Arvind Kejriwal: चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत का आदेश भविष्य के लिए बनेगा नजीर, रिटायर्ड जज ने समझाई फैसले की एक-एक बात
लोकसभा चुनाव में प्रचार के आधार पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दी गई अंतरिम जमानत का आदेश दूरगामी प्रभाव वाला है और भविष्य के लिए नजीर बनेगा। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का हर आदेश नजीर होता है और यह आदेश भी होगा। कोई भी व्यक्ति इस आदेश का हवाला देकर चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत मांग सकता है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में प्रचार के आधार पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दी गई अंतरिम जमानत का आदेश दूरगामी प्रभाव वाला है और भविष्य के लिए नजीर बनेगा। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का हर आदेश नजीर होता है और यह आदेश भी होगा। कोई भी व्यक्ति इस आदेश का हवाला देकर चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत मांग सकता है।
इस आधार पर कोई भी मांग सकता है जमानत- विजय हंसारिया
वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया कहते हैं कि वैसे तो सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को लोकसभा चुनाव के आधार पर अंतरिम जमानत दी है, लेकिन इस आदेश के बाद कोई भी किसी भी चुनाव में इस आदेश का हवाला देकर प्रचार के लिए जमानत मांग सकता है। इस फैसले को नजीर के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है। जेल में बंद कोई भी व्यक्ति जो किसी पार्टी का मुखिया है या पदाधिकारी है अथवा वह खुद चुनाव लड़ रहा है, इस आदेश का हवाला देकर चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत की मांग कर सकता है।
गलत मिसाल कायम करेगा आदेश- रिटायर्ड जज
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के नजीर होने पर दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन धींगरा कहते हैं कि यह आदेश एक गलत मिसाल कायम करेगा। इससे तो अपराधियों के लिए अंतरिम जमानत मांगने का एक रास्ता खुलता है। जस्टिस धींगरा कहते हैं कि वैसे तो फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस केस की फसल बोवाई और व्यापार की देखरेख के मामले से तुलना नहीं हो सकती, लेकिन क्यों नहीं हो सकती। कोई यह क्यों नहीं कह सकता कि अगर चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत मिल सकती है तो मेरा आधार ज्यादा गंभीर है।जस्टिस धींगरा ने क्या कहा?
वैसे अंतरिम जमानत के आधार के मुद्दे पर हंसारिया का कहना है कि अंतरिम जमानत हमेशा उस केस की विशिष्ट परिस्थितियों और तथ्यों को देखकर दी जाती है और केजरीवाल के मामले में भी कोर्ट ने ऐसा कहा है। जस्टिस धींगरा पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय के मामले का उदाहरण देते हैं।वह बताते हैं कि जब वह जिला अदालत में विशेष न्यायाधीश थे तो टाडा कानून में आरोपित कल्पनाथ राय का मुकदमा उनकी अदालत में चल रहा था। कल्पनाथ राय उस समय सांसद थे और उन्होंने सांसद होने के आधार पर संसद की कार्यवाही में भाग लेने के लिए कोर्ट से अंतरिम जमानत मांगी थी।
जस्टिस धींगरा कहते हैं कि उन्होंने राय की अंतरिम जमानत अर्जी इसी आधार पर खारिज कर दी थी कि अगर उनका सांसद होने के नाते अंतरिम जमानत का अधिकार बनता है तो एक आम आदमी को अधिकार क्यों नहीं है, जिसका कामकाज प्रभावित हो रहा है। अर्जी इसी आधार पर खारिज की थी कि उन्हें कोई विशेष अधिकार नहीं दिया जा सकता और उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था।