बच्चे के हित में सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता के बजाय नानी को सौंपी, SC ने कहा- पिता के बीच लगाव के रिश्ते को धीरे-धीरे बढ़ाया जाए
बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता को देने का पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का आदेश रद कर दिया है। यह फैसला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध दाखिल नानी की याचिका स्वीकार करते हुए दिया।कोर्ट ने कहा कि बच्चे और पिता के बीच लगाव के रिश्ते को धीरे-धीरे बढ़ाया जाना चाहिए।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे के हित में उसकी कस्टडी पिता के बजाय नानी को सौंप दी है। कोर्ट ने कहा कि छोटे बच्चे को नानी-नाना से वापस लिया जाना उस बच्चे को मानसिक तौर पर परेशान कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि बच्चे और पिता के बीच लगाव के रिश्ते को धीरे-धीरे बढ़ाया जाना चाहिए और उसके बाद बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपने पर विचार होना चाहिए।
बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता को देने का पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का आदेश रद कर दिया है। यह फैसला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध दाखिल नानी की याचिका स्वीकार करते हुए दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार कर बच्चे की कस्टडी पिता को देने का हाई कोर्ट का 23 अगस्त, 2022 का आदेश रद करते हुए कहा कि मामले की विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए बच्चे की कस्टडी के इस मामले में हाई कोर्ट को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में विशेष क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते हुए आदेश नहीं देना चाहिए था।
'इस मामले में विस्तृत जांच की थी जरूरत'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में विस्तृत जांच की जरूरत थी, इसमें बच्चे के कल्याण व प्राथमिकताओं का मुद्दा शामिल था। ऐसे में इस मामले पर गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के प्रविधानों के तहत प्रक्रिया होनी चाहिए थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पिता को बच्चे की कस्टडी लेने के लिए गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट के तहत कोर्ट में अर्जी दाखिल करने की छूट दी है और स्पष्ट किया कि उस अर्जी पर संबंधित कोर्ट मेरिट के आधार पर कानून के मुताबिक विचार करेगा।
मामले पर मेरिट के अनुसार किया जाएगा विचार
यह भी कहा है कि गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट के तहत पिता द्वारा दाखिल अर्जी पर विचार के समय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों में की गई टिप्पणियों का कोई असर नहीं होगा, मामले पर मेरिट के अनुसार विचार किया जाएगा।अर्जी दाखिल होने पर सक्षम अदालत उस पर जल्द सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर पिता ऐसी अर्जी दाखिल करता है तो संबंधित अदालत चार सप्ताह के भीतर कम से कम पिता के बच्चे से मिलने के अधिकार पर आदेश पारित करेगा।