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दरगाह हो या मंदिर... सड़क के बीच अवरोध नहीं बन सकते, बुल्डोजर एक्शन पर SC की टिप्पणी; 10 बड़ी बातें

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को बुल्डोजर एक्शन पर सुनवाई हुई। जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने मामले की लंबी सुनवाई के बाद बुल्डोजर एक्शन पर रोक का आदेश सुरक्षित रख लिया। हालांकि अंतरिम आदेश सड़कों फुटपाथों आदि पर धार्मिक संरचनाओं सहित किसी भी अनधिकृत निर्माण पर लागू नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं सभी नागरिकों के लिए दिशानिर्देश तय करेंगे।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Tue, 01 Oct 2024 08:23 PM (IST)
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बुल्डोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई। (File Photo)

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह स्पष्ट करेगा कि किसी व्यक्ति का अपराध में आरोपित या दोषी होना उसकी संपत्ति को बुल्डोजर से ढहाने का आधार नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस संबंध में पूरे देश के लिए दिशा निर्देश तय किये जाएंगे लेकिन कोर्ट अवैध निर्माण, अतिक्रमण को संरक्षण नहीं देगा।

1. कोर्ट ने आरोपितों की संपत्ति ढहाने और एक विशेष समुदाय को निशाना बनाए जाने के आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रखते हुए निजी संपत्तियों पर बुल्डोजर कार्रवाई पर रोक जारी रखी है। हालांकि कोर्ट ने सरकारी जमीन और सार्वजनिक स्थलों पर अतिक्रमण और अवैध कब्जों के प्रति कड़ा रुख बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया है कि सार्वजनिक स्थलों, सड़कों, सरकारी भूमि, जलाशय, रेलवे लाइन आदि पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई पर रोक नहीं है।

2. कोर्ट ने कहा कि सड़क के बीच में कोई धार्मिक स्थल हो चाहें वह दरगाह हो या मंदिर हटने चाहिए। वे अवरोध नहीं बन सकते, लोगों की सुरक्षा पहली प्राथमिकता है। कोर्ट किसी अवैध निर्माण या अतिक्रमण को संरक्षण नहीं देगा। न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि किसी का भी अवैध निर्माण क्यों न हो वह किसी भी धर्म या आस्था का क्यों न हो हटना चाहिए।

3. कोर्ट ने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं हम किसी समुदाय विशेष के लिए दिशा निर्देश तय नहीं करेंगे, पूरे देश के लिए सभी नागरिकों के लिए, सभी संस्थाओं के लिए दिशा निर्देश तय करेंगे। पीठ ने ये टिप्पणी तब की जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यहां याचिका दाखिल करने वाले इस तरह की धारणा बना रहे हैं जैसे कि एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर उनके खिलाफ बुल्डोजर कार्रवाई की जा रही है। जबकि ये ठीक नहीं है।

4. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों की ओर से पेश हो रहे सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मध्य प्रदेश में बहुत से हिन्दुओं के मकान ढहाए गए हैं। उन्होंने कहा कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई किसी व्यक्ति के किसी अपराध में आरोपित या दोषी होने के आधार पर कभी नहीं की जाती। अपराध में आरोपित या दोषी होना कार्रवाई का आधार कभी नहीं हो सकता चाहें कोई हत्या, दुष्कर्म या आतंकवाद का ही आरोपी क्यों न हो।

5. उन्होंने कहा ध्वस्तीकरण की कार्रवाई निर्माण संबंधी स्थानीय कानूनों, टाउन प्लानिंग, म्युनिसिपल कानून और ग्राम पंचायत आदि कानूनों के उल्लंघन पर तय प्रक्रिया के मुताबिक होती है। नोटिस भेजा जाता है। मेहता ने एनजीटी में दाखिल एक याचिका का जिक्र करते हुए कहा कि उसके मुताबिक सात लाख वर्गगज वन भूमि पर अतिक्रमण है।

6. सॉलिसिटर जनरल ने जब कहा कि कोर्ट को यह ध्यान रखना होगा कि अवैध निर्माण और अतिक्रमण के वास्तविक मामलों में कोर्ट के आदेश का लाभ न मिलने पाए तो जस्टिस गवई ने कहा कि वह पहले भी कह चुके हैं कि कोर्ट अवैध निर्माण और अतिक्रमण को संरक्षण नहीं देगा। उन्होंने इस बात को और ज्यादा स्पष्ट करते हुए कहा कि अवैध निर्माण के मामलों में सुनवाई करते हुए कोर्ट को बहुत सावधान रहना चाहिए और सोच समझ कर चलना चाहिए।

7. मेहता ने कहा कि अवैध निर्माण के 70 फीसद केस वास्तविक होते हैं सिर्फ दो फीसद केस ऐसे होते हैं जैसे कि यहां याचिकाओं में आरोप लगाए गए हैं। हालांकि जस्टिस विश्वनाथन ने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा कि यहां एक आंकड़ा है जिसके मुताबिक पिछले कुछ वर्षों में 4.45 लाख डिमोलेशन हुए हैं। इसे आप थोड़ा नहीं कह सकते। वैसे भी अगर एक भी गलत है तो रोका जाना चाहिए। मेहता ने कहा कि इसमें वे मामले भी होंगे जो कोर्ट के आदेश पर ध्वस्तीकरण हुए हैं सुपरटेक का मामला, मराडू का मामला आदि।

8. सॉलिसिटर जनरल ने कहा पहला बाक्स और याचिकाकर्ता ने कहा दूसरा बाक्ससॉलिसिटर जनरल ने रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजने का दिया सुझावसॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इस मामले में उनका सुझाव है कि किसी भी संपत्ति पर कार्रवाई से पहले 10 दिन का नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाना चाहिए इससे यह विवाद ही समाप्त हो जाएगा कि नोटिस नहीं मिला या नहीं भेजा गया। दस दिन का समय भी दिया जाए। अगर कोई नोटिस रिसीव नहीं करता तो भी उसका प्रमाण रहेगा।

9. उनके सुझाव पर पीठ ने कहा कि नोटिस में उल्लंघन किये गए कानून का भी स्पष्ट जिक्र होना चाहिए। जब एक याचिकाकर्ता की ओर से नोटिस में दो गवाह होने का सुझाव दिया तो कोर्ट ने कहा कि जब सब फर्जी होगा तो गवाह भी फर्जी हो जाएंगे। सॉलिसिटर जनरल का सुझाव ठीक है कि नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाना चाहिए। जस्टिस विश्वनाथन ने नोटिस भेजने का ब्योरा ऑनलाइन दर्ज किये जाने का भी सुझाव दिया ताकि हर चीज का रिकॉर्ड रहेगा और उसे देखा जा सकता है।

10. याचिकाकर्ता के वकील सीयू सिंह ने कहा कि कोर्ट यह सुनिश्चित करे कि अपराध रोकने या कानून व्यवस्था सुधारने के लिए बुल्डोजर कार्रवाई की आढ़ न ली जाए। उन्होंने उदाहरण दिया कि गुजरात में गणेश पंडाल में पत्थरबाजी करने वालों के घर उसी दिन ढहा दिये गए। ऐसे ही यूपी में हुआ कहा मकान कामन विलेज लैंड पर बना था।

11. दोनों ही मामलों में नोटिस दिया गया था लेकिन कार्रवाई अपराध दर्ज होने के तुरंत बाद की गई। हम कानून के खिलाफ नहीं है बल्कि कानून का गलत मंशा से प्रयोग न दिया जाए। ये पिछले दो साल से चल रहा है। लेकिन इस पर पीठ की टिप्पणी थी कि कामन विलेज भूमि तो सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा हुआ। जस्टिस गवई ने यह भी कहा कि अगर कानूनी कार्रवाई एक साथ हो जाती है तो उसे कैसे रोका जा सकता है। सिंह ने कहा कि इसलिए उनकी मांग है कि कार्रवाई से पहले लंबी अवधि का 45 या 90 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिए।

12. जस्टिस बीआर गवई ने अवैध निर्माण पर कार्रवाई से पहले 10 से 15 दिन का नोटिस दिये जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि इतना समय दिया जाना चाहिए। हालांकि यह भी कहा कि अवैध निर्माण के मामलों में कोर्ट को दखल देने में बहुत स्लो होना चाहिए और अगर स्टे लगाया गया है तो एक महीने के भीतर उसका निपटारा होना चाहिए। पीठ के दूसरे न्यायाधीश केवी विश्वनाथन ने भी कार्रवाई से पहले 15 दिन के नोटिस को जरूरी बताया।

13. उन्होंने कहा कि कम से कम 15 का नोटिस दिया जाना चाहिए ताकि परिवार वैकल्पिक व्यवस्था कर सके। उन मामलों में भी जिनमें नोटिस को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जाती, इतना समय मिलना चाहिए। महिलाएं बच्चे सड़क पर नहीं आ सकते। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह केस टु केस तय होना चाहिए। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि अवैध निर्माण को संरक्षण न मिले। जस्टिस गवई ने कहा हम अतिक्रमण को नहीं छूने जा रहे हैे। यहां हम कोई उपचार देने के लिए दिशा निर्देश नहीं तय कर रहे बल्कि कानून में जो उपचार दिये गए हैं उसे लागू करने की बात कर रहे हैं।

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