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बच्चे के हित में सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता के बजाय नानी को सौंपी, SC ने कहा- पिता के बीच लगाव के रिश्ते को धीरे-धीरे बढ़ाया जाए

बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता को देने का पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का आदेश रद कर दिया है। यह फैसला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध दाखिल नानी की याचिका स्वीकार करते हुए दिया।कोर्ट ने कहा कि बच्चे और पिता के बीच लगाव के रिश्ते को धीरे-धीरे बढ़ाया जाना चाहिए।

By Jagran News Edited By: Babli Kumari Updated: Sun, 05 May 2024 08:46 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी नानी को दिया (फाइल फोटो)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे के हित में उसकी कस्टडी पिता के बजाय नानी को सौंप दी है। कोर्ट ने कहा कि छोटे बच्चे को नानी-नाना से वापस लिया जाना उस बच्चे को मानसिक तौर पर परेशान कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि बच्चे और पिता के बीच लगाव के रिश्ते को धीरे-धीरे बढ़ाया जाना चाहिए और उसके बाद बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपने पर विचार होना चाहिए।

बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता को देने का पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का आदेश रद कर दिया है। यह फैसला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध दाखिल नानी की याचिका स्वीकार करते हुए दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार कर बच्चे की कस्टडी पिता को देने का हाई कोर्ट का 23 अगस्त, 2022 का आदेश रद करते हुए कहा कि मामले की विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए बच्चे की कस्टडी के इस मामले में हाई कोर्ट को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में विशेष क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते हुए आदेश नहीं देना चाहिए था।

'इस मामले में विस्तृत जांच की थी जरूरत'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में विस्तृत जांच की जरूरत थी, इसमें बच्चे के कल्याण व प्राथमिकताओं का मुद्दा शामिल था। ऐसे में इस मामले पर गार्जियन एंड वा‌र्ड्स एक्ट, 1890 के प्रविधानों के तहत प्रक्रिया होनी चाहिए थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पिता को बच्चे की कस्टडी लेने के लिए गार्जियन एंड वा‌र्ड्स एक्ट के तहत कोर्ट में अर्जी दाखिल करने की छूट दी है और स्पष्ट किया कि उस अर्जी पर संबंधित कोर्ट मेरिट के आधार पर कानून के मुताबिक विचार करेगा।

मामले पर मेरिट के अनुसार किया जाएगा विचार 

यह भी कहा है कि गार्जियन एंड वा‌र्ड्स एक्ट के तहत पिता द्वारा दाखिल अर्जी पर विचार के समय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों में की गई टिप्पणियों का कोई असर नहीं होगा, मामले पर मेरिट के अनुसार विचार किया जाएगा।

अर्जी दाखिल होने पर सक्षम अदालत उस पर जल्द सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर पिता ऐसी अर्जी दाखिल करता है तो संबंधित अदालत चार सप्ताह के भीतर कम से कम पिता के बच्चे से मिलने के अधिकार पर आदेश पारित करेगा।

यह था मामला

इस मामले में बच्चे के माता-पिता की पांच जुलाई, 2014 को शादी हुई थी। दोनों की यह दूसरी शादी थी। पांच जुलाई, 2015 को बच्चे का जन्म हुआ। पांच अप्रैल, 2019 को महिला गायब हो गई और उसके पिता ने बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई जिसमें ससुराल वालों पर बेटी को प्रताडि़त करने का आरोप लगाया। नौ अप्रैल को महिला की लाश नहर में मिली। केस दर्ज हुआ, जांच चली। बाद में पुलिस की रिपोर्ट दाखिल होने के बाद मामला खत्म हो गया। महिला के मरने के बाद पति ने बच्चा देखभाल के लिए उसकी नानी को सौंप दिया था।

आदेश के खिलाफ नानी ने की अपील 

बच्चे के पिता ने एक हलफनामा भी दिया था जिसमें उस बच्चे के नाम एक भूखंड की देखभाल का गार्जियन नानी को बनाया गया था। 29 जुलाई, 2019 को बच्चे के पिता ने चाइल्ड वेलफयर कमेटी के समक्ष अर्जी दाखिल कर उसकी कस्टडी मांगी। कमेटी ने बच्चे सहित सभी के बयान दर्ज करने के बाद कस्टडी नानी से लेकर पिता को देने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ नानी ने अपील की और अदालत ने कमेटी का आदेश रद कर दिया।

नानी पर गैरकानूनी कस्टडी रखने का लगा आरोप

इसके बाद पिता ने बच्चे की कस्टडी मांगते हुए हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की जिसमें नानी पर गैरकानूनी कस्टडी रखने का आरोप लगाया। हाई कोर्ट ने पिता की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि बच्चे का कल्याण पिता के साथ है। हालांकि हाई कोर्ट ने नानी-नाना को बच्चे से मिलने के अधिकार दिए थे। लेकिन नानी ने हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिस पर यह फैसला आया है।

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