी जानकारी वसीयतकर्ता के परिवार को दी जाएगी।कैसे और कब लागू होगी वसीयतजब वसीयत करने वाला लाइलाज और मरणासन्न स्थिति में पहुंच जाएगा और उसके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं होगी और उसका इलाज कर रहे डाक्टर को उसकी लिविंग विल के बारे में पता चलेगा तो वह उस पर कार्यवाही करने से पहले उस वसीयत पर हस्ताक्षर करने वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट से वसीयत की प्रमाणिकता जांचेगा। संतुष्ट होने के बाद जिस अस्पताल मे इलाज चल रहा होगा वहां एक मेडिकल बोर्ड गठित होगा जिसमें 20 साल के अनुभव वाले विभिन्न क्षेत्रों के डाक्टर शामिल होंगे। वे मरीज का परीक्षण करेंगे उसके परिवार वालों से विचारविमर्श करके अपनी राय देंगे। इसे प्रारंभिक राय माना जाएगा। अगर मेडिकल बोर्ड वसीयत को लागू करने की राय देता है तो अस्पताल तुरंत इस बारे में संबंधित कलेक्टर को सूचित करेगा। और कलक्टर मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी की अध्यक्षता में बीस साल के अनुभव वाले तीन विशेषज्ञ डाक्टरों का एक मेडिकल बोर्ड गठित करेगा।ये बोर्ड अस्पताल मे दौरा करके मरीज का मुआयना करेगा। अगर वसीयत करने वाला मरीज समझने की स्थिति में है तो बोर्ड जीवन रक्षक उपकरण हटाने के बारे में उसकी राय भी लेगा। और अगर वो इस स्थिति में नहीं है तो उसके संरक्षक की राय ली जाएगी। कलक्टर द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड जीवन रक्षक उपकरण हटाने के फैसले पर अमल करने से पहले उसकी जानकारी संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट को देगा। मजिस्ट्रेट जल्दी से जल्दी मरीज के देखने जाएगा और उसे देखने के बाद इजाजत देगा तभी वसीयत पर अमल होगा।जिन मामलों में वसीयत नहीं है उनमें भी यही प्रक्रिया अपनाई जाएगी।किसी भी समय वापस ली जा सकती है वसीयतवसीयत करने वाला व्यक्ति उस पर अमल से पहले किसी भी वक्त उसे रद कर सकता है या वापस ले सकता है। वसीयत पर अमल न करने के आधार और कारण भी फैसले मे दिये गये हैं।मेडिकल बोर्ड के मना करने पर हाईकोर्ट में याचिकामेडिकल बोर्ड के इजाजत देने से मना करने पर वसीयत करने वाला या उसके परिजन हाईकोर्ट में रिट दाखिल कर सकते हैं।