सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के खर्च की सीमा तय करने वाली याचिका, कहा- यह नीतिगत मामला
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चुनावों में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा खर्च की सीमा तय करने का निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह विधायी नीति संबंधी मामला है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा यह विधायी परिवर्तन और नीतिगत मामला है। हम इस तरह की याचिका पर कैसे विचार कर सकते हैं।
By Jagran NewsEdited By: Abhinav AtreyUpdated: Fri, 08 Dec 2023 12:27 PM (IST)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चुनावों में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा खर्च की सीमा तय करने का निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह विधायी नीति संबंधी मामला है।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "यह विधायी परिवर्तन और नीतिगत मामला है। हम इस तरह की याचिका पर कैसे विचार कर सकते हैं।"
उम्मीदवारों द्वारा खर्च की सीमा तय की जाए- याचिकाकर्ता
हरियाणा के एक शख्स द्वारा दायर की गई याचिका पर पीठ सुनवाई कर रही थी। याचिका में मांग की गई है कि राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा खर्च की सीमा तय की जाए और नामांकन से पहले प्रिंटेड और पोस्ट किए गए लेखों पर खर्च को सीमित करें। साथ ही, नामांकन दाखिल करने के दौरान की गई रैलियों के खर्च की गणना करें।ये सभी विधायी नीति के मामले हैं- पीठ
सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ में शामिल जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा, "ये सभी विधायी नीति के मामले हैं।" याचिका में सभी उच्च न्यायालयों को छह महीने के भीतर चुनाव याचिकाओं पर फैसला करने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी।इसके लिए पहले से ही एक कानून है- कोर्ट
पीठ ने कहा, "ये ऐसे मामले नहीं हैं जिन पर हम केवल निर्देश दे सकते हैं। इसके लिए पहले से ही एक कानून है।" याचिकाकर्ता ने पीठ को बताया है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा खर्च की कोई सीमा नहीं है। सीजेआई ने कहा, "यह विधायी बदलाव का मामला है। हम संसद को यह आदेश नहीं दे सकते कि आप इस विषय पर कानून बनाएं।"याचिकाकर्ता ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 86 का भी हवाला दिया, जो चुनाव याचिकाओं की सुनवाई से संबंधित है। पीठ ने याचिका को खआरिज करते हुए कहा कि यह सभी नीतिगत मामले हैं।
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