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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को पंजाब के हिस्से का सर्वे कर SYL नहर निर्माण की स्थिति पता करने का दिया निर्देश

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सतलुज यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) निर्माण मामले में पंजाब द्वारा अपने हिस्से का निर्माण न कराए जाने पर नाराजगी जताते हुए पंजाब को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने पंजाब से कहा कि आप इसका समाधान निकालें अन्यथा कोर्ट को कुछ करना होगा। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जनवरी में फिर से सुनवाई करेगा।

By Jagran NewsEdited By: Mohd FaisalUpdated: Wed, 04 Oct 2023 09:47 PM (IST)
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SC ने केंद्र को पंजाब के हिस्से का सर्वे कर SYL नहर निर्माण की स्थिति पता करने का दिया निर्देश
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सतलुज यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) निर्माण मामले में पंजाब द्वारा अपने हिस्से का निर्माण न कराए जाने पर नाराजगी जताते हुए पंजाब को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने पंजाब से कहा कि आप इसका समाधान निकालें अन्यथा कोर्ट को कुछ करना होगा।

जनवरी में फिर सुनवाई करेगा कोर्ट

कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह पंजाब के हिस्से में आने वाली परियोजना के लिए आवंटित जमीन का सर्वे करे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भूमि संरक्षित है। इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह हरियाणा और पंजाब के बीच एसवाईएल नहर निर्माण को लेकर चल रहे विवाद को निपटाने के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया को सक्रिय ढंग से आगे बढ़ाए। कोर्ट इस मामले में जनवरी में फिर सुनवाई करेगा।

तीन जजों की पीठ ने दिया आदेश

ये आदेश बुधवार को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, सीटी रविकुमार और सुधांशु धूलिया की पीठ ने एसवाईएल नहर विवाद मामले में सुनवाई के दौरान दिये। कोर्ट ने पंजाब की ओर से पेश वकील से कहा कि डिक्री हो चुकी है और अब मामला डिक्री के अनुपालन का है। आपको उसके अनुपालन के लिए कदम उठाने होंगे। हरियाणा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि यह मामला एसवाइएल नहर के निर्माण का है और हरियाणा अपने हिस्से की नहर का निर्माण करा चुका है, लेकिन पंजाब ने अभी तक अपने हिस्से का निर्माण नहीं कराया है।

समाधान निकालें अन्यथा कोर्ट को कुछ करना होगा- पीठ

पीठ ने कहा कि विभिन्न राज्यों में किसी न किसी तरह की यह बारहमासी समस्या है। जहां कहीं भी पानी की कमी होगी समस्या होगी। कोर्ट ने पंजाब की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी से कहा कि आप इसका समाधान निकालें अन्यथा कोर्ट को कुछ करना होगा। जब पंजाब सरकार की ओर से समस्याएं गिनाई गई तो कोर्ट ने कहा कि आप हमें 20 साल का समाधान मत दीजिए। यह मत बताइये कि ये होगा और ये हो जाएगा। आपको आज ही समाधान ढूंढना होगा। गेंद आपके पाले में है।

कोर्ट ने कहा- डिक्री के अनुपालन को लेकर चिंतित

कोर्ट ने कहा कि वह एसवाईएल नहर निर्माण की डिक्री के अनुपालन को लेकर चिंतित है। पंजाब के हिस्से के निर्माण को लेकर चिंतित है क्योंकि हरियाणा अपने हिस्से का निर्माण करा चुका है। पानी की कमी के मुद्दे पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह उपलब्धता का पता लगाएगी वह पता करेगी कि कितना पानी उपलब्ध है क्या पानी पहले से कम हुआ है। कोर्ट ने मामले को जनवरी में फिर सुनवाई पर लगाने का निर्देश देते हुए केंद्र सरकार से कहा कि वह इस बीच मामले के समाधान के लिए सक्रिय ढंग से मध्यस्थता को आगे बढ़ाए।

एडीशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने रखा पक्ष

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एडीशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि सेटलमेंट नहीं हो पा रहा है। कोर्ट ने पिछली बार भी केंद्र सरकार से एसवाईएल नहर निर्माण मुद्दे पर हरियाणा और पंजाब के बीच चल रहे विवाद को मध्यस्थता के जरिए हल करने को कहा था। एसवाईएल नहर का निर्माण ब्यास और रावी नदी के जल के हरियाणा और पंजाब के बीच बेहतर ढंग से बंटवारे के लिए होना है।

हरियाणा और पंजाब के बीच दशकों से चल रहा है विवाद

इस परियोजना में 214 किलोमीटर की सतलुज यमुना लिंक नहर का निर्माण होना था, जिसमें से हरियाणा अपने हिस्से में पड़ने वाली 92 किलोमीटर नहर का निर्माण करा चुका है पंजाब को 122 किलोमीटर नहर का निर्माण करना है, लेकिन पंजाब ने अभी तक अपने हिस्से की नहर का निर्माण पूरा नहीं कराया है। इस मामले में हरियाणा और पंजाब के बीच दशकों से विवाद चल रहा है।

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सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में सुनाया था फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा राज्य की ओर से 1996 में दाखिल किये गए मुकदमे में 15 जनवरी 2002 को फैसला सुनाया था और पंजाब को अपने हिस्से में पड़ने वाली एसवाईएल नहर का निर्माण कराने का आदेश दिया था। इसके बाद कोर्ट कई आदेश दे चुका है लेकिन अभी तक नहर का निर्माण पूरा नहीं हुआ है। इस बीच पंजाब सरकार ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट पारित कर जल बंटवारे के सभी समझौते रद कर दिये थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई 2004 को पंजाब के कानून के बारे में राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए रिफरेंस में पंजाब के इस कानून को असंवैधानिक करार दिया था।

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