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मुस्लिम महिला भी पति से मांग सकती है गुजारा भत्ता, कोर्ट ने सुनाया 'सुप्रीम' फैसला; CrPC की धारा 125 का दिया हवाला

Supreme Court On Alimony मुस्लिम तलाकशुदा महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारे भत्ते के लिए अपने पति के खिलाफ याचिका दायर कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मामले पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि यह कानून हर धर्म की महिलाओं के लिए लागू होता है। सीआरपीसी की धारा 125 में पत्नी संतान और माता-पिता के भरण-पोषण को लेकर जानकारी दी गई है।

By Agency Edited By: Piyush Kumar Updated: Wed, 10 Jul 2024 12:20 PM (IST)
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मुस्लिम तलाकशुदा महिला भी पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है: सुप्रीम कोर्ट।(फोटो सोर्स: सोशल मीडिया)
एएनआई, नई दिल्ली। Supreme Court On Alimony। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जुलाई) को एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुस्लिम तलाकशुदा महिलाएं भी अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मामले पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि यह कानून हर धर्म की महिलाओं के लिए लागू होता है।

बता दें कि जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने इस मामले पर सुनवाई की। दोनों जजों ने अलग-अलग फैसले सुनाए।

भरण-पोषण दान नहीं बल्कि विवाहित महिलाओं का हक: कोर्ट

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, "धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि सिर्फ विवाहित महिलाओं पर।" पीठ ने कहा कि भरण-पोषण दान नहीं बल्कि विवाहित महिलाओं का अधिकार है और यह सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे वे किसी भी धर्म की हों।

मोहम्मद अब्दुल समद ने दायर की थी याचिका

तेलंगाना हाईकोर्ट ने मोहम्मद अब्दुल समद को अपनी तलाकशुदा पत्नी को हर महीने 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने के आदेश दिया था, जिसके खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। 

याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार नहीं है और उसे मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों को लागू करना होगा।

क्या है सीआरपीसी की धारा 125? 

सीआरपीसी की धारा 125 में पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण को लेकर जानकारी दी गई है। इस धारा के अनुसार पति, पिता या बच्चों पर आश्रित पत्नी, मां-बाप या बच्चे गुजारे-भत्ते का दावा तभी कर सकते हैं जब उनके पास अजीविका का कोई साधन नहीं हो।

क्या है मुस्लिम महिलाओं को लेकर नियम?

बता दें कि मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता नहीं मिल पाता है। अगर गुजारा भत्ता मिलता भी है तो सिर्फ इद्दत तक। दरअसल, इद्दत एक इस्लामिक परंपरा है, जिसके अनुसार, अगर किसी महिला को उसके पति ने तलाक दे दिया तो वो महिला इद्दत की अवधि तक शादी नहीं कर सकती है। इद्दत की अवधि तीन महीने तक रहती है।

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