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पुलिस की मीडिया ब्रीफिंग के बारे में दिशा निर्देश तैयार करेगा गृह मंत्रालय, SC ने राज्यों के DGP को दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गृह मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह आपराधिक मामले में पुलिस द्वारा मीडिया ब्रीफिंग के संबंध में दिशा निर्देश तय करे। कोर्ट ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को भी इस बारे में एक सप्ताह में अपने सुझाव गृह मंत्रालय को भेजने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने माना कि सभी मामलों की जानकारी के संबंध में एक समान नियम नहीं हो सकते

By Jagran NewsEdited By: Mohd FaisalUpdated: Wed, 13 Sep 2023 08:39 PM (IST)
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पुलिस की मीडिया ब्रीफिंग के बारे में दिशा निर्देश तैयार करेगा गृह मंत्रालय (फाइल फोटो)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि व्यापक जनहित और मीडिया के अधिकार तथा लंबित आपराधिक मामलों की पुलिस द्वारा मीडिया को दी जाने वाली जानकारी का अभियुक्त, पीड़ित और न्यायिक प्रशासन पर पड़ने वाले असर को देखते हुए पुलिस की मीडिया ब्रीफिंग के बारे में नये दिशा निर्देश तय करने की जरूरत है।

मीडिया ब्रीफिंग के संबंध में दिशा निर्देश तय करे पुलिस

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गृह मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह आपराधिक मामले में पुलिस द्वारा मीडिया ब्रीफिंग के संबंध में दिशा निर्देश तय करे। कोर्ट ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को भी इस बारे में एक सप्ताह में अपने सुझाव गृह मंत्रालय को भेजने का निर्देश दिया है और गृह मंत्रालय उन्हें देखते हुए अन्य हितधारकों से विचार विमर्श करके तीन महीने में दिशा निर्देश तैयार करके कोर्ट में पेश करेगा।

मीडिया ट्रायल को लेकर किया सचेत

सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों में पुलिस ब्रीफिंग में हुए खुलासे के आधार पर मीडिया की रिपोर्टिंग और उसके मीडिया ट्रायल तक पहुंचने के प्रति सचेत भी किया है और लंबित आपराधिक मामलों की मीडिया रिपोर्टिंग में अभियुक्त, पीड़ित के अधिकारों व जनहित के बीच संतुलन कायम रखने को कहा है।

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प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में हुई सुनवाई

कोर्ट ने टिप्पणी में कहा कि यह सुनिश्चित होना चाहिए कि पुलिस द्वारा किये गए खुलासे का नतीजा मीडिया ट्रायल न हो, जो कि अभियुक्त को पहले ही दोषी साबित करता हो। ये निर्देश प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिये, जिसमें आपराधिक मामलों की लंबित जांच के दौरान पुलिस द्वारा की जाने वाली मीडिया ब्रीफिंग के तौर तरीकों का मुद्दा उठाया गया था।

जनवरी के दूसरे सप्ताह में फिर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जनवरी के दूसरे सप्ताह में फिर सुनवाई करेगा। बुधवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बढ़ते परिदृश्य को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जनहित की कई चीजें शामिल हैं, जैसे जांच के दौरान जनता का जानने का अधिकार, पुलिस के खुलासे का चल रही जांच पर पड़ने वाला संभावित असर, आरोपित के अधिकार और समग्र न्याय प्रशासन शामिल है।

न्यायमित्र गोपाल शंकर नारायण ने रखा पक्ष

न्यायमित्र गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि इस संबंध में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक प्रश्नावलि भेजी गई थी, जिसमें से कुछ के जवाब आए हैं। शंकरनारायण ने कहा कि मीडिया को रिपोर्टिंग से नहीं रोका जा सकता, लेकिन सूचना के स्त्रोत जो अक्सर सरकारी संस्थाएं होती हैं उन्हें रेगुलेट किया जा सकता है। इसका उद्देश्य घटना के संबंध में मीडिया में मल्टीपल वर्जन को रोकना है जैसे पूर्व के मामलों में हुआ।

आरुषी केस का हुआ जिक्र

उन्होंने इस बारे में आरुषी केस का उदाहरण देते हुए कहा कि उसमें मीडिया में कई वर्जन आये थे। न्यायमित्र ने इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कोर्ट को दिशा निर्देश और व्यापक मैनुअल तैयार करने के बारे में अपने सुझाव दिये। उन्होंने कहा कि सुझाव लांस एंजिल्स पुलिस विभाग, न्यूयार्क पुलिस विभाग की मीडिया रिलेशन हैंडबुक के साथ साथ यूके के चीफ पुलिस ऑफीसर्स एसोसिएशन की कम्युनिकेशन एडवाइजरी के साथ साथ सीबीआई मैनुअल से लिए गए हैं।

अभियुक्त को फंसाने वाली मीडिया रिपोर्ट ठीक नहीं- कोर्ट

कोर्ट ने आदेश में अभिव्यक्ति की आजादी, निश्चपक्ष जांच का अभियुक्त का अधिकार और पीड़ित की निजता के बीच संतुलन कायम करने पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त को फंसाने वाली मीडिया रिपोर्ट ठीक नहीं है। पक्षपाती रिपोर्टिंग लोगों में संदेह पैदा करती है कि इस व्यक्ति ने अपराध किया है। कोर्ट ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट पीड़ित की निजता का भी उल्लंघन कर सकती है।

नये दिशा निर्देश तैयार करने की जरूरत पर जोर दिया

कोर्ट ने इस सब चीजों को ध्यान में रखते हुए नये दिशा निर्देश तैयार करने की जरूरत पर बल दिया। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा दिशा निर्देश एक दशक पुराने एक अप्रैल 2010 के हैं। उसके बाद प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया काफी बढ़ा है और ऐसे में संतुलन होना महत्वपूर्ण हो जाता है।

पुलिस द्वारा किये खुलासे का नतीजा मीडिया ट्रायल न हो

कोर्ट ने माना कि सभी मामलों की जानकारी के संबंध में एक समान नियम नहीं हो सकते। ये अपराध की प्रकृति और पीड़ितों, गवाहों और आरोपियों सहित अन्य हितधारकों पर निर्भर होना चाहिए। मीडिया को दी जाने वाली जानकारी की प्रकृति प्रत्येक मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के अनुरूप होनी चाहिए। जैसे पीड़ितों, आरोपितों की उम्र और लिंग जैसे कारकों को ध्यान में रखा जाएगा। कोर्ट ने कहा कि पुलिस खुलासे का परिणाम मीडिया ट्रायल नहीं होना चाहिए। यह सुनिश्चित होना चाहिए कि पुलिस द्वारा किये गए खुलासे का नतीजा मीडिया ट्रायल न हो, जो अभियुक्त को पहले ही दोषी साबित करता हो।

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