याकूब मेमन की फांसी टलवाने को भी आधी रात में बैठी थी सुप्रीम कोर्ट की बैंच
निर्भया के दोषियों को जिस तरह से फांसी से बचाने की कोशिश में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था वैसे ही याकूब मेमन के लिए भी सुप्रीम कोर्ट में आधी रात का सुनवाई हुई थी।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 20 Mar 2020 11:08 AM (IST)
नई दिल्ली। निर्भया के सभी चार दोषियों को लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद आखिरकार तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई। हालांकि निर्भया के दोषियों के वकील ने अंत तक अपनी कोशिशें जारी की। इस कोशिश में पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में इस फांसी को टालने की कोशिश की लेकिन वो काम नहीं आई। आपको बता दें अब से पहले 2004 में कोलकाता के जेल में धनंजय चटर्जी को दुष्कर्म और हत्या के आरोप में फांसी दी गई थी। लेकिन निर्भया मामले में पांच वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट के अंदर किसी मामले की सुनवाई आधी रात में की गई थी। इसके अलावा कर्नाटक मामले में भी सुप्रीम कोर्ट रात में बैठा था।
1993 के मुंबई सीरियल धमाके के दोषी याकूब मेमन की याचिका को जब राष्ट्रपति की ओर से खारिज कर दिया गया था, तब 30 जुलाई 2015 की आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुला था। उस वक्त वकील प्रशांत भूषण सहित कई अन्य वकीलों ने देर रात को इस फांसी को टालने के लिए अपील की गई थी। उस वक्त ये सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन जजों की एक बेंच ने की थी। रात के तीन बजे ये मामला सुना गया। 30 जुलाई 2015 की रात को 3.20 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई थी, जो कि सुबह 4.57 तक चली थी। जिरह के बाद इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके तुरंत बाद याकूब मेमन को फांसी दे दी गई थी।
याकूब को फांसी से बचाने के लिए रात करीब 12:30 बजे वकील प्रशांत भूषण समेत 12 वकील चीफ जस्टिस एचएल दत्तू के घर गए और सुनवाई की अपील की थी। जस्टिस दत्तू के आदेश पर इसकी सुनवाई जज दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने की थी। इस मामले को घर पर न सुनकर सुप्रीम कोर्ट की खुली अदालत में सुनवाई करने का निर्णय लिया गया था। इस सुनवाई के दौरान कोर्ट के बाद कुछ लोगों ने प्रदर्शन तक किया था।
याकूब के वकीलों की दलील थी कि उसे 14 दिन का समय दिया जाना चाहिए क्योंकि उसके पास दया याचिका पर अपील का अधिकार है। इस पक्ष का ये भी कहना था कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने की कॉपी भी उसे नहीं मिली है। इस दया याचिका को वर्ष 2014 में याकूब के भाई ने दाखिल किया था। इसका विरोध करते हुए सरकार की ओर से कहा गया कि बार-बार याचिका दायर करने से दोषी के डेथ वारंट पर कभी अमल ही नहीं हो सकेगा। राष्ट्रपति के पास सिर्फ यही काम नहीं है उन्हें और भी काफी कुछ देखना होता है। इस जिरह के बाद इस अपील को खारिज कर दिया गया था।
याकूब मेमन के अलावा कर्नाटक के राजनीतिक विवाद को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में आधी रात को सुनवाई हुई थी। ये मामला उस वक्त शुरू हुआ जब 2018 में कर्नाटक के राज्यपाल ने आधी रात को भाजपा को सरकार बनाने का अवसर दिया था। उस वक्त इसके खिलाफ कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। ये सुनवाई 17 मई 2018 की रात करीब 2 बजे शुरू हुई और सुबह करीब 5 बजे तक चली थी। हालांकि यहां पर कांग्रेस को निराशा ही हाथ लगी थी और सुप्रीम कोर्ट ने बीएस येदियुरप्पा की शपथ पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
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